आयुर्वेद और एलोपैथ मिलकर चलें तो भारतीय चिकित्सा विश्व के लिए पथप्रदर्शक सिद्ध हो सकती है
देखा जाए तो दोनों ही चिकित्सा पद्धतियाँ मानव जीवन के कल्याण के लिए आस्तित्व में आईं हैं। एक कल का विज्ञान है तो एक आज का। लेकिन इसके साथ साथ दोनों की ही अपनी सीमाएं भी हैं।
बेहतर एवं सस्ती चिकित्सा सुविधाओं के चलते मेडिकल टूरिज्म का हब बनने की ओर बढ़ता भारत
विश्व के कई देशों यथा चीन, इटली, स्पेन, फ़्रांस, जर्मनी, ईरान, अमेरिका एवं अन्य कई यूरोपीयन देशों में तो कोरोना वायरस ने सचमुच में ही महामारी का रूप ले लिया है क्योंकि इन देशों मे मरीजों की संख्या अब लाखों में पहुंच गई है। पूरे विश्व में कोरोना वायरस से प्रभावित मरीजों की संख्या 18.27 लाख का आंकड़ा पार कर गई है
दवाओं और मेडिकल उपकरणों का घरेलू उत्पादन बढ़ाने की कवायद
भले ही भारतीय डॉक्टरों का दुनिया भर में डंका बज रहा हो लेकिन बल्क दवाएं और मेडिकल उपकरण दो ऐसे क्षेत्र हैं जहां भारत की आयात पर निर्भरता बहुत अधिक है। गौरतलब है कि भारत बल्क दवाओं की अपनी जरूरतों का 70 प्रतिशत आयात करता है जिसमें सबसे ज्यादा आयात चीन से होता है।
आयुष्मान भारत को अधिकाधिक लोगों तक पहुंचाने की कवायदों में जुटी सरकार
आयुष्मान भारत योजना के आगाज के बाद से ही शहरी इलाकों में लाभार्थियों की पहचान में मुश्किलें आ रही थीं, जिसके कारण इस योजना का लाभ अपेक्षित संख्या में लोग नहीं ले पा रहे थे। अस्तु, योजना के आगाज के बाद से ही लाभान्वितों की संख्या बढ़ाने के उपायों पर विचार किया जा रहा था। इसी संदर्भ में सरकार के नुमाइंदों ने एमेजॉन, फ्लिपकार्ट, स्विगी और जोमैटो सहित 21 निजी कंपनियों के साथ करार करने का प्रस्ताव किया है