यूपी में योगी राज का मतलब
हरेक फैसले का अपना सांकेतिक महत्व होता है। हरेक संकेत के अपने राजनीतिक निहितार्थ। हरेक राजनीतिक निहितार्थ में भविष्य की तैयारी छुपी होती है। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य की कमान योगी आदित्यनाथ के हाथ में देकर भाजपा नेतृत्व और प्रधानमंत्री नरेंद्रभाई दामोदरदास मोदी ने संकेत दे दिए हैं कि भाजपा जड़ों से कभी हटी ही नहीं थी। भाजपा ‘सबका साथ, सबका विकास’ करेगी, लेकिन किसी
भाजपा की यूपी विजय के निहितार्थ को समझें, अंधविरोधी !
वक्तव्य-पूर्व (प्रोलॉग)- एक कथा है। नेपोलियन की। वह एक बार अपने कार्यालय आया, और खूंटी पर अपना कोट टांगना चाहा। खूंटी उसके कद से थोड़ी ऊंची थी। उसके सहायक ने कहा, लाइए सर…मैं टांग देता हूं, आपसे लंबा हूं।’ नेपोलियन ने उसे मुड़कर देखा, मुस्कुराया और कहा- ‘हां, तुम मुझसे लंबे हो, पर ऊंचे नहीं हो।’
यूपी की जीत दिखाती है कि अब भी कायम है मोदी मैजिक !
कहते हैं कि राह जितनी मुश्किल होगी, जीत उतनी ही बड़ी होगी। कुछ ऐसा ही भारतीय जनता पार्टी के साथ हो रहा है। एक समय केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के लिए कड़ी मेहनत करने वाली अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी की जोड़ी एक के बाद एक जीत का परचम लहराती ही जा रही है। केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के बाद इस जोड़ी ने विधानसभा चुनावों में भी जीत दर्ज कर ली है। यूपी जैसे राज्य में जीत दर्ज
यूपी को ये वाला ‘साथ’ पसंद है !
पांच राज्यों के चुनाव परिणाम लगभग-लगभग आ चुके हैं। यूपी और उत्तराखंड में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिल चुका है। गोवा और मणिपुर में अभी स्थिति स्पष्ट नहीं हुई है। दस साल से पंजाब की सत्ता में रहे अकाली दल और भाजपा के गठबंधन को इसबार संभवतः सत्ता-विरोधी रुझान के कारण हार का सामना करना पड़ा है। बहरहाल, इन पाँचों राज्यों में उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणामों को लेकर लोगों में सर्वाधिक
यूपी चुनाव : भाजपा के पक्ष में दिख रहे जीत के सभी समीकरण
देश का पूरा राजनीतिक विमर्श उत्तर प्रदेश पर केंद्रित है। पांच राज्यो के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश का अपना अलग महत्त्व है। यह भी तय है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम देश की आगामी राजनीतिक दशा और दिशा को तय करने वाले सिद्ध हो सकते हैं। पूरे देश में इस चुनाव को लेकर जबरदस्त ऊहापोह है, जिज्ञासा है। सपा-कांग्रेस गठबंधन, बसपा और भाजपा के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है और चारो तरफ
व्यंग्य : उत्तर प्रदेश में ‘काम’ के बोलने की कहानी
इक्कीसवीं सदी की जवानी परवान पर थी। ‘उत्तम प्रदेश’ में ‘समाजवादी प्रजातंत्र’ का ज़बर्दस्त जलवा था। जलवा भी ऐसा-वैसा नहीं! बस यूं समझ लीजिए कि ‘काम’ बोलता था। ‘प्रजातंत्र’ के ‘प्रजापति’ लोग ‘कामुकता’ की पराकाष्ठा पार कर चुके थे। ‘काम’ बोलता रहा और ‘उत्तम प्रदेश’ में ‘प्रजातंत्र’ कब ‘प्रजापति-तंत्र’ में तब्दील हो गया, किसी को पता भी नहीं चला। वहां की सरकार में ‘प्रजापति’ की जगह पक्की रहती
यूपी चुनाव : सोशल इंजीनियरिंग के नए समीकरण
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अपने अंतिम चरण में है। सियासी समीकरण कयासों की कसौटी पर अलग-अलग ढंग से कसे जा रहे हैं। यूपी का ताज किसके सर बंधेगा और कौन इस इस जंग में मुंह की खायेगा, इस सवाल पर सियासी पंडित अलग-अलग आकलन कर रहे हैं। हालांकि अलग-अलग जानकारों का अलग-अलग आकलन होने के बावजूद एक बात पर सभी सहमत नजर आ रहे हैं कि लड़ाई के केंद्र में
गायत्री प्रजापति को बचाना कौन-सी क़ानून व्यवस्था है, अखिलेश जी ?
यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री और अमेठी विधानसभा क्षेत्र से सपा प्रत्याशी गायत्री प्रजापति जो पहले से ही खनन घोटाले सम्बन्धी आरोपों से घिरे थे, पर बलात्कार जैसे जघन्य अपराध का आरोप सामने आना सपा की मुश्किलें बढ़ा सकता है। दरअसल मामला कुछ यूँ है कि विगत दिनों एक महिला द्वारा गायत्री प्रजापति पर यह आरोप लगाया गया है कि २०१४ में उन्होंने उसे प्लाट दिलाने के बहाने अपने लखनऊ स्थित
यूपी चुनाव : अपने विकासवादी एजेंडे के साथ प्रदेश में सबसे मज़बूत नज़र आ रही भाजपा
उत्तर प्रदेश सात चरणों में से तीन चरण के चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं। प्रदेश की आवाम लोकतंत्र के इस पर्व को पूरे उत्साह के साथ मना रही है। यही कारण है कि जैसे -जैसे मतदान के चरण आगे बढ़ रहे है, वोटिंग फीसद भी 2012 के मुकाबले बढ़ रहा है। मतदान प्रतिशत बढ़ना अक्सर भाजपा के लिए फायदेमंद साबित होता है, इसलिए ये सपा-कांग्रेस गठबंधन की चिंता को बढ़ा रहा है, तो भाजपा की उम्मीदों को और
राजनीति में परिवारवाद और वंशवाद की बहस
तीन चरणों का चुनाव समाप्त होने के बाद अब यूपी के सियासी तापमान का पारा पश्चिम से पूरब की ओर बढ़ चला है। आगामी चरणों में पूर्वी उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं लिहाजा सभी दलों के नेता पूरब का रुख कर चुके हैं। यूपी चुनाव में वंशवाद और परिवारवाद की बहस भी खूब हो रही है। लगभग हर एक पत्रकार वार्ता में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह सहित भाजपा के आला नेताओं से यह सवाल पूछा जाता है।