जनरक्षा यात्रा : केरल में भी वामपंथियों के लिए बजने लगी खतरे की घंटी !
लोकतंत्र में वैचारिक मतभेद एवं बहस-मुबाहिसों को पर्याप्त स्वीकार्यता प्रदान की गयी है। स्वतंत्रता के पश्चात भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में अनेक ऐसे दलों का निर्माण हुआ जो किसी न किसी वैचारिक विरोध के फलस्वरूप अस्तित्व में आए। लेकिन वैचारिक भिन्नता की वजह से हिंसा का सहारा लेना किसी भी दृष्टि से न तो लोकतंत्र के अनुकूल है और न ही इसे उचित ठहराया जा सकता है। स्वस्थ बहस और वाद
जनरक्षा यात्रा : केरल में भाजपा की बढ़ती धमक
केरल की वामपंथी हिंसा के विरुद्ध भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह द्वारा जनरक्षा यात्रा की शुरुआत के गहरे अर्थ हैं। दरअसल केरल में आजादी के बाद से ही संघ और भाजपा के कार्यकर्ताओं पर हमले होते रहे हैं, जिनमें अबतक लगभग तीन सौ कार्यकर्ताओं की जान जा चुकी है। इनमें सर्वाधिक हत्याएं केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन के क्षेत्र कन्नूर में होने की बात भी कही जाती रही है।
जनरक्षा यात्रा : कम्युनिस्ट हिंसा को भाजपा का लोकतान्त्रिक जवाब
इसमें दो राय नहीं है कि राजनीति मौजूदा समाज का दर्पण है। समाज के प्रचलित मूल्य राजनीति में भी झलकते हैं। जहां तक वर्तमान राजनीति की बात है, यह उस दौर से गुजर रही है जो पहले कभी नहीं देखा गया। ऐसा प्रतीत होता है मानो भाजपा सरकार की सफलता से भयाक्रांत होकर सारे विपक्षी दल लामबंद होकर नफरत एवं हिंसा के सतही हथकंडों पर उतर आए हैं।
जनरक्षा यात्रा : केरल की वामपंथी हिंसा के विरुद्ध भाजपाध्यक्ष अमित शाह की हुंकार !
‘केरल’, जिसे ईश्वर की भूमि कहा जाता है, वामपंथी शासन में राजनीतिक हिंसा का खूनी अखाड़ा बनता जा रहा है। अबतक यहाँ भाजपा और संघ के करीब 300 कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं, जिनमें से अधिकतर हत्याएं खुद मुख्यमंत्री पी. विजयन के क्षेत्र कन्नूर में हुई हैं। वामपंथी बुद्धिजीवी, तथाकथित मानवाधिकारवादी जो भाजपा-शासित राज्यों पर सवाल उठाने के मामले में सबसे आगे होते हैं, इन हत्यायों पर खामोश नज़र आते हैं।
जनरक्षा यात्रा : केरल में जमीन पर मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में आ चुकी है भाजपा
देश में इस समय केवल अमित शाह ही ऐसे हैं, जो राष्ट्रीय अध्यक्ष के दायित्व का सच्चे अर्थों में निर्वाह कर रहे हैं। वह भाजपा को उन प्रदेशों में मजबूत बनाने के अभियान पर हैं, जो पहुंच से दूर समझे जाते थे। केरल की जनरक्षा यात्रा यहां के समीकरण बदलने की दिशा में बढ़ रही है। शाह ने पहले दिन नौ किलो मीटर की यात्रा की थी। दूसरे दिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इसे आगे बढ़ाया। योगी आदित्यनाथ करीब नौ किलो मीटर