वाम-विलासियों के ‘अंतहीन’ विमर्श का अंत जरुरी
हमारे सभ्य समाज में सबसे महत्वपूर्ण अगर कुछ है तो वह ‘विमर्श’ है। बहस-मुबाहिसा, शास्त्रार्थ, वाद-विवाद, मतैक्य-मतभिन्नता, सहमति-असहमति, पक्ष-विपक्ष, पंचायत आदि के बिना किसी नतीजे पर पहुचना केवल तानाशाही में ही संभव है। लोकतंत्र और सभ्य समाज में तो मानवता के लिए यह प्रक्रिया एक वरदान ही है। अभिव्यक्ति की आज़ादी का सबसे सुन्दर रूप है हर पक्ष को सुनना, उन्हें अपनी बात रखने देना, विरोधी विचारों को समादर की दृष्टि से देखना।