प्रेमचंद : जो अपनी साहित्यिक जिम्मेदारी और सामाजिक आवश्यकता दोनों को ही भलीभांति समझते थे
साहित्यकार नग्न-से-नग्न सत्य को भी सौंदर्य में आवेष्टित कर प्रस्तुत करता है। वह अपने ढ़ंग से ‘सत्यं शिवम सुंदरम’ की स्थापना करता है। प्रेमचंद ने भी यही किया।
हिंदी दिवस : वैश्विक फ़लक पर लोकप्रिय होती हिंदी
देश में सबसे अधिक बोली, समझी और लिखी जाने वाली भाषा हिंदी है। विश्व में भी यह चौथी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। भले ही अग्रेज़ीदाँ मानसिकता वाले अँग्रेजी को सर्वश्रेष्ठ भाषा मानते हैं, लेकिन दैनिक भास्कर, जो एक हिंदी दैनिक है, सबसे अधिक सर्कुलेशन वाला अखबार है। दूसरे स्थान पर भी हिंदी अखबार दैनिक जागरण काबिज है। टीवी पर भी सबसे अधिक हिंदी के समाचार, विज्ञापन एवं कार्यक्रम प्रसारित किये जा रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक, सोशल और वेब मीडिया पर भी हिंदी का ही बोलबाला है।
चन्द्रगुप्त : पंडित दीनदयाल उपाध्याय कृत एक नाटक जो राष्ट्रवाद को परिभाषित करता है
भारत के राजनीतिक इतिहास के पितृ पुरुष पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक राजनेता के साथ-साथ कुशल संगठक तथा मूर्धन्य साहित्यकार भी थे। साहित्य की हर विधा पर उनकी समान पकड़ थी। कहानी, नाटक, रिपोर्ताज, कविता और यात्रा वृतांत में उनको महारत हासिल था। ऐसे कई उदाहरण देखने को मिल जाएंगे जो उक्त बातों की पुष्टि करते हैं। उनके साहित्य-सृजन की कड़ी में सबसे महत्वपूर्ण स्थान ‘चंद्रगुप्त’ का
पाठ्यक्रमों पर गहराया लाल रंग न तो हिंदी के विद्यार्थियों के लिए अच्छा है, न ही समाज के लिए – प्रो चन्दन कुमार
साहित्य यूँ तो समाज का दर्पण कहा जाता है, लेकिन क्या हो जब यह दर्पण किसी ख़ास विचारधारा का मुखपत्र भर बन कर रह जाये ? क्या हो जब साहित्य के नाम पर विचारधारा का प्रचार किया जाने लगे। साहित्य की दुनिया में एक खास विचारधारा की तानाशाहियों पर खुलकर बातचीत की हिंदी-विभाग के प्रोफ़ेसर चन्दन कुमार से
भारतीय राजनीति के ‘राजर्षि’ हैं अटल बिहारी वाजपेयी
आपने वर्णमाला भी अभी पूरी तरह से सीखी नहीं हो और कहा जाय कि निराला के अवदान पर कोई निबंध लिखें; ‘दिनकर’ पर टिप्पणी आपको तब लिखने को कहा जाय जब आपने विद्यालय जाना शुरू ही किया हो, इतना ही कठिन है राजनीति के अपने जैसे किसी शिशु अध्येता के लिए अटल जी पर कुछ लिखना। और अगर साहित्य के साधक ऋषि का ‘राजर्षि’ में रूपांतरण या साहित्य और राजनीति दोनों को दूध और
हिंदी साहित्य के प्रथम और अंतिम आलोचक नहीं हैं नामवर सिंह : रामदेव शुक्ल
प्रख्यात कथाकार,आलोचक एवं दीनदयाल उपाध्याय विश्विद्द्यालय गोरखपुर के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. रामदेव शुक्ल से हुई बात-चीत का कुछ अंश: सवाल : नमस्कार। एक प्रसिद्ध कथाकार एवं उपन्यासकार के तौर पर साहित्य जगत में आपकी ख्याति रही है। गद्य लेखन की उपन्यास विधा को लेकर जब साहित्यकारों के बीच मतैक्य नहीं है ऐसे में लेखन की
वामपंथी जमात की धमकियों को दरकिनार कर कार्यक्रम में गये नामवर सिंह
हिंदी आलोचना के शिखर पुरुष नामवर सिंह नब्बे साल के हो गए और दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में दिनभर एक समारोह का आयोजन किया गया। इस समारोह में गृह मंत्री राजनाथ सिंह और संस्कृति मंत्री महेश शर्मा के अलावा पूरे देशभर के कई अहम साहित्यकारों ने शिरकत की। इंदिरा गांधी कला केंद्र द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम को लेकर प्रगतिशील लेखकों के पेट में दर्द शुरू हो गया था।