कांग्रेसी विधायक और सपा सांसद के बयानों से फिर उजागर हुई विपक्ष की महिला विरोधी सोच
पहले कर्नाटक के कांग्रेसी विधायक ने दुष्कर्म पर बेहद आपत्तिजनक बयान दिया, इसके बाद सपा सांसद शफीकुर रहमान बर्क ने युवतियों के लिए अनर्गल बात बोली।
हाथरस प्रकरण के बहाने रची गयी दंगों की साज़िश के खुलासे से उपजते सवाल
हाथरस में हुई घटनाओं के संदर्भ में जाँच एजेंसियों के खुलासे ने भी इसकी पुष्टि कर दी है। जो तथ्य निकलकर सामने आए हैं, वे चौंकाने वाले हैं।
‘बलात्कार की इन घटनाओं के लिए केवल आरोपी नहीं, समाज भी जिम्मेदार है’
हर आँख नम है, हर शख्स शर्मिंदा है, क्योंकि आज मानवता शर्मसार है, इंसानियत लहूलुहान है। एक वो दौर था जब नर में नारायण का वास था लेकिन आज उस नर पर पिशाच हावी है। एक वो दौर था जब आदर्शों नैतिक मूल्यों संवेदनाओं से युक्त चरित्र किसी सभ्यता की नींव होते थे, लेकिन आज का समाज तो इनके खंडहरों पर खड़ा है। वो कल की बात थी जब मनुष्य को अपने
जो दल ‘बलात्कार’ को ‘गलती’ मानता रहा हो, वो आजम के बयान को गलत मान ही कैसे सकता है!
जो दल ‘बलात्कार’ को ‘गलती’ मानता रहा हो, उसके लिए आजम का बयान आपत्तिजनक कैसे हो सकता है? आजम का बयान हो, चाहें अखिलेश-डिम्पल का उसके बचाव में उतरना हो, ये सब समाजवादी पार्टी के उसी बुनियादी संस्कार से प्रेरित आचरण है, जिसकी झलक सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के ‘लड़कों से गलती हो जाती है’ वाले बयान में दिखाई देती है।
कठुआ के ‘बहादुर’ केरल के चर्चकाण्ड पर मुंह में दही जमाए क्यों बैठे हैं?
पिछले दिनों केरल में पादरी द्वारा नन से दुष्कर्म का मामला सामने आया। इसके बाद से ही देश में चर्चों के शोषण-साम्राज्य को लेकर आक्रोश का माहौल है। सोशल मीडिया पर भी इसलि आलोचना हो रही। लेकिन विडंबना है कि वे तथाकथित सेकुलर और वामपंथी गिरोह के लोग जो कठुआ प्रकरण पर हवा-हवाई ढंग से मंदिरों को बलात्कार का गढ़ कहते नहीं थक रहे थे, केरल के
बलात्कार के मामलों में भी इतना दोहरा रवैया कैसे दिखा लेते हैं, मिस्टर सेकुलर?
देश में इन दिनों कठुआ नाम छाया हुआ है। जम्मू संभाग के कठुआ के एक गांव में 8 वर्षीय बच्ची से दुष्कर्म एवं हत्या की खबर सामने आई और उसके मामला तूल पकड़ गया। यहां गौर करने योग्य बात यह है कि बच्ची नाम असिफा है, इसलिए विरोध और आक्रोश जताने के खेल में बॉलीवुड, बुद्धिजीवी, सेकुलर आदि गिरोह पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतर गए हैं। बहुत हैरत की बात है कि जिस समय कठुआ की खबर
बलात्कार पर राजनीति की परम्परा तो इस देश में नेहरू-इंदिरा के समय से रही है!
उन्नाव और कठुआ में हुई बलात्कार की घटनाओं ने एक बार फिर वोट बैंक की राजनीति करने वालों को उर्वर जमीन मुहैया करा दी। यदि यही उन्नाव की घटना किसी गैर-भाजपा शासित राज्य में घटी होती, तो मानवाधिकार के स्वयंभू नेता घरों से बाहर न निकलते। इसी प्रकार यदि कठुआ में पीड़ित लड़की हिंदू होती, तो सभी की जुबान सिल जाती। इसका ज्वलंत उदाहरण है 10 अप्रैल को बिहार के सासाराम में छह साल की मासूम
गायत्री प्रजापति को बचाना कौन-सी क़ानून व्यवस्था है, अखिलेश जी ?
यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री और अमेठी विधानसभा क्षेत्र से सपा प्रत्याशी गायत्री प्रजापति जो पहले से ही खनन घोटाले सम्बन्धी आरोपों से घिरे थे, पर बलात्कार जैसे जघन्य अपराध का आरोप सामने आना सपा की मुश्किलें बढ़ा सकता है। दरअसल मामला कुछ यूँ है कि विगत दिनों एक महिला द्वारा गायत्री प्रजापति पर यह आरोप लगाया गया है कि २०१४ में उन्होंने उसे प्लाट दिलाने के बहाने अपने लखनऊ स्थित
वामपंथी क्रांतिकारियों के गढ़ जेएनयू का सच!
जब जेएनयू से ख़बर आयी कि एक वामपंथी नेता ने अपने ही साथ पढ़नेवाली छात्रा-कार्यकर्ता के संग बलात्कार किया है, तो सच पूछिए मुझे आश्चर्य तक नहीं हुआ। मनोविज्ञान के मुताबिक जब आप लगातार दुखद और खौफनाक घटनाओं से दो-चार होते रहते हैं, तो धीरे-धीरे उसके प्रति एक स्वीकार्यता का भाव आपमें आ जाता है। जेएनयू में वामपंथियों द्वारा बलात्कार न पहली और न ही आखिरी घटना है।