समाज

‘बलात्कार की इन घटनाओं के लिए केवल आरोपी नहीं, समाज भी जिम्मेदार है’

हर आँख नम है, हर शख्स शर्मिंदा है, क्योंकि आज मानवता शर्मसार है, इंसानियत लहूलुहान है। एक वो दौर था जब नर में नारायण का वास था लेकिन आज उस नर पर पिशाच हावी है। एक वो दौर था जब आदर्शों नैतिक मूल्यों संवेदनाओं से युक्त चरित्र किसी सभ्यता की नींव होते थे, लेकिन आज का समाज तो इनके खंडहरों पर खड़ा है। वो कल की बात थी जब मनुष्य को अपने

गंगा-यमुना के बाद अब नर्मदा को भी मिले जीवित मनुष्यों के समान अधिकार

जब उत्तराखंड के नैनीताल उच्च न्यायालय ने मोक्षदायिनी माँ गंगा नदी को मनुष्य के समान अधिकार देने का ऐतिहासिक निर्णय सुनाया था और गंगा नदी को भारत की पहली जीवित इकाई के रूप में मान्यता दी थी, तब ही शिवराज सिंह चौहान के मन में यह विचार जन्म ले चुका था। वह भी सेवा यात्रा के दौरान नर्मदा नदी को मनुष्य के समान दर्जा देने के लिए उचित अवसर की प्रतीक्षा कर

प्रकृति, श्रद्धा और संगीत का पर्व है वसंत पंचमी

कालजयी रचनाकार रवींद्रनाथ टैगोर की उक्त पंक्तियां वसंत ऋतु के महत्व को दर्शाती हैं। प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में ऋतुओं का विशेष महत्व रहा है। इन ऋतुओं ने विभिन्न प्रकार से हमारे जीवन को प्रभावित किया है। ये हमारे जन-जीवन से गहरे से जुड़ी हुई हैं। इनका अपना धार्मिक और पौराणिक महत्व है। वसंत ऋतु का भी अपना ही महत्व है। भारत की संस्कृति प्रेममय रही है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण

लोकमंथनः बौद्धिक विमर्श में एक नई परंपरा का प्रारंभ

भोपाल में संपन्न हुए लोकमंथन आयोजन के बहाने भारतीय बौद्धिक विमर्श में एक नई परंपरा का प्रारंभ देखने को मिला। यह एक ऐसा आयोजन था, जहां भारत की शक्ति, उसकी सामूहिकता, बहुलता-विविधता के साथ-साथ उसकी लोकशक्ति और लोकरंग के भी दर्शन हुए। यह आयोजन इस अर्थ में खास था कि यहां भारत को भारतीय नजरों से समझने की कोशिश की गयी। विदेशी चश्मों और विदेशी

लोक मंथन : परंपरा और जीवन-शैली का हमारे चिंतन पर पड़ता है प्रभाव

भारतीय संस्कृति का दर्शन और अवधारणा हमेशा से ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की रही है। सदियों से हम इसी परंपरा का निर्वाह करते आ रहे। इसी भावना ने हमें अस्त-व्यस्त भी किया, लेकिन हमारी भावना गलत नहीं थी। इसलिए हजारों आक्रमणों को झेलने के बाद भी हम चट्टान की तरह खड़े हैं। लोकमंथन का दूसरा दिन भी इसी के इर्द-गिर्द रहा, जहां भारतीयता से लेकर आधुनिकता और बाजारवाद सभी विषयों पर वृहद

भाई-बहन के बीच स्नेह, सुरक्षा और सहयोग का प्रतीक पर्व है रक्षाबंधन

यह स्थापित तथ्य है कि भारतीय समाज एक उत्सवधर्मी समाज है। यहाँ हर रिश्ते-नाते..