जयंती विशेष : अमृत काल में प्रेरणास्त्रोत के रूप में स्वामी विवेकानंद की प्रासंगिकता
1887 में एक परिव्राजक संन्यासी के रूप में जब स्वामी विवेकानंद भारत भ्रमण पर निकले तो उन्होंने आने वाले पांच वर्षों तक भारत को बहुत निकटता से देखा। उनको यह स्पष्ट आभास हुआ
भगिनी निवेदिता : ‘वह भारत में भले न पैदा हुई हों, लेकिन भारत के लिए पैदा हुई थीं’
भगिनी निवेदिता ने सेवा का कार्य निस्वार्थ भाव से किया, ना कोई इच्छा-अनिच्छा, ना कोई धर्मांतरण का छलावा, वह भारत में आकर भारतीयता के रंग में रंग ही गईं।
भगिनी निवेदिता : मार्गरेट नोबल से निवेदिता तक की यात्रा
स्वामीजी द्वारा बताई गयी सब चुनौतियों को स्वीकार करते हुए मार्गरेट नोबेल 28 जनवरी,1898 को अपना परिवार, देश, नाम, यश छोड़कर भारत आती हैंI
जब स्वामी विवेकानंद ने कहा था, “लोगों की मदद के लिए मठ की ज़मीन भी बेच देंगे”
जब स्वामी विवेकानंद के गुरुभाई ने उनसे पैसे के स्रोत के बारे में पूछा तो स्वामी जी ने कहा, “क्यों, यदि आवश्यक हो, तो हम नए खरीदे गए मठ मैदानों को बेच देंगे।”
भारतीय स्वाधीनता संग्राम में स्वामी विवेकानंद की भूमिका
स्वामी विवेकानंद मात्र 39 वर्ष 5 महीने और 24 दिन के जीवन में ही अगर उन्हीं के शब्दों में कहूँ तो 1500 वर्ष का कार्य कर गए।
भारत की विशेषता है अनेकता में एकता
हम एक सांस्कृतिक राष्ट्र हैं, जो आज से नहीं हज़ारों वर्षों से चलते चले आ रहे हैं। भारत दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से इकलौती ऐसी सभ्यता है जो आज भी मूल रूप में अपने अस्तित्व में है।
स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़े पाँच रोचक प्रसंग जो हमें उनके और करीब ले जाते हैं
प्रो. शैलेन्द्रनाथ धर द्वारा लिखी पुस्तक “स्वामी विवेकानंद समग्र जीवन दर्शन” के अनुसार वर्ष 1898 में जब स्वामी जी अल्मोड़ा यात्रा पर थे, उन दिनों अंग्रेज़ उनकी निगरानी करते थे, जब यह सूचना स्वामीजी को पता लगी तो उन्होंने यह बात हंसी में उड़ा दी थी