भाजपा के भय से वायनाड गए राहुल के पीछे पड़े वामपंथी
बीच लड़ाई में अगर सेनापति मैदान छोड़कर किनारा कर ले तो उस मुकाबले का परिणाम आप सहज सोच सकते हैं। बात यहाँ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी की हो रही है, जिन्होंने चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस का गढ़ कही जाने वाले अमेठी की सीट के साथ ही एक ऐसी सीट से भी चुनाव लड़ने का मन बनाया है जहाँ उनके हार की सम्भावना नहीं के बराबर कही जा रही।
खुद ही अपनी कब्र खोद रहे वामपंथी दल !
कार्ल मार्क्स ने एक बार कहा था- “हर सवाल पर तर्क दिया जा सकता है। हां, ये जरूरी नहीं है कि वो तर्कपूर्ण ही हों।” मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) में यही हुआ। कांग्रेस के साथ तालमेल करने के प्रस्ताव को वहां गत दिनों जिस प्रकार से खारिज किया है, उसके बाद ये संभावना कम बचती है कि वामदल समय के साथ चलने के लिए तैयार होंगे। वामपंथ की मौजूदा जमीनी हकीकत से वाकिफ माकपा महासचिव सीताराम येचुरी