लाल किले से अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने नए भारत की उपलब्धियों और आकांक्षाओं को स्वर दिया है!
मोदी ने स्वयं को कभी भी शासक अथवा राष्ट्राध्यक्ष की तरह नहीं, अपितु सदैव एक सेवक या सदस्य के तौर पर ही बताया है, उसी अनुसार आचरण भी किया है।
सौ करोड़ टीकाकरण की गौरवशाली उपलब्धि पर भी नकारात्मक राजनीति में जुटा विपक्ष
देश में कोरोना संक्रमण के मद्देनजर चल रहे टीकाकरण अभियान के अन्तर्गत 21 अक्टूबर को कुल सौ करोड़ डोज लगाए जाने का लक्ष्य हासिल किया गया।
सच से दूर और राजनीति से प्रेरित है कथित किसान आंदोलन
जनता सब देख रही है और वास्तविक मुद्दों पर आधारित आंदोलन तथा राजनीति प्रेरित आंदोलन का मतलब बखूबी समझती है। इसका हिसाब भी जरूर करेगी।
संसद में विपक्ष का शर्मनाक आचरण उसकी नाकामी और बौखलाहट को ही दर्शाता है
सरकार को घेरने के लिए विपक्ष के पास उचित मुद्दे नहीं हैं, इसलिए नाकामी और बौखलाहट में वो कभी शर्मनाक हंगामे से संसद को बाधित करते हैं तो कभी सड़क पर विरोध करने लगते हैं।
मॉनसून सत्र : व्यर्थ हंगामा करके संसद को बाधित करने की संकीर्ण राजनीति से बाज आए विपक्ष
मॉनसून सत्र को एक सप्ताह से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन इस दौरान शायद ही कोई दिन ऐसा बीता हो जब विपक्षी सांसदों के हंगामे के कारण सदन की कार्यवाही स्थगित न करनी पड़ी हो।
लगातार पराजय के बाद भी बदलाव को तैयार नहीं कांग्रेस
कई राज्यों में कांग्रेस की विपक्ष की हैसियत भी नहीं बची है। हाल ही में संपन्न हुए पांच राज्यों के चुनाव में दो और राज्यों में कांग्रेस का विपक्ष का ओहदा छिन गया।
विरोधियों के लिए नामुमकिन है मोदी को समझना
उनका जितना विरोध होता है, जितना अपशब्दों का प्रयोग किया जाता है, उतना ही वह आगे बढ़ते जाते हैं। विपक्ष देखता रह जाता है, नरेंद्र मोदी आगे निकल जाते हैं।
वैश्विक नेता के रूप में स्थापित होते प्रधानमंत्री मोदी
‘मॉर्निंग कन्सल्ट’ नामक सर्वे एजेंसी द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना के दौरान प्रधानमंत्री मोदी के कार्यों को 75 प्रतिशत लोगों ने सही ठहराया है।
कृषि सुधार कानूनों को लेकर किसानों में भ्रम फैलाने का राजनीतिक कुचक्र
ये आंदोलन सीमित क्षेत्र में है, जबकि देशभर के बहुसंख्यक किसान कृषि सुधारों के पक्ष में हैं। अतः जो राजनीति करने पर तुले हुए लोग हैं, जो किसानों के कंधों पर बंदूकें रखकर राजनीति कर रहे हैं, देश के सारे जागरुक किसान उनको भी परास्त करके रहेंगे।
हाथरस प्रकरण के बहाने रची गयी दंगों की साज़िश के खुलासे से उपजते सवाल
हाथरस में हुई घटनाओं के संदर्भ में जाँच एजेंसियों के खुलासे ने भी इसकी पुष्टि कर दी है। जो तथ्य निकलकर सामने आए हैं, वे चौंकाने वाले हैं।