कोरोना संक्रमण के आगे दिल्ली सरकार ने टेके घुटने, अमित शाह ने थामी कमान
दिल्ली सरकार राजधानी में फैले कोरोना संक्रमण के सामने घुटने टेक चुकी है। हालात हाथ से बाहर जाता देख अब देश के गृहमंत्री अमित शाह ने राजधानी की कमान अपने हाथों में ले ली है।
कुमार विश्वास की बजाय काम पर फोकस करे ‘आप’
एक के बाद एक हार के बाद दिल्ली की आम आदमी पार्टी अब आंतरिक कलह से जूझ रही है। दो ढाई साल पहले जिस पार्टी को दिल्ली की जनता ने प्रचंड बहुमत से दिल्ली की गद्दी सौंपी थी, वो इतने कम समय में ही इतने बड़े कलह का शिकार हो जाएगी, किसी ने सोचा भी नहीं था। पंजाब में हार, दिल्ली उपचुनाव में तीसरे नंबर की पार्टी और फिर दिल्ली नगर निगम में हार के बाद पार्टी के संस्थापकों में से एक कुमार विश्वास ने
वो पांच कारण जिन्होंने एमसीडी चुनाव में ‘आप’ की दुर्गति कर दी !
राजनीति का चरित्र सुधारने का दावा करके सत्ता में आये हुए एक व्यक्ति को आज जनता के जनादेश ने यह संदेश दे दिया कि उसी का राजनैतिक चरित्र सवालों के घेरे में है। आखिर क्या कारण है कि जनता के बीच सिर्फ सेवा का दावा करके आये हुए व्यक्ति को आज वो सब कुछ चाहिए जो सेवा के लिए जरूरी नहीं है ? जो नीयत की, शुद्धता की बात करते थे, आज उनकी नीयत पर खुद लोगों ने उंगली
निजी हितों के लिए सत्ता का दुरूपयोग कर फँसे केजरीवाल, शुंगलू समिति ने खोली पोल
नयी और ईमानदार राजनीति का स्वप्न दिखाकर काफी कम समय में ही केजरीवाल ने जनता के मन में अपने प्रति भरोसा पैदा किया और इसी भरोसे के बलबूते दिल्ली की सत्ता पर काबिज भी हुए। मगर, वर्तमान परिस्थितियों पर अगर हम नज़र डालें तो देखते हैं कि अरविन्द केजरीवाल ने जनता के भरोसे के साथ बुरी तरह से खिलवाड़ किया है। खुद को सर्वाधिक ईमानदार नेता का ख़िताब देने वाले केजरीवाल और
शुंगलू समिति की रिपोर्ट से बेनकाब हुआ केजरीवाल की ईमानदारी का असल चेहरा
अगर देश की जनता को हाल के दौर में किसी एक नेता ने सर्वाधिक छला और निराश किया है, तो वो अरविंद केजरीवाल हैं। अपने आप को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाला बताने वाला यह शख्स भ्रष्टाचार और नियमों की अवहेलना करने में सबसे आगे रहा है। केजरीवाल के ईमानदार और पारदर्शी सरकार देने के तमाम दावों को तार-तार कर दिया है शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट ने। दिल्ली के तत्कालीन उपराज्यपाल
केवल दूसरों पर आरोप ही लगाते रहेंगे या अपने वादे भी पूरे करेंगे, केजरीवाल !
आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविन्द केजरीवाल को दिल्ली में सरकार बनाए और मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण किए दो साल से अधिक का समय हो चुका है। फ़रवरी, 2015 में वे 67 सीटें जीतकर बड़े बहुमत के साथ दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुए थे। दिल्ली की जनता ने उनके बड़े-बड़े और लोक लुभावने वादों पर भरोसा कर उन्हें इतना बड़ा जनादेश दिया। लेकिन, सत्ता में आने के बाद से अबतक की अवधि
पंजाब की पराजय से सबक लें केजरीवाल
उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की कामयाबी जितना चमत्कृत करती है, उतना ही पंजाब में आम आदमी पार्टी की नाकामी। यह नाकामी इसलिए भी महत्वपूर्ण बन जाती है क्योंकि दिल्ली की भांति केजरीवाल ने पंजाब में शपथ ग्रहण समारोह और चुनावी वायदों को पूरा करने का तिथिवार कार्यक्रम घोषित कर रखा था। इतना ही नहीं, पार्टी ने जीत का जश्न मनाने के लिए भारी-भरकम बंदोबस्त कि
वादों की कसौटी पर विफल आम आदमी पार्टी सरकार
विगत १४ फ़रवरी को दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार के दो साल पूरे हो गए । दो साल किसी भी सरकार के काम-काज का आंकलन करने के लिए काफी होता है । ‘आप’ सरकार दो साल तक केंद्र सरकार से टकराव के रास्ते पर चलती रही और उनके कुछ मंत्री विवादों में पड़े । संभव है कि आम आदमी पार्टी ने टकराव को ही अपनी राजनीति का आधार बनाया हो, लेकिन लोकतंत्र में जनहित के कामों को लेकर
दिल्ली में तो सरकार चल नहीं रही और पंजाब में खूंटा गाड़ने चले हैं केजरीवाल!
दिल्ली चुनाव के समय दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शिला दीक्षित के घोटालों के खिलाफ तीन सौ पन्ने के सबूत अपने साथ लेकर घूमने वाले अरविन्द केजरीवाल जब पूर्ण बहुमत के साथ दिल्ली की सत्ता में आए तो वे तीन सौ पन्ने के सबूत की बात केजरीवाल ऐसे भूले कि फिर कभी उनके श्रीमुख से उनका जिक्र भी सुनने में नहीं आया। आज वे लगभग डेढ़ साल से दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं, लेकिन शिला दीक्षित के विरुद्ध एक