दंगा

हाथरस प्रकरण के बहाने रची गयी दंगों की साज़िश के खुलासे से उपजते सवाल

हाथरस में हुई घटनाओं के संदर्भ में जाँच एजेंसियों के खुलासे ने भी इसकी पुष्टि कर दी है। जो तथ्य निकलकर सामने आए हैं, वे चौंकाने वाले हैं।

बेंगलुरु हिंसा पर सेक्युलर ब्रिगेड और बुद्धिजीवियों की चुप्पी से उपजते सवाल

अराजकता के व्याकरण में विश्वास रखने वाला समूह चेहरा और वेष बदल-बदलकर देश को हिंसा से लहूलुहान कर रहा है और कथित धर्मनिरपेक्ष धड़ा चुप है।

अनगिनत बेगुनाहों के खून से सना है कांग्रेसी पंजा!

कहा जाता है कि देर से मिला न्‍याय अन्‍याय के बराबर होता हे। दुर्भाग्‍यवश हिंदुस्‍तान में यह कहावत अक्‍सर चरितार्थ होती रही है। सबसे बड़ी विडंबना यह रही कि जिन सरकारों पर दोषियों को सजा दिलवाने का दायित्‍व था, वे सरकारें ही दोषियों को बचाने की जी तोड़ कोशिश करती रहीं।

सलमान खुर्शीद से पल्ला झाड़ने वाली कांग्रेस अपने दंगों के इतिहास से पल्ला कैसे झाड़ेगी !

सलमान खुर्शीद के बयान से किनारा करने वाली कांग्रेस पार्टी क्‍या यह कहेगी कि हाशिमपुरा, मलियाना, मेरठ, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद, भागलपुर, अलीगढ़ जैसे हजारों दंगे कांग्रेस पार्टी के शासन काल में नहीं हुए थे? जो कांग्रेसी 2002 के गुजरात दंगों के लिए तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर कहते रहे हैं, वही लोग कांग्रेस शासित राज्‍यों में हुए सांप्रदायिक दंगों के लिए किस आधार पर वहां के

दंगों की राजनीति में माहिर रही है कांग्रेस

जो कांग्रेस पार्टी पिछले पंद्रह वर्षों से देश भर में होने वाले चुनावों में गुजरात दंगों की माला जपती रही है, वही कांग्रेस गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनाव में गुजरात दंगों का भूलकर भी नाम नहीं ले रही है। क्योंकि गुजरात में ये दाँव उसे ही नुकसान पहुंचाएगा। एक ओर कांग्रेसी नेता केरल में सरेआम गाय काटकर उसका मांस परोस रहे हैं, तो दूसरी ओर कांग्रेस उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी गुजरात में मंदिरों, मठों में माथा टेक

भाजपा के प्रति ममता का ये अंधविरोध खुद उन्हें ही नुकसान पहुंचाएगा !

2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भाजपा के प्रति विरोध लगातार बढ़ता जा रहा है। विशेष रूप से गत वर्ष हुई नवम्बर में हुई नोटबंदी के बाद से तो उनका भाजपा विरोध घृणा के स्तर तक पहुँचता नज़र आ रहा है। भाजपा के प्रति वे अपने विरोध को जिस-तिस प्रकार से जाहिर करती रहती हैं। अब उन्होंने घोषणा की है कि आगामी 9 अगस्त से वे ‘बीजेपी भारत छोड़ो’ नामक

बंगाल हिंसा : इखलाक और जुनैद पर आंसू बहाने वाले कार्तिक घोष पर सन्नाटा क्यों मारे हुए हैं ?

कार्तिक घोष न तो जुनैद बन पाया और न ही अखलाक। कार्तिक के लिए तथाकथित सेकुलरों से लेकर स्वघोषित मानवाधिकारवादियों ने जंतर-मंतर पर जाकर कैंडिल मार्च भी नहीं निकाला। बता दें कि पश्चिम बंगाल के 24 परगना में बीते दिनों भड़की खूनी सांप्रदायिक हिंसा में कार्तिक को अपनी जान गंवानी पड़ी। ये देश के सेकुलरानों का मिजाज है। कोई हिन्दू मारा जाए तो उफ तक न करो। कोई मुसलमान भीड़ का शिकार हो तो

ममता के संकीर्ण राजनीतिक हितों में फँसकर दंगों का प्रदेश बनने की ओर बढ़ता बंगाल !

बंगाल इन दिनों दो तरफा समस्याओं से घिरा हुआ है। एक तरफ गोरखा आन्दोलन में दार्जीलिंग डूबा हुआ है, तो वहीं दूसरी ओर उत्तरी परगना जिले के बादुरिया और बाशीरहाट सांप्रदायिक तनाव से जूझ रहे हैं। इन सबमें सबसे ज्यादा सवालों के घेरे में है ममता सरकार, जो इन उत्पातों को रोककर शांति कायम करने में विफल नज़र आ रही है। बंगाल में पहली बार ऐसा तनाव देखने को नही मिल रहा, बल्कि हाल के वर्षों में बंगाल में

ममता बनर्जी की तुष्टिकरण की राजनीति के कारण हिंसा की आग में जलता बंगाल

पश्चिम बंगाल में एकबार फिर सांप्रदायिक हिंसा की आग भड़क उठी है। सूबे के उत्तरी परगना जिले के बसिरहाट के बादुरिया में एक युवक द्वारा फेसबुक पर की गयी कथित आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर राज्य के कई हिस्सों में सांप्रदायिक तनाव और हिंसा ने जन्म ले लिया। साफ़ शब्दों में मामले को समझें तो ख़बरों के अनुसार, सौरव सरकार नाम के एक बारहवीं में पढ़ने वाले लड़के ने बीती दो जुलाई को अपनी फेसबुक वाल पर

बरकती के फतवे से सवालों के घेरे में ममता सरकार और वामपंथी बुद्धिजीवी

कोलकाता के एक मस्जिद के कथित शाही इमाम बरकती ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ फतवा जारी किया । बरकती ने बकायदा एक प्रेस कांफ्रेंस में अपमानजनक फतवा जारी किया जिसके पीछे बैनर पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की बड़ी-सी तस्वीर लगी थी । बरकती ने हिंदी और अंग्रेजी में अपमानजनक फतवा जारी किया । यह मानना मेरे लिए मुमकिन नहीं है कि इस मसले की जानकारी पुलिस