क्या दिल्ली चुनाव से पहले ही कांग्रेस अपनी हार स्वीकार कर चुकी है?
दिल्ली के चुनाव आज देश का सबसे चर्चित मुद्दा हैं। इसे भारतीय राजनीति का दुर्भाग्य कहें या लोकतंत्र का, कि चुनाव दर चुनाव राजनैतिक दलों द्वारा वोट हासिल करने के लिए वोटरों को विभिन्न प्रकार के प्रलोभन देना तो जैसे चुनाव प्रचार का एक आवश्यक हिस्सा बन गया है।
मोदी राज में मुसलमानों के सशक्तिकरण से घबड़ाई कांग्रेस
मोदी सरकार का सर्वाधिक बल मुसलमानों का शैक्षिक पिछड़ापन दूर करने पर है। इसके लिए सरकार मदरसों को आधुनिक बनाने के लिए थ्री-टी योजना अर्थात टायलेट, टिफिन और टीचर पर काम कर रही है। इसके तहत देश भर के मदरसों में एक लाख शौचालय बनवाने का लक्ष्य रखा गया है
राहुल गांधी का ‘रेप इन इंडिया’ बयान कांग्रेस की वैचारिक पतनशीलता का ही सूचक है
गलती से गलत बात बोल देना भी उतना गलत नहीं होता, जितना कि गलत बात को न्यायोचित ठहराते हुए गलती पर अड़े रहना। राहुल गांधी इस दूसरी वाली अवस्था में हैं। जनाधार के साथ ही इस पार्टी की वैचारिकता और भाषाई संस्कार भी खो गए हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि उन्होंने ‘रेप इन इंडिया’ के रूप में एक सतही और ओछी बात कही है,
तथ्य बताते हैं कि गांधी परिवार के लिए एसपीजी सुरक्षा से अधिक ‘स्टेटस सिंबल’ ही थी
देश में सामाजिक और आर्थिक के साथ-साथ राजनीतिक सुधार का भी दौर चल रहा है। एक बार फिर इसकी मिसाल पेश करते हुए मोदी सरकार ने राज्यसभा और लोकसभा में एसपीजी बिल पास कर दिया। संभवतः आप सोच रहे होंगे कि आखिर एसपीजी बिल और राजनीतिक सुधारों का क्या मेल! दरअसल पिछले करीब तीन दशक में देश में गांधी परिवार (सोनिया, राहुल और प्रियंका) ने एसपीजी सुरक्षा को एक स्टेटस सिंबल बना लिया था
कांग्रेस के वास्तविक राजनीतिक चरित्र को ही दिखाता है चौरासी का सिख विरोधी दंगा!
यही नवम्बर महीने के शुरूआती दिन थे और साल था 1984, जब राजधानी दिल्ली की सड़कों पर मौत का तांडव मचा कर करीब 3 हजार सिखों का कत्लेआम कर दिया गया। कुछ दिनों बाद इंदिरा के बेटे राजीव गांधी ने जैसे इस नरसंहार को जायज ठहराते हुए कहा कि जब एक बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है।
कांग्रेस आलाकमान के लिए शुभ संकेत नहीं हैं हरियाणा-महाराष्ट्र के चुनावी नतीजे
2014 के लोक सभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद से ही कांग्रेस हाईकमान के खिलाफ आवाज उठनी शुरू हो गईं थी लेकिन चाटुकार संस्कृति के हावी होने के कारण विरोध की आवाज दब गई। जिन नेताओं ने बागी तेवर दिखाया उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इसके बाद कई राज्यों में कांग्रेस को करारी हार का सामना पड़ा लेकिन हाईकमान संस्कृति के खिलाफ बोलने का दुस्साहस बहुत कम कांग्रेसियों ने दिखाया।
जिम्मेदार विपक्ष की तरह व्यवहार करना कब सीखेगी कांग्रेस?
नोटबंदी 2016 में हुई थी और जीएसटी 2017 में पारित हुआ। इन दोनों निर्णयों के बाद हुए ज्यादातर राज्यों के चुनावों सहित इस वर्ष हुए लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस खासकर उसके युवराज राहुल गांधी ने इसे खूब मुद्दा बनाया। राफेल का राग भी गाया गया। लेकिन इन मुद्दों का कोई असर नहीं रहा और अधिकांश चुनावों में भाजपा को विजय प्राप्त हुई। लोकसभा चुनाव में तो पार्टी ने
सिमटते दायरे के बावजूद आत्ममंथन से कतराती कांग्रेस
कांग्रेस पार्टी आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। 2017 में जब राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बने थे तब देश को उम्मीद थी कि अब कांग्रेस में एक नए युग का सूत्रपात होगा और पार्टी पुरानी सोच से आगे बढ़ेगी। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को मिली करारी शिकस्त के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया
हरियाणा-महाराष्ट्र चुनाव : नेतृत्व से लेकर संगठन तक बदहाली से जूझती कांग्रेस
हरियाणा कांग्रेस चौराहे पर खड़ी है। जैसे-जैसे मतदान की तारीख करीब आ रही है, पार्टी में और अधिक खामियां व अंतर्कलह सतह पर आ रही है। हरियाणा कांग्रेस के पूर्व प्रमुख अशोक तंवर ने पार्टी छोड़ने की घोषणा कर दी है। इस्तीफे के बाद उन्होंने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर कई गंभीर सवाल उठाए। उनके इस रुख से कांग्रेस पार्टी की रही सही उम्मीदों को पलीता लग सकता है।
कांग्रेस को समझना चाहिए कि अपने नेता के साथ खड़े होने और उसे ‘क्लीन चिट’ देने में फर्क है
चिदंबरम दोषी हैं या नहीं, ये फैसला तो न्यायालय करेगा लेकिन खुद एक वकील होने के बावजूद उनका खुद को बचाने के लिए कानून से भागने की कोशिश करना, सीबीआई के लिए अपने घर का दरवाजा नहीं खोलना, समझ से परे है। लेकिन अब जब आखिर लगभग 19 महीनों की जद्दोजहद के बाद सीबीआई चिदंबरम के लिए कोर्ट से पाँच दिन की