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कांग्रेस द्वारा उपेक्षित आजादी के असल नायकों को सम्मान देने में जुटी मोदी सरकार

अक्‍टूबर का महीना देश के लिए बहुत अहम साबित होने जा रहा है। इस महीने के समापन तक यह देश ऐसे दो बड़े आयोजनों का साक्षी बनेगा जो अभूतपूर्व हैं। अभूतपूर्व इस अर्थ में कि उनके क्रियान्‍वयन की बात तो दूर, उनके बारे में पूर्ववर्ती किसी सरकार ने आज तक विचार तक नहीं किया था। ये दोनों आयोजन क्रमश: 21 अक्‍टूबर, रविवार और 31 अक्‍टूबर, बुधवार को होंगे। दोनों

‘ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस ने अपने कुछ नेताओं को सिर्फ पाकिस्तान की प्रशंसा में लगाया हुआ है’

ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस ने अपने कुछ नेताओं को तीर्थयात्रा और कुछ को पाकिस्तान से हमदर्दी जताने व उसका मुरीद होने पर लगाया है। पाकिस्तानी विदेश मंत्री के संयुक्त राष्ट्र संघ भाषण पर शशि थरूर का बयान ठंडा भी नहीं पड़ा था, नवजोत सिंह सिद्धू दुबारा सामने आ गए। उनकी नजर में पाकिस्तान बहुत अच्छा है, जबकि अपने ही देश का दक्षिणी हिस्सा उन्हें नापसंद है

उत्तराखंड : खली का शो आयोजित करने वाले क्या समझेंगे इन्वेस्टर्स समिट का अर्थ?

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून का क्रिकेट स्टेडियम अब तक दो मेगा शो का गवाह बन चुका है। पहला आयोजन वर्ष 2016 के फरवरी महीने में हुआ था। ‘द ग्रेट खली रिटर्न्स मेगा शो’ के नाम से आयोजित इस कार्यक्रम का तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने ऐसे प्रचार किया, मानो यह प्रदेश की तकदीर बदल देगा। मेगा शो को सफल बनाने के लिए कांग्रेस सरकार ने अपनी पूरी ताकत

गुजरात में अपने ही बुने जाल में खुद फंस गयी कांग्रेस

गुजरात में कांग्रेस का दांव उल्टा पड़ गया है। उसने उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों पर हमले से राज्य सरकार को घेरने की योजना बनाई थी, लेकिन भद्द उसीकी पिट रही है। एक आपराधिक घटना को ये ऐसा रूप देने में लगे थे, जिसकी गूंज उत्तर भारत तक सुनाई देने लगी थी। लेकिन सच्चाई जल्दी ही सामने आ गई।

राफेल के रूप में राहुल गांधी ने जो आग लगाई है, वो कांग्रेस के ही हाथ जलाएगी!

लोकसभा चुनाव नजदीक आते देख कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी ने आनन-फानन में राफेल के रूप में ऐसी आग सुलगाने का दुष्प्रयास किया है, जिसमें उनके व कांग्रेस के हाथ झुलसने के अलावा कुछ और परिणाम निकलता नहीं दिख रहा है। राफेल को लेकर राहुल के आरोपों में कितनी गंभीरता है, इसको समझने के लिए भारी-भरकम तथ्यों की आवश्यकता नहीं है।

कांग्रेस के लिए जीवन-मरण का प्रश्न हैं पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव

पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव की आधिकारिक घोषणा के साथ ही सत्ता का सेमिफाइनल शुरू हो गया है। रणभेरियाँ बज चुकी हैं। वैसे तो यह राज्यों का चुनाव है, लेकिन इन्हीं प्रदेशों की राजधानियों से निकलकर आगे रास्ता दिल्ली के लिए जाएगा। इन पाँचों राज्यों में मध्य प्रदेश, छतीसगढ़ और राजस्थान के चुनाव पर सबकी विशेष नजर है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में

मायावती के झटके के बाद महागठबंधन की खिचड़ी पकना आसान नहीं

गत मई में हुआ कुमारस्वामी का शपथ ग्रहण समारोह विपक्ष के लिए किसी उत्सव से कम नहीं था। विपक्ष का शायद ही कोई बड़ा नेता ऐसा रहा हो, जिसने वहां अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं कराई हो। जिनको कर्नाटक में कोई ठीक से जानता पहचानता नहीं था, वह भी विजेता भाव के प्रदर्शन में पीछे नहीं थे।

राम को काल्पनिक बताने वाली कांग्रेस की रामभक्ति पर कोई कैसे यकीन करे!

मध्यप्रदेश में कांग्रेस का नया रूप दिखाई दिया। चुनाव ने उसे रामभक्त बना दिया है। उसने ‘राम वनगमन पथ यात्रा’ निकाली। इसमें श्रीराम जानकी के जयकारे लगे। कांग्रेस द्वारा पन्द्रह  दिन की यात्रा में पैंतीस विधानसभा क्षेत्रों पर नजर रखी गई। रामघाट, गुप्त गोदावरी, मैहर अमरकंटक तक राजनीतिक सन्देश दिया गया।

जाति-धर्म की राजनीति से ऊपर कब उठेगी कांग्रेस?

लोकसभा चुनाव का माहौल बनने लगा है। इसके मद्देनजर राजनीतिक दलों की रणनीतियां भी आकार लेने लगी हैं। सत्तारूढ़ भाजपा जहां मोदी के नेतृत्व में विकास को मुद्दा बनाती नजर आ रही, वहीं कांग्रेस का जोर जाति-धर्म के समीकरण साधने की ओर दिख रहा। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी हिन्दू उपासना स्थलों की यात्रा के जरिये अपनी हिन्दूवादी छवि बनाने की कोशिश

क्यों कहा जा रहा कि मोदी को हराने के लिए पाकिस्तान से भी गठबंधन कर लेगी कांग्रेस?

भारत में लोक सभा चुनाव से पहले की सियासत पूरी तरह से पक चुकी है। यहाँ हर राजनीतिक दल के लिए मौका है कि वह अपनी नीतियों को लेकर जनता के बीच जाए। लेकिन सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस कुछ ज्यादा ही बेचैन दिख रही। येन-केन-प्रकारेण सत्ता हथियाने के लिए वह हरसंभव हथकंडे अपना रही है।