पूर्वोत्तर चुनाव

पूर्वोत्‍तर में अबकी ‘वोट बैंक’ नहीं, ‘विकास’ की राजनीति का सिक्‍का चला है!

पूर्वोत्‍तर भारत में भारतीय जनता पार्टी को मिल रही कामयाबी के राजनीतिक मायने के साथ-साथ आर्थिक मायने भी हैं जो इस शोर में दब से गए हैं। आजादी के बाद अधिकांश सरकारों के लिए पूर्वोत्‍तर बेगाना ही रहा। उनके लिए गुवाहाटी ही पूर्वोत्‍तर का आदि और अंत दोनों था। जनजातियों में वर्गीय संघर्ष को बढ़ावा देकर अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने और बांग्‍लादेशी घुसपैठियों को सुनियोजित तरीके से बसाकर

मोदी-शाह की करिश्माई जोड़ी के आगे पूर्वोत्तर में भी ढेर हुए सभी सूरमा !

पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के चुनाव केवल सत्ता परिवर्तन तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि इनका वैचारिक दृष्टि से राष्ट्रीय स्तर पर भी महत्व है। जिन गिने-चुने प्रदेशों से ऊर्जा लेकर वामपंथी देश की राजधानी नई दिल्ली और केंद्रीय विश्विद्यालयों में धमक दिखाने का प्रयास करते रहे हैं, वहाँ भी अब वे निस्तेज हो गए हैं। इसके सकारात्मक वैचारिक परिणाम सामने आएँगे।

पूर्वोत्तर चुनावों में सिद्ध हो गया कि भाजपा अब पूरे भारत पर राज करने वाली पार्टी बन गयी है !

पूर्वोत्तर के तीन राज्यों की जनता ने कांग्रेस और वामपंथी दलों की झूठ और प्रपंच से भरी राजनीति को बेनकाब कर, वहाँ भगवा परचम लहरा दिया है। त्रिपुरा में 25 साल पुरानी “तथाकथित” इमानदार माणिक सरकार अब अतीत का हिस्सा बन गई है। इसी तरह नागालैंड में भी भाजपा ने अपने सहयोगी दल नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के साथ मिलकर शानदार प्रदर्शन किया है। पूर्वोत्तर के महत्वपूर्ण त्रिपुरा राज्य में लेफ्ट का