खुली पाक कलाकारों के काले धन की पोल, स्टिंग ऑपरेशन में हुए बेनकाब!
भाजपानीत केंद्र सरकार द्वारा कालाधन पर रोक लगाने की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए पांच सौ एवं एक हजार के नोट बंद किए जाने और नए नोट जारी किए जाने के बाद से ही कालाधन का मुद्दा एकबार फिर विमर्श और चर्चा के केंद्र में आ गया है। सरकार की तरफ से एवं आम चर्चा में भी यह बात सामने आती रही है कि कालाधन का नेटवर्क महज देश के अंदर ही नहीं, बल्कि सीमापार तक फैला हुआ है। हाल में ही
नकदी के जाल से निकलकर डिजिटल अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ने का समय
लेखक अमिष त्रिपाठी की तीन खण्डों में शिव की एक काल्पनिक कहानी है, जो सोमरस नामक अमरता देने वाले द्रव्य की कथा है। यह एक अमृत था, परन्तु इस अमृत के दुष्प्रभाव भी थे, जिसको वहां के राजा दक्ष प्रजा से छुपा रहे थे। जिस तरह समुद्र मंथन में अमृत के साथ विष भी निकला, उसी तरह इस अमृत की निर्माण प्रक्रिया में इसके साथ-साथ विष भी बनता था। इस कहानी में जो सबसे महत्वपूर्ण है, वो यह कि
नोटबंदी : आम जन कर रहे सरकार का समर्थन, काला धन धारकों में मचा हड़कंप
आठ नवंबर की शाम को प्रधानमंत्री मोदी के राष्ट्र के नाम संबोधन में नोटबंदी के ऐतिहासिक फैसले के ऐलान से देश भर में हलचल मच गयी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब देश भर में 500 और 1000 के नोटों पर प्रतिबंध की घोषणा की तो काले धन की फसल उगाकर रखने वालो पर जैसे ओलों की बरसात हो गयी। जनता की खून-पसीनें की कमाई को अवैध और अनैतिक रूप से जमा करके बैठे ऐसे लोग अब मारे-मारे
राष्ट्र-निर्माण के आगे निजी सुख-दुःख का नहीं होता महत्व
राजनीति संभावनाओं का खेल है। राजनीति में न तो कोई किसी का स्थाई मित्र होता है, न शत्रु। यदि इस सिद्धांत को सत्य मान भी लिया जाय तो भी यह कहना अनुचित न होगा कि हर दल के अपने कुछ सिद्धांत, अपनी-अपनी मूल प्रकृति, अपने-अपने मतदाता-वर्ग होते हैं और ये सब एक दिनों में नहीं बनता, बल्कि वर्षों में उनकी अपनी एक पहचान और छवि बनती है। अगर विशिष्ट चाल-चरित्र-चेहरे की बात बेमानी भी हो तो
नोटबंदी के निर्णय से इतने हलकान क्यों हैं विपक्षी दल ?
मोदी सरकार द्वारा पांच सौ और हजार के नोट बंद करने के निर्णय को जहां एक तरफ भारी जन-समर्थन प्राप्त होता दिख रहा है। लोग थोड़ी-बहुत परेशानी उठाने के बावजूद भी इस निर्णय के प्रति सहमति जता रहे हैं। वहीँ दूसरी तरफ तमाम विपक्षी दल सरकार के इस निर्णय के बाद हलकान नज़र आ रहे हैं। इन दलों की समस्याओं को उनके वक्तव्यों व सरकार पर लगाए जा रहे उलूल-जुलूल आरोपों से समझा जा