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हिंसा, दमन और तानाशाही है वामपंथी विचारधारा का असल चेहरा

वामपंथी विचारधारा की एक पाखण्ड यह भी है कि इसके नीति-नियंता निजी जीवन में तो आकंठ भोग-विलास में डूबे रहते हैं और सार्वजनिक जीवन में शुचिता और त्याग की लफ़्फ़ाज़ी करते नज़र आते हैं। पंचसितारा सुविधाओं से लैस वातानुकूलित कक्षों में बर्फ और सोडे के साथ रंगीन पेय से गला तर करते हुए देश-विदेश का तख्ता-पलट करने का दंभ भरने वाले इन नकली क्रांतिकारियों की वास्तविकता सुई चुभे गुब्बारे जैसी है।

हिंदी कविता की दुर्दशा के सबसे बड़े दोषी हैं वामपंथी साहित्यकार

आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक अपनी विकास-यात्रा की सहस्त्राब्दी पूरी कर चुकी हिंदी कविता के भाव, भाषा और शिल्प में भिन्न-भिन्न कालखंडों की परिस्थितियों के अनुसार अनेक परिवर्तन आए हैं। इनमे से सर्वाधिक परिवर्तनों का साक्षी आधुनिक काल ही रहा है। आधुनिक काल में हिंदी कविता में परिवर्तनों के यूँ तो अनगिनत पड़ाव हैं, परन्तु मुख्यतः भारतेंदु युग, द्विवेदी युग, छायावादी युग, छायावादोत्तर युग, प्रगतिवादी युग , प्रयोगवादी युग और नई कविता, ये सात पड़ाव ही महत्वपूर्ण रहे हैं।