एससीओ की सदस्यता से भारत की कूटनीति को मिलेगी और मजबूती
बेल्ट एंड रोड फोरम का बहिष्कार करने के बाद शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में भारत का शामिल होना कूटनीतिक एवं कारोबारी दोनों दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, क्योंकि वैश्विक स्तर पर इस संगठन का सामरिक व कारोबारी महत्व है। इस संगठन का उद्देश्य चरमपंथी ताकतों को नेस्तनाबूत करने के साथ-साथ सदस्य देशों के बीच कारोबारी रिश्ते मजबूत करना है। भारत मौजूदा समय में मुख्य तौर पर आतंकवाद और पूँजी
सेना के साथ-साथ सरकार को भी जाता है सर्जिकल स्ट्राइक का श्रेय
सीज फायर का उल्लंघन तो मानो पाकिस्तान का दैनंदिनी कार्य हो गया है। जब संयुक्त राष्ट्र में झूठे आंसू बहाकर और सरहद पर भारतीय सेना के जवानों को हमेशा की तरह पीठ पीछे आकर कायराना तरीके से मारकर भी पाक की नापाकियत कम नहीं पड़ती तो वह जब तक संघर्ष विराम का उल्लंघन करके अपनी मौजूदगी जताने की कोशिश करता है। जब यह सब होता रहा तब समय-समय पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,
इस सर्जिकल स्ट्राइक ने पाकिस्तान के साथ-साथ सबूत मांगने वालों की भी बोलती बंद कर दी है !
पिछले कुछ दिनों से देश की सीमा पर पाकिस्तानी सेना द्वारा फायरिंग और हमले की घटनाएं बढ़ती नज़र आ रही थीं। पाक की इन नापाक हरकतों से देश में फिर उड़ी हमले के बाद जैसा ही आक्रोश जमा होने लगा था। पिछले साल मोदी सरकार ने उड़ी हमले के जवाब में पकिस्तान पर जो सर्जिकल स्ट्राइक करवाई थी, उसकी वजह से लोगों की उम्मीद सरकार से काफी ज्यादा थी।
मोदी सरकार ने जाधव मामले में जो किया है, वो संप्रग सरकार सरबजीत मामले में क्यों नहीं कर सकी ?
भारतीय नागरिक व पूर्व नेवी अफसर कुलभूषण जाधव को पाकिस्तानी सैन्य अदालत द्वारा सुनाई गई फांसी की सजा के मामले में गुरुवार को देश-दुनिया की निगाहें अंतर्रराष्ट्रीय अदालत के फैसले पर टिकी थीं। लोग टेलीविजन से चिपके एक-एक बात को ध्यान से सुन समझ रहे थे। आखिर फैसले की घड़ी आई और थोड़ी ही देर में सब कुछ स्पष्ट हो गया। लोगों ने वही सुना जो वे सुनना चाहते थे। कोर्ट ने कुलभूषण की फांसी
सेना के कठोर रुख पर सवाल उठाने वाले सेना के साथ बदसलूकी पर खामोश क्यों हैं ?
पिछले दिनों श्रीनगर में चुनाव कराकर लौट रहे सीआरपीएफ के जवानों के साथ जिस तरह कश्मीर के बिगड़े और अराजक नौजवानों ने उन पर लात-घूसा बरसा बदसलूकी की और बड़गाम चाडूरा (बड़गाम) में हिजबुल मुजाहिदीन के खतरनाक आतंकी को बचाने के लिए सेना पर पत्थरबाजी की, उससे देश सन्न है। हथियारों से लैस होने के बावजूद भी सीआरपीएफ के जवानों ने तनिक भी प्रतिक्रिया
यदि पत्थरबाज कश्मीर की आज़ादी के लिए लड़ रहे तो आप भी पत्थर उठा लीजिये, अब्दुल्ला साहब !
अब्दुल्ला ने कश्मीरी पत्थरबाजों को सही बताते हुए कहा कि वे अपने मुल्क की आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं, इसमें कुछ भी गलत नहीं है। अब्दुल्ला से पूछा जाना चाहिए कि यदि इन कश्मीरी युवाओं का शिक्षा और रोजगार की संभावनाओं को छोड़ पत्थर उठाकर अपने ही देश के जवानों से लड़ना उनको जायज लग रहा, तो वे खुद और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला पढ़-लिखकर राजनीति में क्यों हैं; क्यों नहीं पत्थर उठाकर कश्मीर की तथाकथित आज़ादी के नेक काम में लग जाते हैं ?
उचित है कश्मीरी पत्थरबाजों के प्रति सेना और सरकार का कठोर रुख
कश्मीर में आतंकियों पर कारवाई या मुठभेड़ के दौरान कश्मीर के स्थानीय लोगों द्वारा सेना पर पत्थरबाजी का सिलसिला जो कुछ समय से बंद था, अब फिर शुरू होता दिख रहा है। अभी हाल ही में आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान सेना के जवानों पर पत्थरबाजों ने पत्थर बरसाने शुरू कर दिए। परिणाम यह हुआ कि एक आतंकी तो मारा गया, मगर पत्थरबाजी में सेना के काफी जवान घायल हो गए। इस घटना के बाद
एशिया में भी अलग-थलग पड़ा पाक, बांग्लादेश से भी बिगड़े सम्बन्ध
बांग्लादेश-पाकिस्तान कभी एक थे। अब दोनों के संबंध दुश्मनों की तरह के हो गए हैं। हाल के दिनों में दोनों देशों के संबंधों में काफी तल्खी आती नज़र आ रही है, जिसे भारत के लिहाज से अच्छा संकेत कहा जा सकता है। दरअसल बांग्लादेश ने 1971 के नरसंहार के गुनाहगार और जमात-ए-इस्लामी के नेता कासिम अली को कुछ समय पहले फांसी पर लटकाया। इस पर पाकिस्तान ने आपत्ति जताई। बांग्लादेश ने दो टूक
कश्मीर पर पाकिस्तान की ‘भाषा’ क्यों बोल रहे हैं पी चिदंबरम ?
कश्मीर की अलगाववादी ताकतों के प्रति मोदी सरकार के कड़े रुख और सेना को दी गयी खुली छूट के कारण ये ताकतें एकदम बौखलाई हुई हैं; इसी कारण कश्मीर में इन दिनों कभी हथियारबंद आतंकियों तो कभी पत्थरबाजों के जरिये वे सेना की कार्रवाई को कुंद करने की कोशिश में लगे हैं। लेकिन, हमारे जवान इन चीजों से बेपरवाह कश्मीर से आतंकियों का सफाया करने के लिए कमर कसकर मोर्चा संभाले हुए
आतंकियों के मददगारों पर सेना प्रमुख के कठोर रुख से बौखलाए क्यों हैं विपक्षी दल ?
भारतीय थल सेनाध्यक्ष विपिन रावत का ताजा बयान सेना पर पत्थर बरसाने वालों के लिए कड़े सन्देश और चेतावनी की तरह नज़र आ रहा। लेकिन, राष्ट्रीय हित में जारी इस चेतावनी को भी कांग्रेस व कुछ अन्य विपक्षी दलों ने राजनीतिक चश्मे से देखने में कोई गुरेज़ नहीं किया, जो देश के लिए बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। साथ ही, यह इन विपक्षी दलों के राष्ट्र-हित के तमाम दावों की भी पोल खोल रहा है। गौरतलब है कि सभी