पाबंदी के बावजूद हाथरस जाने वाले राहुल-प्रियंका आज बल्लभगढ़ क्यों नहीं जा रहे ?
फरीदाबाद में हुई निकिता की हत्या पर न असहिष्णुता गैंग को न्याय चाहिए न ही विपक्षी दल को। यह पहली बार नहीं है जब विपक्षी दल ऐसी दोहरी मानसिकता दिखा रहे हैं
कमलनाथ ने नया कुछ नहीं कहा, महिलाओं के प्रति कांग्रेस की सोच ही यही है
कांग्रेस पार्टी महिलाओं के नाम पर सिर्फ राजनीतिक रोटियां सेंकने का काम करती है। कांग्रेस के तमाम बड़े नेता समय-समय पर महिलाओं पर अभद्र टिप्पणी करते रहे हैं
हाथरस मामले में हंगामा मचाने वाले राहुल-प्रियंका करौली की घटना पर मुंह में दही क्यों जमाए हैं ?
यदि राहुल और प्रियंका आम आदमी के इतने ही हिमायती हैं तो वे बलरामपुर और करौली क्यों नहीं गए। इस पर उन्होंने कोई ट्वीट क्यों नहीं किया।
चीन को खदेड़ने के लिए पंद्रह मिनट मांगने वाले राहुल की कांग्रेस साठ सालों तक क्या कर रही थी ?
चीन को खदेड़ने के लिए 15 मिनट मांगने वाले राहुल गांधी को पहले पिछले साठ सालों में कांग्रेसी सरकारों द्वारा की गई भूलों पर देश से माफी मांगनी चाहिए।
राहुल गांधी की बचकानी हरकतों के कारण सिमट रही है कांग्रेस
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी जिस प्रकार की बचकानी हरकतें करते रहे हैं उससे वे हर तरफ हास्य का पात्र बन जाते हैं।
‘कांग्रेस तेजी से जिस रास्ते पर बढ़ रही है, वो पतन के अलावा और कहीं नहीं जाता’
कांग्रेस के अंदर नेतृत्व के प्रति असंतोष और निराशा का भाव बढ़ रहा है, लेकिन इस परिवारवाद की पट्टी आँखों पर बांधे पार्टी इस बात की अनदेखी करने में लगी है।
वंशवाद, अहंकार और अदूरदर्शिता के भँवर में फँसकर पतन की ओर बढ़ती कांग्रेस
चाटूकारों और अवसरवादियों की भीड़ और उनकी विरुदावलियाँ किसी नेतृत्व के अहं को तुष्ट भले कर दें, पर इनसे वे सर्वस्वीकृत, सार्वकालिक, और महान नहीं बनते।
अतीत से सबक न ले रही कांग्रेस के लिए भविष्य और कठिन होने वाला है
सोमवार को कांग्रेस की बैठक में से एक के बाद एक आए बयानों का सार यही है कि इस पार्टी के लिए गांधी परिवार ही सबकुछ है।
सियासी मजबूरी में हिंदुत्व का चोला ओढ़ रही कांग्रेस
जो कांग्रेस अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि स्थल को राम जन्मभूमि परिसर कहने से संकोच करती थी, वही कांग्रेस आज खुलकर राम मंदिर के पक्ष में खड़ी दिख रही है।
कोरोना संकट में श्रमिकों पर राजनीति कर विपक्षी दलों ने अपना असल चरित्र दिखा दिया
अंध-विरोध को ही अपनी राजनीति का मूल बना चुके विपक्षी दलों का रुख इस दौर में उत्तरदायित्वशून्य और निराशाजनक रहा है।