मुलायम

व्यंग्य : उत्तर प्रदेश में ‘काम’ के बोलने की कहानी

इक्कीसवीं सदी की जवानी परवान पर थी। ‘उत्तम प्रदेश’ में ‘समाजवादी प्रजातंत्र’ का ज़बर्दस्त जलवा था। जलवा भी ऐसा-वैसा नहीं! बस यूं समझ लीजिए कि ‘काम’ बोलता था। ‘प्रजातंत्र’ के ‘प्रजापति’ लोग ‘कामुकता’ की पराकाष्ठा पार कर चुके थे। ‘काम’ बोलता रहा और ‘उत्तम प्रदेश’ में ‘प्रजातंत्र’ कब ‘प्रजापति-तंत्र’ में तब्दील हो गया, किसी को पता भी नहीं चला। वहां की सरकार में ‘प्रजापति’ की जगह पक्की रहती

यूपी चुनाव : अपने विकासवादी एजेंडे के साथ प्रदेश में सबसे मज़बूत नज़र आ रही भाजपा

उत्तर प्रदेश सात चरणों में से तीन चरण के चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं। प्रदेश की आवाम लोकतंत्र के इस पर्व को पूरे उत्साह के साथ मना रही है। यही कारण है कि जैसे -जैसे मतदान के चरण आगे बढ़ रहे है, वोटिंग फीसद भी 2012 के मुकाबले बढ़ रहा है। मतदान प्रतिशत बढ़ना अक्सर भाजपा के लिए फायदेमंद साबित होता है, इसलिए ये सपा-कांग्रेस गठबंधन की चिंता को बढ़ा रहा है, तो भाजपा की उम्मीदों को और

अखिलेश सरकार की नाकामियों को ही दर्शाता है सपा का चुनावी घोषणापत्र

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने रविवार को विधानसभा चुनाव के लिए सपा का घोषणापत्र जारी कर दिया। घोषणापत्र में हर वर्ग को लुभाने की कोशिश की गई है। गांव, गरीब, किसानों, महिलाओं व युवाओं को लुभाकर सत्ता में वापसी का ख्वाब संजोया गया है। गौर करें तो घोषणापत्र में जनहित की दूरगामी सोच से प्रेरित और रचनात्मक योजनाओं की बजाय लोकलुभावन वादों

यूपी चुनाव : सभी दलों से अधिक मज़बूत नज़र आ रही भाजपा

यूपी चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है। आगामी ग्यारह फ़रवरी से सूबे में मतदान शुरू हो रहा है, जिसमें अब गिनती के दिन शेष हैं। इसलिए सूबे की लड़ाई में ताल ठोंक रहे सभी राजनीतिक दल अपने चुनावी व्यूह को मज़बूत बनाने और समीकरणों को पक्का करने की कोशिश में लग गए हैं। प्रदेश की सत्तारूढ़ पार्टी सपा में महीनों से मचा पारिवारिक और राजनीतिक उठापटक का नाटक भी चुनाव की

यूपी चुनाव : भाजपा की लहर से भयभीत विपक्षियों ने शुरू की एकजुट होने की कवायद

यूपी विधानसभा चुनावों की बिसात बिछ चुकी है। सभी राजनीतिक पार्टियां अपना-अपना दांव खेलने के लिए तैयार हो चुकी है। एक तरफ यूपी में मुख्य विपक्षी दल बसपा है, तो दूसरी तरफ कांग्रेस अपनी खो चुकी साख को वापस पाने के लिए जद्दोजहद करने में लगी हुई है। सत्तारूढ़ सपा में मचे दंगल ने सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रखा है। सपा में जो दंगल मचा है, उसे लेकर लोगों में भ्रम ही घुमड़

परिवार और राजनीति के बीच अंतर का आदर्श स्थापित करते प्रधानमंत्री मोदी

गत दिनों भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा आगामी विधानसभा चुनाव के संदर्भ में कहा गया कि भाजपा इन चुनावों में अवश्य जीत हासिल करेगी, लेकिन इसके लिए मेहनत की आवश्यकता है। साथ ही, उन्होंने यह हिदायत भी दी कि पार्टी नेता अपने परिवार के सदस्यों के लिए टिकट न मांगें। इस बयान के गहरे और व्यापक निहितार्थ हैं, जिन्हें समझने की आवश्यकता है। दरअसल आज देश

पाँचों राज्यों के विधानसभा चुनावों में सबसे दमदार नज़र आ रही भाजपा !

चुनाव की रणभेरी बजते ही, चुनावी युद्ध के मैदान में महारथियों का जमावड़ा लगना शुरू हो गया है। एक तरफ भाजपा का विकास का मुद्दा है तो दूसरी तरफ अन्य दलों का जातिवाद, क्षेत्रवाद, सम्प्रदायवाद का मुद्दा। परंपरागत चुनाव से इतर इस बार का चुनाव कई मायनों में अलग प्रतीत हो रहा है। माना जा रहा है कि यह चुनाव परिणाम कई राजनीतिक पार्टियों की दशा और दिशा भी तय कर सकता है।

परिवारवादी राजनीति पर प्रधानमंत्री का कड़ा संदेश

भारतीय राजनीति में परिवारवाद की बहस एकबार फिर चर्चा में है। चर्चा की वजह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्रीय कार्यकारिणी में दिया गया एक बयान है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में कार्यकर्ताओं एवं पदाधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि अपने परिवार वालों के टिकट के लिए पार्टी नेता दबाव न बनाएं। भाजपा की आंतरिक बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिया गया यह

परिवारवादी राजनीति के दौर में जनहितकारी राजनीति की उम्मीद जगाती भाजपा

जिस लोकतांत्रिक व्यवस्था में सभी को समान अधिकार, अवसर की समानता जैसी बातें संविधान में वर्णित की गई हो, ऐसे देश में अगर राजनीति के क्षेत्र में परिवारवाद की जड़ें इतनी गहरे तक जम जाएं कि राष्ट्रीय राजनीति से लेकर क्षेत्रीय राजनीति तक इसकी विषबेल पसरने लगे तो इससे बड़ी विडाबंना कोई और नहीं हो सकती। ऐसे में, समान अधिकार दिलाने वाला संवैधानिक ढ़ांचा ही कही न कही कमजोर पड़

यूपी चुनाव : भाजपा के पक्ष में दिख रही लोकसभा चुनाव जैसी लहर

संभवतः इस सप्ताह चुनाव आयोग उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दे। सभी पार्टियाँ पूरी तैयारी के साथ प्रदेश के चुनावी दंगल में उतरने के लिए बेताब हैं, सभी दल अपनी–अपनी दावेदारी पेश करने में लगे हैं, किन्तु लोकतंत्र में असल दावेदार कौन होगा इसकी चाभी जनता के पास होती है। सत्ता की चाभी यूपी की जनता किसे सौंपती है यह भविष्य के गर्भ में छुपा हुआ है। लेकिन, यूपी में जो