राजनीति नहीं, राष्ट्रवाद की पोषक थी दीनदयाल उपाध्याय की भावना
भारतीय स्वतंत्रता के पूर्व राम राज्य की जो परिकल्पना पेश की गयी थी, उसे कांग्रेस की छद्म धर्मनिरपेक्षता निगल गयी। कांग्रेस ने आजादी के पहले ही अपने लिए एक रास्ता तय कर लिया था, जहां मुस्लिम तुष्टिकरण को धर्मनिपेक्षता का आवरण ओढ़ा दिया गया और इसके सहारे बहुसंख्यक हिंदुओं के मूल भावना से लगातार खिलवाड़ किया जाने लगा। इस कुकृत्य में तब के कांग्रेस के सभी शीर्ष नेता शामिल थे।
परिवार और राजनीति के बीच अंतर का आदर्श स्थापित करते प्रधानमंत्री मोदी
गत दिनों भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा आगामी विधानसभा चुनाव के संदर्भ में कहा गया कि भाजपा इन चुनावों में अवश्य जीत हासिल करेगी, लेकिन इसके लिए मेहनत की आवश्यकता है। साथ ही, उन्होंने यह हिदायत भी दी कि पार्टी नेता अपने परिवार के सदस्यों के लिए टिकट न मांगें। इस बयान के गहरे और व्यापक निहितार्थ हैं, जिन्हें समझने की आवश्यकता है। दरअसल आज देश
भारत ही नहीं, समूचे विश्व के लिये प्रेरणा के स्रोत हैं अटल बिहारी वाजपेयी
‘हार नहीं मानूंगा, रार ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ’ जैसीे कविताओं से सभी के ह्रदय को जीतने वाले महान भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय परिप्रेक्ष्य में हुए, जिन्होंने राजनीति के साथ साहित्य के क्षेत्र में अपनी लेखनी चलाकर हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाया और पूरी निष्ठा से संघ के कार्य में जुटकर देश को आगे ले जाने में अपना बहुमूल्य योगदान देना शुरू किया। श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पण्डित
जानिये क्यों है भाजपा ‘पार्टी विद अ डिफरेंस’!
उसवक़्त मेरे पास मोबाइल तो नहीं, मगर एक डायरी हुआ करती थी, जिसमें कुछ महत्त्वपूर्ण सामाजिक-राजनीतिक लोगों के लैंडलाइन नं थे। तब शायद मोबाइल होना बड़ी बात थी। यही कोई 4:30-5:00 बजे का वक्त रहा होगा। मैंने बड़े संकोच और द्वन्द्व के साथ एक टेलीफोन बूथ पर जाकर एक लैंडलाइन नं डायल किया, दूसरी तरफ से जो आवाज आई, उसकी आत्मीयता और अपनेपन ने मेरी सारी झिझक, सारा संकोच क्षण भर में दूर कर दिया।