मुलायम के पदचिन्हों पर चलते हुए अखिलेश दे रहे राजनीति में अपराधीकरण को बढ़ावा
सपा के मुखिया अखिलेश यादव जनता के बीच चाहे जो दावा कर लें, मौका मिलते ही वह पहले की तरह माफिया एवं अपराधियों की रहनुमाई, दंगाइयों और आतंकियों की पैरोकारी करने से बाज नहीं आते।
कोरोना वैक्सीन पर अखिलेश यादव का बयान दुर्भाग्यपूर्ण तो है ही, आपत्तिजनक भी है
कोरोना महामारी से लेकर उसकी वैक्सीन तक भारतीय राजनीति में विपक्षी दलों ने विरोध के लिए विरोध की जो राजनीति की है, वो शर्मनाक और निंदनीय है।
कांग्रेस : एक राष्ट्रीय पार्टी से एक ‘वोटकटवा’ पार्टी तक का सफर
कांग्रेस की इस हालत कि उसे क्षेत्रीय दलों के बीच वोटकटवा पार्टी की भूमिका निभानी पड़ रही है, के लिए उसके भीतर मौजूद परिवारवादी राजनीति और नेताओं का अहंकारी चरित्र ही जिम्मेदार है। कांग्रेस यह माने बैठी रही और शायद आज भी है कि ये देश उसकी जागीर है और यहाँ सत्ता उसीके हाथ रहनी है। इस अहंकार में जनता और जनता के हित से दूर हो चुकी इस पार्टी की ये दुर्गति तो होनी ही थी। लोकतंत्र में जनता सबसे अधिक सम्माननीय होती है, वो अर्श पर
जो दल ‘बलात्कार’ को ‘गलती’ मानता रहा हो, वो आजम के बयान को गलत मान ही कैसे सकता है!
जो दल ‘बलात्कार’ को ‘गलती’ मानता रहा हो, उसके लिए आजम का बयान आपत्तिजनक कैसे हो सकता है? आजम का बयान हो, चाहें अखिलेश-डिम्पल का उसके बचाव में उतरना हो, ये सब समाजवादी पार्टी के उसी बुनियादी संस्कार से प्रेरित आचरण है, जिसकी झलक सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के ‘लड़कों से गलती हो जाती है’ वाले बयान में दिखाई देती है।
समाजवादी पार्टी के लिए तो अब यही कहेंगे कि रस्सी जल गयी, मगर बल नहीं गया !
उत्तर प्रदेश विधानसभा में विगत सोमवार को समाजवादी पार्टी के विधायकों ने जिस तरह का आचरण किया, उससे लोकतंत्र कलंकित जरूर हुआ। वे जिस तरह से माननीय राज्यपाल राम नाईक पर कागज के गेंदें उछल रहे हैं, वो बेशक शर्मनाक है। उत्तर प्रदेश एक दौर में देश की प्राण और आत्मा माना जाता था। कहते थे, जो उत्तर प्रदेश आज सोचता है, उसे शेष देश दो दिनों के बाद सोचता है।
अखिलेश राज की नाकामियों को ढँकने की कवायद है अंतर्कलह का समाजवादी नाटक
वर्चस्व की जंग के बीच भले ही मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके पिता मुलायम सिंह यादव के दरम्यान सीजफायर का एलान न हुआ हो और दोनों तरफ से तनातनी बनी हो पर सियासी इजारदारी पर हक जताने की इस आपाधापी में घंटे-आधे घंटे के लिए क्रांतिकारी बने अखिलेश यादव और पुराने जमींदारों की तरह बर्ताव करते देखे गए सपा सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव दोनों के बीच समाजवादी किले पर
सियासी ड्रामे से विफलताओं पर परदा डालने की क़वायद
उत्तर प्रदेश की राजनीति में चल रहा सत्ताधारी परिवारवादी कुनबे का सियासी ड्रामा आखिरकार उसी बिंदु पर खत्म हुआ जिस पर उसे खत्म होना था। सियासी ड्रामे का यह अंतिम चरण कहा जा सकता है। इसके पहले भी अक्तूबर महीने में यह उठा-पटक तेज हुई थी। उस समय सपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर शिवपाल यादव को प्रदेश अध्यक्ष
परिवारवादी पार्टियों का हश्र देखिये और समझिये कि भाजपा क्यों है पार्टी विद अ डिफरेंस!
उत्तर प्रदेश की सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी में अभी जो घमासान मचा हुआ है, उसको लेकर लोग भ्रम में हैं कि इसे राजनीतिक घमासान कहें या पारिवारिक। अब चूंकि, ये सब एक राजनीतिक दल में हो रहा है तो इसे राजनीतिक घमासान कह सकते हैं, लेकिन जब उस दल की हालत पर गौर करते हैं तो स्पष्ट हो जाता है कि ये तो पारिवारिक घमासान है। बाप-बेटा, चाचा-भतीजा, भाई-भाई यही सब तो हो रहा है अभी इस