बाबरी मस्जिद की बुनियाद में जो घृणा थी, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड आज उसीको हवा दे रहा है !
देश सहमति और मेल-जोल से चलता है; टकराव से नहीं चलता। जब दो समुदायों के बीच सबंधों के पुल बनाने की बात हो, तो आपसी संवाद ही एक मात्र रास्ता है। देश में राम मंदिर बनने की राह में मुस्लिम समुदाय का एक बहुत बड़ा तबका आपसी बातचीत का समर्थक रहा है, लेकिन मुस्लिम समुदाय में ही कुछ लोग ऐसे हैं जो आपसी बातचीत को छोड़ हमेशा टकराव की सियासत पर चलना चाहते हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने
तीन तलाक के समर्थक बताएं कि उनके लिए संविधान पहले है या मज़हबी कायदे ?
सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने मुस्लिमों में प्रचलित तीन तलाक, निकाह हलाला जैसी कुप्रथाओं पर सुनवाई शुरू कर दी है। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता में बनी इस पीठ में पांच जज शामिल हैं, जो तीन तलाक पीड़ित मुस्लिम महिलाओं की ओर से दायर सात याचिकाओं पर सुनवाई करेंगे। इन पीड़ित महिलाओं ने हलाला व बहुविवाह जैसी इस्लामिक रूढ़ियों को भी कोर्ट में चुनौती दी है।
तीन तलाक : मुस्लिम महिलाओं को उनका अधिकार मिलने की संभावना से घबराए मौलाना
गर्मियों की छुट्टियों में इस बार सर्वोच्च न्यायलय द्वारा स्थापित संवैधानिक पीठ तीन तलाक की वैधता पर लगातार सुनवाई करने जा रही है। पिछले साल गर्मियों की छुट्टियों में प्रधानमंत्री ने न्यायधीशों से आग्रह किया था कि न्यायालय का समय बढ़ाने के विषय में सोचा जाए ताकि महत्वपूर्ण फैसलों पर सुनवाई कर उनके विषय में उचित फैसले लिए जा सके और मामला लम्बे समय तक निलंबित होने से बचा रहे जो न्यायिक प्रक्रिया में
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को समझना होगा कि यह देश संविधान से चलता है, मज़हबी कायदों से नहीं!
संविधान से उपर अपने कानूनों को सर्वश्रेष्ठ साबित करने में लगे मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने मुस्लिमों में प्रचलित तीन तलाक और चार शादियों के नियम को उचित ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट से पर्सनल लॉ में दखल न देते हुए इस प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खत्म करने की मांग की है। बोर्ड का कहना है कि ये पर्सनल लॉ पवित्र कुरान और हमारी धार्मिक स्वतंत्रता पर आधारित है, जिसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा