‘चौकीदार चोर है’ का नारा उछालने के कारण अब बुरे फँसे राहुल गांधी
कोर्ट ने राहुल गांधी को लताड़ लगाते हुए सफाई मांगी और पूछा कि अदालत ने प्रधानमंत्री के खिलाफ ‘चौकीदार चोर’ जैसे शब्दों का प्रयोग कब किया है? इसकी सुनवाई स्वयं मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की बेंच ने की और कहा कि कोर्ट ने ऐसी टिप्पणी नहीं की है। राहुल ने कोर्ट के वक्तव्य को तोड़-मरोड़कर पेश किया है। कोर्ट ने राहुल को 22 अप्रैल तक जवाब पेश करने की मोहलत दी है और मीनाक्षी लेखी की याचिका पर 23 अप्रैल को सुनवाई होनी है।
‘खोट ईवीएम में नहीं, विपक्षी दलों की नीयत में है’
लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान हो चुका है, लेकिन देश में ईवीएम को लेकर विपक्षी दलों का विलाप थमने का नाम नहीं ले रहा। बीते रविवार को कांग्रेस, आप, टीडीपी आदि विपक्षी दलों द्वारा प्रेसवार्ता में कहा गया कि वे पचास प्रतिशत वीवीपैट पर्चियों का मिलान ईवीएम वोटों से करवाने की मांग लेकर सर्वोच्च न्यायालय में जाएंगे। गौरतलब है कि इससे पूर्व इक्कीस विपक्षी दलों की एक ऐसी ही याचिका को सर्वोच्च न्यायालय खारिज कर चुका है।
राजनीति में परिवारवाद की सभी सीमाएं पार करती जा रही कांग्रेस
आखिर राबर्ट पार्टी में किस पद पर हैं, उनके बच्चे पार्टी में कौन सी अहम भूमिका अदा कर रहे हैं जो वे रिटर्निंग आफिसर के कक्ष तक नामांकन के समय चले गए। ये कृत्य क्या कांग्रेस द्वारा राजनीति में परिवारवाद की सभी मर्यादाओं को पार कर जाने का ही सूचक है।
घोषणापत्र : भाजपा के वादे हैं व्यावहारिक, कांग्रेस के वादे यथार्थ के धरातल से दूर
चुनावी घोषणापत्र महज वादों का पिटारा नहीं होना चाहिये। इसमें देश के विकास की वैसी तस्वीर पेश की जानी चाहिये, जिसे मूर्त रूप दिया जा सके। बहरहाल, चुनावी रणभूमि में देश की दोनों प्रमुख पार्टियां, भाजपा और कांग्रेस ने अपने-अपने घोषणा पत्र को पेश कर दिया है। भाजपा ने अपने घोषणा पत्र को संकल्प पत्र का नाम दिया है, जबकि कांग्रेस ने ‘हम निभाएंगे’ लिखा है।
रोजगार पर जुमलेबाजी कर रहे हैं राहुल गांधी
एक ओर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कांग्रेस की सरकार बनने पर मार्च 2020 तक 22 लाख सरकारी पदों को भरने का चुनावी वादा कर दिया है, तो दूसरी ओर कांग्रेस के घोषणापत्र में हर साल 4 लाख सरकारी नौकरियां देने की बात कही गई है। ऐसे में राहुल गांधी अतिरिक्त 18 लाख नौकरियों की बात किस आधार पर कर रहे हैं?
भ्रम से बाहर आएं राहुल गांधी, देश की एकता-अखंडता उनके वायनाड जाने की मोहताज नहीं है!
अमेठी में स्मृति ईरानी की सक्रियता से पहले यह कल्पना भी कठिन थी कि राहुल गांधी किसी अन्य क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे। पिछले लोकसभा चुनाव में यहां से राहुल गांधी ने स्मृति ईरानी को पराजित किया था।। लेकिन इसके बाद चुनावी इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ा।
कभी ‘जनेऊधारी हिन्दू’ तो कभी मुस्लिम लीग के झंडे, ये दोहरापन ही कांग्रेस का असल चरित्र है!
बहुत दिन नहीं बीते जब राहुल खुद को जनेऊधारी हिंदू बताते थक नहीं रहे थे और गोत्र का भी प्रचार करते फिर रहे थे। और जब मुस्लिम बाहुल्य सीट पर पहुंचे तो मुस्लिमों का ध्रुवीकरण करने के लिए मुस्लिम प्रतीकों को प्रदर्शित करते झंडों के जरिये ध्रुवीकरण की कोशिश करने लगे। लेकिन विडंबना देखिये कि ‘वंदे मातरम’ और ‘जय श्री राम’ कहने में
‘चौकीदार को चोर बताने का राहुल गांधी का दाँव उल्टा पड़ गया है’
चौकीदार को चोर बताना राहुल गांधी को अब भारी पड़ेगा। नरेन्द्र मोदी ने इसे सुशासन और नेशन फर्स्ट की अवधारणा से जोड़ दिया है। इस आधार पर मोदी ने अपने पांच वर्षों के शासन का हिसाब दिया, साथ ही कांग्रेस के शासन को भी कसौटी पर रखा है, जिस पर आर्थिक गड़बड़ी के बहुत आरोप रहे हैं।
भाजपा के भय से वायनाड गए राहुल के पीछे पड़े वामपंथी
बीच लड़ाई में अगर सेनापति मैदान छोड़कर किनारा कर ले तो उस मुकाबले का परिणाम आप सहज सोच सकते हैं। बात यहाँ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी की हो रही है, जिन्होंने चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस का गढ़ कही जाने वाले अमेठी की सीट के साथ ही एक ऐसी सीट से भी चुनाव लड़ने का मन बनाया है जहाँ उनके हार की सम्भावना नहीं के बराबर कही जा रही।
‘राहुल का वायनाड जाना बताता है कि स्मृति ईरानी ने चुनाव से पूर्व ही आधी लड़ाई जीत ली है’
अमेठी एक तरह से ऐसा माना जाता रहा है कि कोई आए, जीतेगी कांग्रेस ही, किन्तु इस मिथक को स्मृति ईरानी ने पिछले लोकसभा चुनाव में कड़ी टक्कर देकर तोड़ दिया। इसके बाद ऐसा शायद पहली बार देखने को मिला कि एक पराजित प्रत्याशी अपने हारे हुए संसदीय क्षेत्र के विकास के लिए न केवल चिंतित है