बुरहान

काश्मीर: विलासितों के लोकतंत्र से बढ़ता आतंकवाद का खतरा

वर्तमान समय काश्मीर के सन्दर्भ में जो बुद्धिजीवी यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि काश्मीर में उत्पात मचा रहे अलगाववादी ताकतों से शांति और सद्भावना से शान्ति एवं सद्भावना की उम्मीद की जानी चाहिए, वह या तो झूठ बोलते है या फिर वह स्वयं किसी यूटोपिया में जी रहे हैं। अलगाववादी पत्थरबाजों से शान्ति की अपील इसलिए भी असंभव लगती है क्योंकि वे पिछले 69 सालो से शेष भारत से अलग और विशेष होने की विलासता में जीवन जी रहे हैं और उनको वैसे ही जीते रखने की कोशिश भी तथाकथित सेक्युलर सरकारों द्वारा की गयी है।