राजनीति नहीं, राष्ट्रवाद की पोषक थी दीनदयाल उपाध्याय की भावना
भारतीय स्वतंत्रता के पूर्व राम राज्य की जो परिकल्पना पेश की गयी थी, उसे कांग्रेस की छद्म धर्मनिरपेक्षता निगल गयी। कांग्रेस ने आजादी के पहले ही अपने लिए एक रास्ता तय कर लिया था, जहां मुस्लिम तुष्टिकरण को धर्मनिपेक्षता का आवरण ओढ़ा दिया गया और इसके सहारे बहुसंख्यक हिंदुओं के मूल भावना से लगातार खिलवाड़ किया जाने लगा। इस कुकृत्य में तब के कांग्रेस के सभी शीर्ष नेता शामिल थे।
भारत की प्रगति के लिए ‘भारतीयता’ को आवश्यक मानते थे पं दीनदयाल उपाध्याय
पंडित दीनदयाल उपाध्याय को जितनी समझ भारतीय संस्कृति और दर्शन की थी, उतनी ही राजनीति की भी थी। व्यक्तिगत स्वार्थ में लिप्त राजनीति पर वे हमेशा प्रहार करते थे। पंडित जी जब उत्तर प्रदेश के सह प्रांत-प्रचारक थे, उस समय उनके निशाने पर भारत सरकार की गलत नीतियों के साथ-साथ देश में फैली निराशा भी रहती थी। उस समय देश में कांग्रस की सरकार थी और उस समय देश के प्रधानमंत्री
चन्द्रगुप्त : पंडित दीनदयाल उपाध्याय कृत एक नाटक जो राष्ट्रवाद को परिभाषित करता है
भारत के राजनीतिक इतिहास के पितृ पुरुष पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक राजनेता के साथ-साथ कुशल संगठक तथा मूर्धन्य साहित्यकार भी थे। साहित्य की हर विधा पर उनकी समान पकड़ थी। कहानी, नाटक, रिपोर्ताज, कविता और यात्रा वृतांत में उनको महारत हासिल था। ऐसे कई उदाहरण देखने को मिल जाएंगे जो उक्त बातों की पुष्टि करते हैं। उनके साहित्य-सृजन की कड़ी में सबसे महत्वपूर्ण स्थान ‘चंद्रगुप्त’ का
हमेशा से अध्ययनशील परम्परा की अनुगामी रही है भाजपा
प्रसिद्ध जर्मन भाषाविद और लेखक मैक्समूलर अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘इंडिया व्हॉट कैन इट टीच अस’ में कहते हैं- ‘अगर मुझसे पूछा जाए कि वह कौन सा स्थान है, जहां मानव ने अपने भीतर सद्भावों को पूर्ण रूप से विकसित किया है और गहराई में उतर कर जीवन की कठिनतम समस्याओं पर विचार किया है, तो मेरी उंगली भारत की तरफ उठेगी।’ ज़ाहिर है जब पश्चिम तक सभ्यता के सूरज ने पहुंचने
भाजपा की अध्ययन परंपरा और वर्तमान परिदृश्य
गोयबल्स थ्योरी कहती है कि एक झूठ को सौ बार बोलो तो वह सच लगने लगता है। इस देश के तथाकथित बुद्धिजीवी जमात ने ऐसे अनेक झूठ हजार बार बोले हैं। उन्हीं में से एक बड़ा झूठ यह भी कि राष्ट्रवादी विचारधारा के लोग, खासकर संघ और भाजपा वाले, पढ़ते-लिखते नहीं है। यह कोरा झूठ कम से कम हजार बार, सैकड़ों तथाकथित बुद्धिजीवियों द्वारा बोला गया होगा। 21 दिसंबर को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष
दीन दयाल उपाध्याय के विचारों में अन्तर्निहित है मानव-कल्याण का मार्ग
यह वर्ष देश के लिए दीन दयाल जन्म शताब्दी के रूप में मनाने का अवसर है। भारतीय जनता पार्टी इसे गरीब कल्याण वर्ष के रूप में मना रही है। वहीँ देश के तमाम विचारशील संगठन इस अवसर पर अनेक व्याख्यानमाला, कार्यक्रम, सेमीनार आदि का आयोजन कर रहे हैं। इसी क्रम में दीन दयाल शोध संस्थान द्वारा ‘दीन दयाल कथा’ कार्यक्रम का आयोजन देश में चार स्थानों पर करने की योजना बनाई गयी है। इसकी
विश्व की अनेक समस्याओं का एक समाधान है एकात्म मानव-दर्शन
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मानना है कि भारतीय चिंतन के आधार पर प्रतिपादित विचार ‘एकात्म मानवदर्शन’ ही दुनिया को सभी प्रकार के संकटों का समाधान दे सकता है। संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल ने हैदराबाद की बैठक में इस आशय का प्रस्ताव रखा है। संघ का मानना है कि आज विश्व में बढ़ रही आर्थिक विषमता, पर्यावरण-असंतुलन और आतंकवाद मानवता के लिए गंभीर चुनौती का कारण बन रहे
दीनदयाल उपाध्याय के विराट व्यक्तित्व का साक्षात्कार कराती पुस्तक
लगभग तीन सौ पृष्ठ वाली इस दीनदयाल वांग्मय नामक पुस्तक में पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के जीवन से जुड़े तमाम पहलुओं को शामिल किया गया है। पुस्तक में वस्तुतः पंडित जी के बाल्यकाल से लेकर उनकी हत्या तक की सारी घटनाओं को समाहित किया गया है। चार खंडो में विभाजित इस पुस्तक में 36 अध्याय है। प्रथम खंड ‘जीवनकाल’ में बाल्यकाल से लेकर उनके प्राणोत्सर्ग तक की घटनाओं पर प्रकाश डाला
भारतीय राजनीति में संस्कृति के अग्रदूत थे पंडित दीनदयाल उपाध्याय
एकात्म मानवदर्शन के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 100वीं जयंती 25 सितंबर को है। चूँकि दीनदयाल उपाध्याय भाजपा के राजनीतिक-वैचारिक अधिष्ठाता हैं। इसलिए भाजपा के लिए यह तारीख बहुत महत्त्वपूर्ण है। उनके विचारों और उनके दर्शन को जन सामान्य तक पहुँचाने के लिए भाजपा ने इस बार खास तैयारी की है। दीनदयाल उपाध्याय लगभग 15 वर्ष जनसंघ के महासचिव रहे। वर्ष 1967 में उन्हें
शहीदों के राष्ट्र-निर्माण के स्वप्न को पूर्ण करने में ही है आज़ादी की सार्थकता!
भारत आज अपनी आजादी की 70 वीं सालगिरह मना रहा है। लाल किले पर तिरंगा फहर चुका है । सन् 1947 को आज ही के दिन भारत ने लगभग 200 वर्षों की अंग्रेजी दासता के बंधनों को तोड़ कर आजादी का प्रथम सूर्योदय देखा था। आजादी के इस आंदोलन में कितनी शहादतें हुई, ये अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है। देश के हर गांव के ही आस-पास ऐसी कई कहानियां होगी, जिनसे हम आज भी अनजान हैं।