सेना ने अब जो ‘रणनीति’ अपनाई है, वो घाटी में आतंक की कमर तोड़ देगी !
कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ सेना का अभियान जोरशोर से चल रहा है। इसी क्रम में सेना को बीते सप्ताह बड़ी सफलता मिली। पुलवामा में सुरक्षाबलों ने लश्कर के कमांडर आतंकी अबु दुजाना सहित दो अन्य आतंकियों को मार गिराया। हिजबुल कमांडर बुरहान वानी, लश्कर कमांडर जुनैट मट्टू और सब्जार भट जैसे बड़े आतंकियों के मारे जाने के बाद अब दुजाना के खात्मे को बड़ी कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा है। जुनैद
कश्मीर में सेना की नयी ‘रणनीति’ ने आतंकियों की कमर तोड़ दी है !
पिछले साल हुए सर्जिकल स्ट्राइक जैसे अहम सैन्य ऑपरेशन के बाद भारतीय सेना बहुत मुस्तैद और मारक हो गई है। यही कारण है कि सीमा पर बढ़ रहे लगातार तनाव के बावजूद सेना ने स्थिति को बखूबी संभाला हुआ है। आए दिन सीमा पार से घुसपैठ करने वाले आतंकियों की धरपकड़ की जा रही है, तो कहीं नियमित रूप से मिलिट्री इनकाउंटर में आतंकी मारे जा रहे हैं। कहना होगा कि भारतीय सेना इन दिनों
अपनी हरकतों से अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर बेनकाब होता पाकिस्तान
पाकिस्तान की संवैधानिक संस्थाओं ने जिस प्रकार एक आतंकी सरगना की मौत पर काला दिवस मनाया, उसके बाद उससे सकारात्मक सहयोग की आखिरी उम्मीद भी समाप्त हो गयी। पिछले दिनों भारतीय सैनिकों ने एक आतंकी सरगना को कश्मीर में मार गिराया था। इसके पहले पाकिस्तान विश्वमंच पर अपने को भी आतंकवाद से पीड़ित बताता रहा है। बात एक हद तक सही भी है। आतंकवाद उसके लिए अब भस्मासुर बन गया है। ऐसे में उससे यह उम्मीद थी कि वह आतंकी के खात्मे पर खामोश ही रह जाता। तब माना जाता कि वह भी पीड़ित है। लेकिन उसने अपने को खुद ही बेनकाब कर दिया।
तथाकथित सेक्युलर मीडिया को पत्रकार रोहित सरदाना का करारा जवाब
किले दरक रहे हैं। तनाव बढ़ रहा है। पहले तनाव टीवी की रिपोर्टों तक सीमित रहता था। फिर एंकरिंग में संपादकीय घोल देने तक आ पहुंचा। जब उतने में भी बात नहीं बनी तो ट्विटर, फेसबुक, ब्लॉग, अखबार, हैंगआउट – जिसकी जहां तक पहुंच है, वो वहां तक जा कर अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश करने लगा।जब मठाधीशी टूटती है, तो वही होता है जो आज भारतीय टेलीविज़न में हो रहा है। कभी सेंसरशिप के खिलाफ़ नारा लगाने वाले कथित पत्रकार – एक दूसरे के खिलाफ़ तलवारें निकाल के तभी खड़े हुए हैं जब अपने अपने गढ़ बिखरते दिखने लगे हैं। क्यों कि उन्हें लगता था कि ये देश केवल वही और उतना ही सोचेगा और सोच सकता है – जितना वो चाहते और तय कर देते हैं। लेकिन ये क्या ? लोग तो किसी और की कही बातों पर भी ध्यान देने लगे।
शाह फैजल के किन्तु-परन्तु में भारत और कश्मीर कहां है?
2009 के आईएएस टॉपर शाह फैजल के दर्द भरे लेख को पढ़ लेने वाले देश के अधिकांश लोगों के मन में ये अहसास गहरा सकता है कि दरअसल भारत सरकार ने कश्मीर के साथ संवाद का गलत तरीका अपनाया है। शाह फैजल ने अपने लेख में लगातार बताया है कि गलत तरीके से हो रहे संवाद से कश्मीर लगातार भारत से दूर होता जा रहा है। शाह का लेख दरअसल एक कश्मीरी की भावनाओं को सामने लाता है। लेकिन, ये भावनाओं से ज्यादा उस डर को ज्यादा सामने लाता है, जिसमें कश्मीर के आतंकवाद, अलगाववाद के खिलाफ बोलने से हर कश्मीरी की जिंदगी जाने का खतरा है