वायनाड

भ्रम से बाहर आएं राहुल गांधी, देश की एकता-अखंडता उनके वायनाड जाने की मोहताज नहीं है!

अमेठी में स्मृति ईरानी की सक्रियता से पहले यह कल्पना भी कठिन थी कि राहुल गांधी किसी अन्य क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे। पिछले लोकसभा चुनाव में यहां से राहुल गांधी ने स्मृति ईरानी को पराजित किया था।। लेकिन इसके बाद चुनावी इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ा।

कभी ‘जनेऊधारी हिन्दू’ तो कभी मुस्लिम लीग के झंडे, ये दोहरापन ही कांग्रेस का असल चरित्र है!

बहुत दिन नहीं बीते जब राहुल खुद को जनेऊधारी हिंदू बताते थक नहीं रहे थे और गोत्र का भी प्रचार करते फिर रहे थे। और जब मुस्लिम बाहुल्य सीट पर पहुंचे तो मुस्लिमों का ध्रुवीकरण करने के लिए मुस्लिम प्रतीकों को प्रदर्शित करते झंडों के जरिये ध्रुवीकरण की कोशिश करने लगे। लेकिन विडंबना देखिये कि ‘वंदे मातरम’ और ‘जय श्री राम’ कहने में

भाजपा के भय से वायनाड गए राहुल के पीछे पड़े वामपंथी

बीच लड़ाई में अगर सेनापति मैदान छोड़कर किनारा कर ले तो उस मुकाबले का परिणाम आप सहज सोच सकते हैं। बात यहाँ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी की हो रही है, जिन्होंने चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस का गढ़ कही जाने वाले अमेठी की सीट के साथ ही एक ऐसी सीट से भी चुनाव लड़ने का मन बनाया है जहाँ उनके हार की सम्भावना नहीं के बराबर कही जा रही।