भाषा

भाषा के प्रति बाबा साहेब का राष्ट्रीय दृष्टिकोण

बाबा साहेब भाषा के प्रश्न को केवल भावुकता की दृष्टि से नहीं देखते थे। बल्कि उनके लिए भाषा को देखने का राष्ट्रीय दृष्टिकोण था। संस्कृत हो या फिर हिन्दी, दोनों भाषाओं के प्रति उनकी धारणा थी कि ये भाषाएं भारत को एकसूत्र में बांध कर संगठित रख सकती हैं और किसी भी प्रकार के भाषायी

जम्मू-कश्मीर में हिंदी, कश्मीरी और डोगरी को आधिकारिक भाषा बनाए जाने के निहितार्थ

सरकार के इस महत्‍वपूर्ण निर्णय की वजह से ना सिर्फ जम्‍मू कश्‍मीर के लोगों में समानता का भाव बढ़ेगा बल्कि हिंदी के आधिकारिक भाषा बनने से देश के अन्‍य नागरिकों के साथ उपजे भेदभाव को भी मिटाने में मदद मिलेगी।

राष्ट्र की प्रगति के लिए हिंदी की सर्वस्वीकार्यता आवश्यक

गृहमंत्री अमित शाह के हिंदी के पक्ष में प्रस्तुत वक्तव्य–‘भारत’ विभिन्न भाषाओं का देश है और हर भाषा का अपना महत्व है मगर पूरे देश की एक भाषा होना अत्यंत आवश्यक है जो विश्व में भारत की पहचान बने। आज देश को एकता की डोर में बांधने का काम अगर कोई एक भाषा कर सकती है तो वह सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा हिंदी ही है।‘– का विरोध करने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और अन्य नेताओं को नेताजी सुभाष चंद्र बोस का यह कथन स्मरण रखना चाहिए कि

हिंदी दिवस : वैश्विक फ़लक पर लोकप्रिय होती हिंदी

देश में सबसे अधिक बोली, समझी और लिखी जाने वाली भाषा हिंदी है। विश्व में भी यह चौथी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। भले ही अग्रेज़ीदाँ मानसिकता वाले अँग्रेजी को सर्वश्रेष्ठ भाषा मानते हैं, लेकिन दैनिक भास्कर, जो एक हिंदी दैनिक है, सबसे अधिक सर्कुलेशन वाला अखबार है। दूसरे स्थान पर भी हिंदी अखबार दैनिक जागरण काबिज है। टीवी पर भी सबसे अधिक हिंदी के समाचार, विज्ञापन एवं कार्यक्रम प्रसारित किये जा रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक, सोशल और वेब मीडिया पर भी हिंदी का ही बोलबाला है।  

भाषा की ताकत जाननी हो तो पाकिस्तान का यह इतिहास पढ़ लीजिये !

पाकिस्तान के लिए दो तारीखें अहम हैं। 24 मार्च, 1940 और 21 फरवरी,1952। आप कह सकते हैं कि 24 मार्च, 1940 को पाकिस्तान की स्थापना की बुनियाद रखी गई थी। और 21 मार्च, 1948 को उसी पाकिस्तान को दो भागों में बांटने की जमीन तैयार की गई। संयोग देखिए कि इन दोनों तारीखों से एक खास शख्स जुड़ा है। इसका नाम है मोहम्मद अली जिन्ना।

हिन्दी दिवस : अपनी शक्ति और सामर्थ्य को हर मोर्चे पर सिद्ध कर रही हिन्दी

हिन्दी अपने आविर्भाव काल से लेकर अब तक निरन्तर जनभाषा रही है। उसका संरक्षण और संवर्द्धन सत्ता ने नहीं, संतों ने किया है। भारतवर्ष में उसका उद्भव और विकास प्रायः उस युग में हुआ जब फारसी और अंग्रेजी सत्ता द्वारा पोषित हो रही थीं। मुगल दरबारों ने फारसी को और अंग्रेजी शासन ने अंग्रेजी को सरकारी काम-काज की भाषा बनाया। परिणामतः दरबारी और सरकारी नौकरियाँ करने वालों ने फारसी और अंग्रेजी का

भारतीय दर्शन को समझने के लिए आवश्यक है संस्कृत का ज्ञान

देश के उच्चतम न्यायालय ने संतोष कुमार बनाम मानव संसाधन विकास मंत्रालय (याचिका सं. 299, 1989) वाद (संस्कृत सम्बन्धी) के निर्णय की शुरुआत में एक बहुत ही गहन व रोचक घटना का उदाहरण दिया। वह उदाहरण भारतीयता व संस्कृत के सम्बन्ध को समझने में सहायक है। केम्ब्रिज विश्वविद्यालय का एक प्रोफेसर अपने शान्त कक्ष में अपने अध्ययन में डूबा हुआ है: एक उत्तेजित अंग्रेज सिपाही उस अध्ययन कक्ष में