सोनभद्र प्रकरण पर राजनीति कांग्रेस को फायदा नहीं, नुकसान ही पहुंचाएगी
इस खूनी खेल के लिए अगर कोई ज़िम्मेदार है तो सबसे पहले कांग्रेस उसके बाद समाजवादी और बसपा की पूर्ववर्ती सरकारें, जिन्होंने अपने राजनीतिक फायदे को देखा लेकिन गरीब आदिवासियों के लिये कुछ नहीं किया। अपना राजनीतिक वजूद ढूंढ रहे कांग्रेस परिवार को सोनभद्र जैसी घटना के बाद राजनीति करने से बचना चाहिए था,
क्या इस पराजय से कोई सबक लेगी कांग्रेस?
2019 के लोकसभा नतीजे कांग्रेस के लिए बहुत बुरी खबर लेकर आए। और जैसा कि अपेक्षित था, देश की सबसे पुरानी पार्टी में भूचाल आ गया। एक बार फिर हार की समीक्षा के लिए कमेटी का गठन हो चुका है। पार्टी में इस्तीफों की बाढ़ आ गई है। खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इस्तीफा देने पर अड़े रहे। लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता से लेकर आम कार्यकर्ता तक राहुल गांधी और उनके नेतृत्व में अपना विश्वास जता रहे हैं।
कांग्रेस : एक राष्ट्रीय पार्टी से एक ‘वोटकटवा’ पार्टी तक का सफर
कांग्रेस की इस हालत कि उसे क्षेत्रीय दलों के बीच वोटकटवा पार्टी की भूमिका निभानी पड़ रही है, के लिए उसके भीतर मौजूद परिवारवादी राजनीति और नेताओं का अहंकारी चरित्र ही जिम्मेदार है। कांग्रेस यह माने बैठी रही और शायद आज भी है कि ये देश उसकी जागीर है और यहाँ सत्ता उसीके हाथ रहनी है। इस अहंकार में जनता और जनता के हित से दूर हो चुकी इस पार्टी की ये दुर्गति तो होनी ही थी। लोकतंत्र में जनता सबसे अधिक सम्माननीय होती है, वो अर्श पर
चार चरण के मतदान के बाद किस तरफ है हवा का रुख?
चौथे दौर का चुनाव ख़त्म हो गया है, इसके बाद सत्ताधारी दल और विपक्षी दलों ने अपना हिसाब-किताब लगा लिया होगा। कुछ पार्टियों के लिए जंग ख़त्म हो गयी है तो कुछेक पार्टियों के लिए अभी एक बड़ी लड़ाई बाकी है। दक्षिण और पश्चिम भारत में मतदान हो गया है, लेकिन अभी बड़ी लड़ाई उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और बिहार
बनारस में प्रियंका गांधी के पीछे हटने का क्या है मतलब?
प्रियंका अगर बनारस से प्रधानमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ लेती तो हार भले जातीं, लेकिन इससे कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार जरूर कर सकती थीं, मगर लड़ाई से ठीक पहले उम्मीद जगाकर पीछे चले जाने के फैसले से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में यह गलत सन्देश गया है कि वह खुद फैसला लेने में सक्षम नहीं हैं।
राजनीति में परिवारवाद की सभी सीमाएं पार करती जा रही कांग्रेस
आखिर राबर्ट पार्टी में किस पद पर हैं, उनके बच्चे पार्टी में कौन सी अहम भूमिका अदा कर रहे हैं जो वे रिटर्निंग आफिसर के कक्ष तक नामांकन के समय चले गए। ये कृत्य क्या कांग्रेस द्वारा राजनीति में परिवारवाद की सभी मर्यादाओं को पार कर जाने का ही सूचक है।
राहुल के बाद प्रियंका की भी घिसे-पिटे मुद्दों की राजनीति
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने भाषण, भाषा, शैली के चलते स्वयं को हल्का बना लिया है। उनकी बातों में अध्यक्ष पद की गरिमा का नितांत अभाव है। वह प्रधानमंत्री के लिए अमर्यादित व सड़क छाप नारे लगवाते हैं। राफेल सौदे पर उनके पास कोई तथ्य नहीं, फिर भी हंगामा करते रहते हैं। ऐसे में यह माना गया था कि प्रियंका गांधी वाड्रा का चुनाव प्रचार अलग ढंग का होगा। लेकिन वह भी पुराने और तथ्यविहीन मुद्दे ही उठा रही हैं।
महागठबंधन: हर हप्ते बदल रहा विपक्ष का प्रधानमंत्री उम्मीदवार
चुनाव से पहले देश की राजनीति बहुत हो रोचक दौर में प्रवेश कर गई है। विपक्षी गठबंधन का आलम यह है कि विपक्ष की तरफ से हर हफ्ते प्रधानमंत्री पद के नए दावेदार सामने आ रहे हैं। आज उन्हीं नामों की चर्चा जो प्रधानमंत्री पद की रेस में बने हुए हैं।कांग्रेस देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी है (संसद में वैसे कांग्रेस को विपक्षी दल का स्टेटस हासिल नहीं है), जिसके अध्यक्ष राहुल गाँधी पिछले कई सालों से प्रधानमंत्री पद की दौड़ में लगातार बने हुए हैं।
क्या प्रियंका का राजनीति में आना राहुल की विफलता पर मुहर है?
इन दिनों टीवी स्टूडियोज में एंकर और कांग्रेस के प्रवक्ता बड़े प्रसन्नचित्त हैं कि कांग्रेस के खानदान से एक और सदस्य ने राजनीति में एंट्री मार ली है। कांग्रेसी प्रवक्ताओं को ऐसा उत्साह है जैसे इससे कांग्रेस की सारी समस्याएं छू-मंतर हो जाएंगी। पिछले दिनों कांग्रेस पार्टी ने सोनिया गांधी की बेटी और उत्तर प्रदेश के व्यवसायी रोबर्ट वाड्रा की पत्नी प्रियंका वाड्रा गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान सौंपने का ऐलान किया।
प्रियंका रूपी आखिरी दाँव से कांग्रेस का कितना भला होगा?
नरेंद्र मोदी-अमित शाह के नेतृत्व में भारतीय जनता की मजबूत घेरेबंदी और “तीसरे” व “चौथे” मोर्चे के गठन की कवायदों के बीच कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने “ब्रह्मास्त्र” या आखिरी दाँव (प्रियंका गांधी) का प्रयोग कर ही दिया। प्रियंका गांधी को पार्टी महासचिव बनाते हुए उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश में पार्टी की जिम्मेदारी दी गई है। कांग्रेस को उम्मीद है कि जनता प्रियंका गांधी में उनकी दादी (इंदिरा गंधी) की छवि देखेगी और कांग्रेस की सत्ता में वापसी होगी।