तीन तलाक बिल पर भी तुष्टिकरण की राजनीति के खोल से निकलने में नाकाम रही कांग्रेस
इसे नरेंद्र मोदी की राजनीतिक रणनीति की कामयाबी ही कहेंगे कि व्हिप जारी होने के बावजूद कांग्रेस पार्टी के पांच सांसद मतदान के दौरान सदन से अनुपस्थित रहे। इसका परिणाम यह हुआ कि ‘मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2019’ को राज्यसभा ने 84 के मुकाबले 99 मतों से पारित कर दिया।
तीन तलाक बिल : यह आस्था नहीं, अधिकारों की लड़ाई है!
यह वाकई में समझ से परे है कि कांग्रेस समेत समूचा विपक्ष अपनी गलतियों से कुछ भी सीखने को तैयार क्यों नहीं है। अपनी वोटबैंक की राजनीति की एकतरफा सोच में विपक्षी दल इतने अंधे हो गए हैं कि यह भी नहीं देख पा रहे कि उनके इस रवैये से उनका दोहरा आचरण ही देश के सामने आ रहा है।
लोकसभा में तीन तलाक पर कांग्रेस के रुख ने उसके मुस्लिम हितैषी होने के ढोंग की पोल खोल दी है!
गत 27 दिसंबर की तारीख देश के लिए ऐतिहासिक महत्व की रही। केंद्र सरकार ने तीन तलाक विधेयक को एकबार फिर लोकसभा में पारित करवा लिया। इसके साथ ही देश में मुस्लिम महिलाओं के लिए न्याय का एक अभिनव अध्याय रचने की दिशा में हम आगे बढ़ गए हैं। तीन तलाक कुप्रथा अब किसी से छुपी नहीं है। इस कुप्रथा के चलते दश में हर साल अनगिनत मुस्लिम महिलाओं का जीवन बरबाद हो जाता है।
क्या फतवों से मुस्लिम महिलाओं के आजाद क़दमों को रोक लेंगे, मौलाना ?
देश में कुछ कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा फतवे की तानाशाही का एक माहौल बनाया जा रहा है, जो स्वस्थ लोकतंत्र के लिए हानिकारक है। हम देश में महिलाओं की भागदारी को प्राथमिकता देने की बात करते हैं। अगर मुट्ठीभर कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा दिए गए मुस्लिम महिलाओं पर विवादित फतवों की परवाह करेंगे तो कहीं हमारे देश का महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम पीछे न छूट जाए। मुस्लिम समाज में प्रचलित ‘तीन
तीन तलाक प्रकरण दिखाता है कि महिलाओं के हितों के प्रति समर्पित है मोदी सरकार !
शाह बानो मामले में भी न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया था, मगर तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने शाहबानों का साथ नहीं दिया बल्कि क़ानून बनाकर न्यायालय के फैसले को पलट डाला था। लेकिन, इस बार जब न्यायालय ने तीन तलाक के खात्मे का ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए क़ानून बनाने का जिम्मा सरकार पर डाला है, तब ऐसी सरकार है जो पूरी तरह से मुस्लिम महिलाओं के साथ खड़ी है। न्याय की देवी ने इस
सर्वोच्च न्यायालय ने जब तीन तलाक पर जवाब माँगा था, तब अगर कांग्रेस सरकार होती तो क्या होता ?
तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने केवल मुस्लिम महिलाओं को आजादी ही नहीं दी है, वरन् इससे धर्मनिरपेक्षता के दावेदार भी बेनकाब हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले की सुनवाई के प्रारम्भिक चरण में ही केंद्र सरकार से जवाब मांगा था। कल्पना कीजिये कि तब कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार होती तो क्या होता। क्या ऐसा जवाब दाखिल करने का साहस वो दिखा सकती थी, जैसा वर्तमान भाजपा सरकार ने दिखाया। यदि
तीन तलाक पर रोक के बाद जश्न मना रही मुस्लिम महिलाएं, मौलानाओं के चेहरे हुए गमगीन !
सर्वोच्च न्यायालय के तीन तलाक पर आए ऐतिहासिक फैसले के बाद खबरिया टीवी चैनलों पर बैठे मौलवियों के गमगीन चेहरे और फैसले के स्वागत में देश के अलग-अलग भागों में जश्न मनाती मुसलमान औरतों के चेहरे के फर्क समझिए। फैसले से दोनों की जिंदगी बदलने वाली है। जहां मौलवी खारिज होंगे अपने समाज में, वहीं मुसलमान औरतें बेहतर भविष्य की तरफ बढ़ेंगी। दरअसल तीन तलाक के खिलाफ आवाजें हमेशा
तीन तलाक की अमानवीय व्यवस्था से मुक्त हुई मुस्लिम महिलाएं
एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए देश की सर्वोच्च अदालत की पांच न्यायाधीशों की बेंच ने मंगलवार को मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में फैसला सुनाते हुए तीन तलाक को असंवैधानिक, गैर-कानूनी और अवैध करार दिया है। पांच न्यायधीशों की बेंच में 2:3 के बहुमत से यह फैसला लिया गया। मुख्य न्यायधीश जेएस खेहर और न्यायमूर्ति अब्दुल नज़ीर ने तीन तलाक को धार्मिक मुद्दा बताते हुए इसे न्यायलय के दायरे से बाहर बताया तो वही
तीन तलाक के समर्थक बताएं कि उनके लिए संविधान पहले है या मज़हबी कायदे ?
सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने मुस्लिमों में प्रचलित तीन तलाक, निकाह हलाला जैसी कुप्रथाओं पर सुनवाई शुरू कर दी है। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता में बनी इस पीठ में पांच जज शामिल हैं, जो तीन तलाक पीड़ित मुस्लिम महिलाओं की ओर से दायर सात याचिकाओं पर सुनवाई करेंगे। इन पीड़ित महिलाओं ने हलाला व बहुविवाह जैसी इस्लामिक रूढ़ियों को भी कोर्ट में चुनौती दी है।
तीन तलाक : मुस्लिम महिलाओं को उनका अधिकार मिलने की संभावना से घबराए मौलाना
गर्मियों की छुट्टियों में इस बार सर्वोच्च न्यायलय द्वारा स्थापित संवैधानिक पीठ तीन तलाक की वैधता पर लगातार सुनवाई करने जा रही है। पिछले साल गर्मियों की छुट्टियों में प्रधानमंत्री ने न्यायधीशों से आग्रह किया था कि न्यायालय का समय बढ़ाने के विषय में सोचा जाए ताकि महत्वपूर्ण फैसलों पर सुनवाई कर उनके विषय में उचित फैसले लिए जा सके और मामला लम्बे समय तक निलंबित होने से बचा रहे जो न्यायिक प्रक्रिया में