लोकतंत्र

‘भारत में संविधान-लोकतंत्र सब सुरक्षित हैं, असुरक्षा केवल गलत कार्य करने वालों के लिए है’

विपक्षी एकता के बीच आर्क विशप अनिल के बयान को संयोग मात्र ही कहा जा सकता है। लेकिन, सन्दर्भ और मकसद की समानता शक पैदा करती है। उन्होंने जाने-अनजाने विवाद का मौका दिया है। कहा जा रहा है कि भाजपा को अब विपक्ष के साथ चर्च के विरोध का भी सामना करना पड़ेगा। इस कयास को ममता बनर्जी और कई अन्य नेताओं के बयान से बल मिला। उन्होंने

लाल बत्ती के अंत से लोकतान्त्रिक मूल्यों को मिलेगी और मजबूती

लाल बत्ती एक ऐसे संस्कृति के रूप में उभर चुकी थी, जिसने नेताओं व अधिकारियों को इस मानसिकता से ग्रस्त कर दिया था कि वह शासक हैं और जनता पर शासन करेंगे जो लोकतंत्र के मूल चरित्र के खिलाफ़ था। अक्सर यह देखने को मिलता कि जब भी हमारे द्वारा चुने गये प्रतिनिधि अथवा लाल बत्ती से लैस शासन-प्रशासन के लोग अपने काफिले के साथ सड़क से गुजरते थे, तब उनके लिए ट्रेफिक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता में सरकार के प्रति विश्वास जगाया है!

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान देश राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक हर प्रकार से एक अन्धकार में था। संप्रग-नीत सत्ता भ्रष्टाचार के दलदल में आकंठ डूबी थी, जिसके कारण देश का आर्थिक ढांचा चरमरा रहा था और यह सब देखकर समाज में घनघोर निराशा व्याप्त थी। ऐसे समय में देश के सामने गुजरात के विकास मॉडल की उजली तस्वीर लेकर नरेंद्र मोदी आए।

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में हो रहा भारत का पुनर्निर्माण

भावी भारत के निर्माण और प्राचीन भारत के मूल स्वरुप की जब बात आती है तो यह बहस शुरू हो जाती है कि आखिर ‘भारत’ है क्या ? क्या यह महज संविधान शासित लोकतांत्रिक राज्य वाला एक भू-भाग मात्र है अथवा इससे आगे भी इसकी कोई पहचान है ? इस बहस के सन्दर्भ में अगर समझने की कोशिश की जाय तो भारत कोई 1947 में पैदा हुआ देश नहीं है।