सभी विघटनकारी शक्तियों को विफल करने का मंत्र है – भारत माता की भक्ति
देश एक करवट ले रहा है। सांस्कृतिक पुनर्जागरण का एक वातावरण भारत में दिखायी देने लगा है। अमृतकाल को अवसर मानकर एक बार फिर भारत अपने ‘स्व’ की ओर बढ़ रहा है।
राष्ट्रीय एकजुटता का संदेश
मोहन भागवत ने हिन्दू-मुस्लिम एकता को लेकर जो कुछ कहा है, उसका उद्देश्य चुनावी राजनीति के संकीर्ण दायरे से कहीं बड़ा और व्यापक है। यह राष्ट्रीय एकजुटता का आह्वान है।
राम मंदिर हमें भान कराता रहेगा कि सत्य को कितना भी दबाया जाए, वो असत्य को मिटा ही देता है
राम देश के राष्ट्र पुरुष हैं। जाहिर है उनका मंदिर राष्ट्र मंदिर होगा जो देश में समरसता, आस्था, मर्यादा का भाव जागृत करता रहेगा।
कोरोना काल में भी राष्ट्र सेवा की अपनी परंपरा को लेकर आगे बढ़ता संघ
देखा जाए तो संघ का ये इतिहास ही रहा है कि देश पर जब भी कोई बड़ी आपदा आई है, संघ के स्वयंसेवक उससे निपटने के लिए कृतसंकल्पित भाव से जुट गए हैं। फिर चाहें वो स्वतंत्रता के पश्चात् पाकिस्तान में हुए दमन से पलायन कर भारत आने वाले हिन्दुओं को आश्रय-भोजन देना हो या फिर 1962 और 1965 के युद्धों में प्रशासन के साथ मिलकर सैनिकों के लिए रसद आदि
संघ प्रमुख के उद्बोधन के निहितार्थ बहुत गहरे हैं
देश में कभी भी कोई बड़ा मामला आता है अथवा कोई विमर्श खड़ा होता है, तो देश का एक बड़ा तबका यह जानने के लिए उत्सुक रहता है कि इस विषय पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की क्या राय है। आज भी यह प्रश्न उठ रहा है कि मौजूदा कोरोना के महासंकट से बाहर आने एवं वर्तमान में कोरोना वायरस से उपजी चुनौतियों से निपटने की दिशा में आरएसएस किस भूमिका का निर्वहन कर रहा है?
संघ की संकल्पना : ‘सेवा उपकार नहीं, करणीय कार्य है’
देश के किसी भी हिस्से में, जब भी आपदा की स्थितियां बनती हैं, तब राहत/सेवा कार्यों में राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ के कार्यकर्ता बंधु अग्रिम पंक्ति में दिखाई देते हैं। चरखी दादरी विमान दुर्घटना, गुजरात भूकंप, ओडिसा चक्रवात, केदारनाथ चक्रवात, केरल बाढ़ या अन्य आपात स्थितियों में संघ के स्वयंसेवकों ने पूर्ण समर्पण से राहत कार्यों में अग्रणी रहकर महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया।
कोरोना संकट : डॉ. मोहन भागवत ने अपने संबोधन में दिखाई नई राहें
कोरोना संकट से विश्व मानवता के सामने उपस्थित गंभीर चुनौतियों को लेकर दुनिया भर के विचारक जहां अपनी राय रख रहे हैं, वहीं दुनिया के सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के संवाद ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है।
‘राम मंदिर बनने से देश में सद्भावना और एकात्मता का वातावरण बनेगा’
विजयादशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश की जनता के सामने दरपेश मुद्दों पर खुलकर विचार विमर्श करता है। संघ का उद्देश्य यही होता कि देश और देश की जनता को कैसे सर्वश्रेष्ठ बनाया जाए। देश की सुरक्षा से लेकर सामाजिक समरसता के हर मुद्दे पर सरसंघचालक खुलकर अपनी बात रखते हैं। देश की जनता इस उद्बोधन का इन्तजार भी करती है।
संघ के प्रति कुप्रचारित भ्रमों को दूर करने का प्रयास
जब तमाम प्रकार की सच्ची-झूठी बातें किसी सामाजिक संगठन को लेकर फैलाई जा रही हों, तब ऐसी स्थिति में यह जरूरी हो जाता है कि वह संगठन अपना पक्ष व विचार देश के समक्ष रखे। आरएसएस जैसे विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन के लिए तो यह और जरूरी हो जाता है, क्योंकि आज़ादी के पश्चात् ही संघ को लेकर तमाम प्रकार की भ्रांतियों और मिथकों को बड़े स्तर
मोहन भागवत ने संघ के विषय में जो बताया, संघ हमेशा से वैसा ही है!
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका समाज में राजनीतिक विमर्श की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव में संघ ने एक मार्गदर्शक की यथोचित भूमिका निभाई थी। गत दिनों संघ ने अपने मंच पर देश की अलग-अलग विचारधाराओं से सम्बंधित लोगों को आमंत्रित करके एक सन्देश देने की कोशिश की है कि राष्ट्र निर्माण में सभी जाति, समुदाय