संसद

राष्ट्रपति के अभिभाषण का सन्देश

भारत के संविधान में संसदीय शासन व्यवस्था को स्वीकार किया गया है। इसमें राष्ट्रपति कार्यपालिका का संवैधानिक प्रमुख होता है। अनुच्छेद-52 के अनुसार कार्यपालिका की शक्तियां उसी में निहित रहती हैं। संविधान के अनुच्छेद-79 के अनुसार वह संसद का एक अंग होता है।

पराजय से सबक लेना कब शुरू करेंगे, राहुल गांधी?

गुरुवार को संसद का संयुक्‍त सत्र था। इसमें महत्‍वपूर्ण बात राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद का अभिभाषण था। इसमें उन्‍हें संसद के दोनों लोकसभा एवं राज्‍यसभा के सत्रों को संबोधित करते हुए पिछली सरकार के कार्यों का उल्‍लेख करना था। सब कुछ तय कार्यक्रम के अनुसार चल रहा था। राष्‍ट्रपति अपना अभिभाषण शुरू कर चुके थे कि तभी कुछ अप्रत्‍याशित सा हुआ।

संसद में मोदी ने जो कहा है, उसकी गूँज दूर तक जाएगी!

बीते दिनों संसद के बजट सत्र का समापन हुआ। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना महत्‍वपूर्ण भाषण दिया। भाजपा सरकार के मौजूदा कार्यकाल का यह अंतिम भाषण था, इसलिए भी इसका विशेष महत्‍व था। इसमें उन्‍होंने न केवल विपक्ष के समय-समय पर लगाए जाने वाले आरोपों का सिलसिलेवार, तथ्‍यपरक जवाब दिया बल्कि मौजूदा सरकार की उपलब्धियां गिनाते हुए विपक्ष के व्‍यक्तिगत प्रहारों का भी जमकर पलटवार किया।

विपक्ष की नकारात्मक राजनीति के बावजूद मानसून सत्र की रिकॉर्ड सफलता सरकार की बड़ी कामयाबी है!

संसद को लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है, जहाँ जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि जनता से सरोकार रखने वाले विभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दों पर सार्थक बहस करके उनका समाधान निकालते हैं। फिर चाहे वह राज्यसभा हो अथवा लोकसभा, दोनों सदनों में सत्तापक्ष तथा विपक्ष के बीच नोक-झोंक, सहमति-असहमति की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है।

दूर तक जाएगी संसद में मोदी के भाषण की गूँज !

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व्यापक लक्ष्यों को ध्यान में रखकर चलते हैं। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव की चर्चा का जवाब देते समय मोदी का यही अंदाज दिखाई दिया। जवाब तात्कालिक चर्चा के थे, किंतु उनका असर दूर तक जाएगा। आगामी लोकसभा चुनाव तक इसकी गूंज सुनाई दे तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। कांग्रेस ने सरकार पर हमला बोलने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उसे लगा होगा कि इन हमलों के बाद

संसद सत्र को हंगामे की भेंट चढ़ाने वाले विपक्षी दलों का जनता करेगी हिसाब

लोकतांत्रिक व्यवस्था में संसद का का काम जनता की भलाई करना होता है, लेकिन शीतकालीन सत्र में जो स्थिति नजर आई, उसे देखकर इस सम्बन्ध में निराशा ही होती है। जिस नोटबंदी पर विपक्ष ने इस पूरे संसद सत्र को हंगामे की भेंट चढ़ा दिया, उसपर भारतीय जनता सरकार के साथ खड़ी है। क्योंकि लोगों को समझ आ रहा है कि इसका दूरगामी असर देश के लिए सुखद साबित होगा। फिर किस उद्देश्य की पूर्ति के

संसद ठप्प करने की नकारात्मक राजनीति से बाज आयें विपक्षी दल

संसद का शीतकालीन सत्र समाप्त होने में चंद दिन शेष बचे हैं और अबतक का यह पूरा सत्र हंगामे की भेंट चढ़ता दिखाई दे रहा है। नोटबंदी को लेकर विपक्षी दल लोकतंत्र के मंदिर संसद मे जो अराजकता का माहौल बनाए हुए हैं, वह शर्मनाक है। सरकार नोटबंदी पर चर्चा को तैयार है, लेकिन विपक्षियों को तो चर्चा चाहिए ही नहीं, क्योंकि चर्चा में वे टिक नहीं पायेंगे, इसलिए बस फिजूल का हंगामा कर संसद का वक़्त और

टैक्स की प्रक्रिया सरल और व्यापार की गति तेज, यही है जीएसटी का मूल: भूपेन्द्र यादव

संसद का मानसून सत्र चल रहा है। केंद्र की मोदी सरकार के लिहाज से यह सत्र बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस सत्र में कई लम्बित विधेयकों पर न सिर्फ चर्चा हुई है, बल्कि…