केजरीवाल की बौखलाहट बताती है कि जांच एजेंसियों ने सही जगह चोट की है!
सवाल यह उठता है कि जब केजरीवाल खुद को इतना पाक साफ मानते हैं तो वे बार-बार मीडिया को सफाई क्यों दे रहे हैं और बौखला क्यों रहे हैं।
तमाम कोशिशों के बावजूद क़ानून के चंगुल से नहीं छूट सके चिदंबरम, भेजे गए तिहाड़
आखिरकार पी. चिदंबरम जेल की सींखचों के पीछे पहुँच ही गए। गुरुवार शाम को चिदंबरम को 14 दिनों के लिए जेल भेज दिया गया। चिदंबरम वित्त मंत्री के साथ ही देश के गृहमंत्री भी रहे हैं। गृहमंत्री होने के नाते वे देश की केन्द्रीय जेल व्यवस्था के एक तरह से मुखिया रह चुके हैं और अब इस शक्तिशाली ओहदे से इतर वे इन्हीं जेलों में एक कैदी के तौर पर रहेंगे। जब वे गृहमंत्री थे तब
भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति पर प्रतिबद्ध सरकार
बीते शुक्रवार को सीबीआई ने एक अनपेक्षित और बड़ी कार्यवाही की। ब्यूरो ने पूरे देश भर में करीब डेढ़ सौ शासकीय कार्यालयों पर छापेमार कार्यवाही की जो कि पूरी तरह से औचक थी। इस अचानक हुई छापेमारी से वहां मौजूद कर्मचारियों में खलबली सी मच गई। किसी को संभलने का मौका नहीं मिला। इस कवायद का मुख्य ध्येय सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार पर रोकथाम था।
चिदंबरम का क़ानून के शिकंजे में होना भारतीय लोकतंत्र की ताकत को ही दिखाता है!
कहते हैं कि समय बड़ा बलवान होता है। इस कहावत को वैसे तो कई बार साकार होते देखा गया है लेकिन देश की राजनीति में यह कहावत अब नए संदर्भों के साथ फिर सिद्ध हुई है। एक ओहदे के नाते कभी सीबीआई के बॉस रहे चिदंबरम अब सीबीआई की हिरासत में हैं।
चिदंबरम की गिरफ्तारी पर कांग्रेस की बौखलाहट का असली कारण उसका डर है
कांग्रेस राज में चिदंबरम प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बाद बड़ा रुतबा रखते थे। वित्त और गृह जैसे मंत्रालय उनके पास रहे थे। मगर इसका यह अर्थ नहीं कि भ्रष्टाचार के मामलों में उन्हें कोई रियायत दी जाए। आईएनएक्स मीडिया घोटाला मामले में अब उन्हें हिरासत में लिया गया है तो पूरी कांग्रेस के अन्दर बौखलाहट नजर आ रही है।
राजीव कुमार प्रकरण: ‘हर कोई चाहेगा कि उसके विरोधियों को भी ममता बनर्जी जैसी जीत मिले’
मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही ममता बनर्जी का भाजपा के प्रति अत्यधिक विरोधी रुख कोई छिपी बात नहीं है। लेकिन जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आता जा रहा और बंगाल में भाजपा की धमक तेज होने लगी है, वैसे-वैसे ममता का विरोध लोकतंत्र की सभी मर्यादाओं को तोड़ते हुए उग्र से उग्रतर होता जा रहा है। इसी विरोध का एक उदाहरण गत दिनों
‘राहुल गांधी की भाषा सुनकर हैरानी होती है कि वे एक राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष हैं’
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इन दिनों कुछ ज़्यादा ही मुखर दिखाई दे रहे हैं। लेकिन यदि इस पर ध्यान दिया जाए कि वे क्या बोल रहे हैं, तो हैरानी होगी कि वे एक राष्ट्रीय पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। वे ना तो कुछ नया बोल रहे हैं, ना मौलिक, ना तथ्य परक और ना ही ठोस। यहां तक भी ठीक था। आखिर परिवारवादी व्यवस्था से निकले तथाकथित नेता के पास बोलने के लिए कुछ जमीनी
कांग्रेस इस कदर मुद्दाहीन हो गयी है कि उसे हर मामले में बस राफेल ही दिख रहा है!
सीबीआई में दो शीर्ष अधिकारियों के बीच विवाद हुआ। दोनों ने एक दूसरे पर आरोप लगाए थे। इस विवाद की सच्चाई जानने के लिए जांच की आवश्यकता थी। ये अपने पदों पर कार्य करते रहे और वही संस्था जांच करे, यह हास्यास्पद होता। इसलिए सरकार ने सर्वश्रेष्ठ विकल्प चुना। दोनों अधिकारियों को छुट्टी पर भेजा। नए निदेशक की नियुक्ति की। सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे गलत
2जी घोटाला : आरोपियों के बरी होने से घोटाला कैसे झूठा हो गया ?
यूपीए-2 सरकार के कार्यकाल 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में सामने आए एक लाख छिहत्तर हजार करोड़ के घोटाले में सीबीआई की विशेष अदालत ने तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए. राजा, कनिमोझी, पूर्व दूरसंचार सचिव सिद्धार्थ बेहुरा और राजा के तत्कालीन निजी सचिव आरके चंदोलिया समेत सभी आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष इस मामले में आरोपियों के खिलाफ कुछ भी साबित कर पाने में नाकाम
भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुके हैं लालू यादव
लालू कोई गरीबों और मजलूमों की सामाजिक और आर्थिक तरक्की का धर्मयुद्ध नहीं लड़ रहे हैं। लालू का मकसद सिर्फ इतना है कि गैर कानूनी तौर पर इकठ्ठा किये हुए धन को कानून की नज़रों से कैसे छुपा लिया जाए। इस कारण जब से लालू यादव के परिवार के खिलाफ सीबीआई ने सख्ती बरती है, तो ध्यान भटकाने के उद्देश्य से लालू इसे सियासी रंजिश का नाम देकर बड़ा सियासी वितंडा