चार चरण के मतदान के बाद किस तरफ है हवा का रुख?
चौथे दौर का चुनाव ख़त्म हो गया है, इसके बाद सत्ताधारी दल और विपक्षी दलों ने अपना हिसाब-किताब लगा लिया होगा। कुछ पार्टियों के लिए जंग ख़त्म हो गयी है तो कुछेक पार्टियों के लिए अभी एक बड़ी लड़ाई बाकी है। दक्षिण और पश्चिम भारत में मतदान हो गया है, लेकिन अभी बड़ी लड़ाई उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और बिहार
बनारस में प्रियंका गांधी के पीछे हटने का क्या है मतलब?
प्रियंका अगर बनारस से प्रधानमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ लेती तो हार भले जातीं, लेकिन इससे कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार जरूर कर सकती थीं, मगर लड़ाई से ठीक पहले उम्मीद जगाकर पीछे चले जाने के फैसले से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में यह गलत सन्देश गया है कि वह खुद फैसला लेने में सक्षम नहीं हैं।
साध्वी प्रज्ञा के चुनाव में उतरने से विपक्षी दलों को इतनी तकलीफ क्यों है?
हमारे इन विपक्षी राजनैतिक दलों का यही चरित्र है कि वो तथ्यों का उपयोग और उनकी व्याख्या अपनी सुविधानुसार करते हैं। इन दलों को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर अनेक महत्वपूर्ण पदों पर बैठे नेता जो आज जमानत पर हैं और चुनाव भी लड़ रहे हैं उनसे नहीं लेकिन साध्वी से ऐतराज़ होता है। इन्हें देशविरोधी नारे लगाने के आरोपी और जमानत
प्रतिबंध के सम्मान के साथ आस्था की अभिव्यक्ति
योगी आदित्यनाथ ने चुनाव आयोग द्वारा लगाए गए प्रतिबन्ध का सम्मान किया। उन्होंने इसे एक अवसर के रूप में लिया। आयोग के आदेशानुसार वह बहत्तर घण्टे तक चुनाव प्रचार नहीं कर सकते थे। योगी आदित्यनाथ संत हैं, गोरखधाम के पीठाधीश्वर हैं, इसी के अनुकूल उन्होंने प्रतिबन्ध काल में आचरण किया। संकटमोचन मंदिर में दर्शन के साथ स्पर्श बालिका विद्यालय जाकर
‘खोट ईवीएम में नहीं, विपक्षी दलों की नीयत में है’
लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान हो चुका है, लेकिन देश में ईवीएम को लेकर विपक्षी दलों का विलाप थमने का नाम नहीं ले रहा। बीते रविवार को कांग्रेस, आप, टीडीपी आदि विपक्षी दलों द्वारा प्रेसवार्ता में कहा गया कि वे पचास प्रतिशत वीवीपैट पर्चियों का मिलान ईवीएम वोटों से करवाने की मांग लेकर सर्वोच्च न्यायालय में जाएंगे। गौरतलब है कि इससे पूर्व इक्कीस विपक्षी दलों की एक ऐसी ही याचिका को सर्वोच्च न्यायालय खारिज कर चुका है।
‘इस चुनाव में ना तो कोई सत्ताविरोधी लहर है, ना ही विपक्ष के पक्ष में हवा’
देश में एक बार फिर चुनाव होने जा रहे हैं और लगभग हर राजनैतिक दल मतदाताओं को “जागरूक” करने में लगा है। लेकिन इस चुनाव में खास बात यह है कि इस बार ना तो कोई सत्ताविरोधी लहर है, ना ही सरकार के खिलाफ ठोस मुद्दे और ना ही विपक्ष के पक्ष में हवा। बल्कि अगर यह कहा जाए कि समूचे विपक्ष की हवा ही निकली हुई है तो भी गलत नहीं होगा। क्योंकि जो
भाजपा के संकल्प पत्र में जो नए भारत का विज़न है, कांग्रेस के घोषणापत्र में उसका लेशमात्र भी नहीं
कांग्रेस के ज्यादातर वादे मतदाताओं को तात्कालिक तौर पर लुभाने वाले हैं, जबकि भाजपा ने देश को हर तरह से मजबूती देने वाले दूरदर्शितापूर्ण और व्यावहारिक वादे किए हैं। देखना दिलचस्प होगा कि जनता किसके वादों पर कितना यकीन दिखाती है।
घोषणापत्र : भाजपा के वादे हैं व्यावहारिक, कांग्रेस के वादे यथार्थ के धरातल से दूर
चुनावी घोषणापत्र महज वादों का पिटारा नहीं होना चाहिये। इसमें देश के विकास की वैसी तस्वीर पेश की जानी चाहिये, जिसे मूर्त रूप दिया जा सके। बहरहाल, चुनावी रणभूमि में देश की दोनों प्रमुख पार्टियां, भाजपा और कांग्रेस ने अपने-अपने घोषणा पत्र को पेश कर दिया है। भाजपा ने अपने घोषणा पत्र को संकल्प पत्र का नाम दिया है, जबकि कांग्रेस ने ‘हम निभाएंगे’ लिखा है।
संकल्प पत्र: लोकलुभावन घोषणाएं नहीं, भावी भारत के विकास का सूझ-बूझ भरा रोडमैप
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद के लिए वोट नहीं माँगते हैं, वह निरंतर और गतिशील भारत के लिए वोट माँगते हैं। सोमवार को नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज आदि की उपस्थिति में भारतीय जनता पार्टी का संकल्प पत्र जारी किया गया तो उन्होंने भारत को दुनिया की पंक्ति में सबसे आगे देखने की बात की।
भाजपा : एक विचारधारा के फर्श से अर्श तक पहुँचने की संघर्षपूर्ण यात्रा !
आज भारतीय जनता पार्टी का स्थापना दिवस है, 6 अप्रैल, 1980 को भाजपा की स्थापना हुई थी। इन 38 वर्षों की यात्रा को कुछ शब्दों में पिरोना आसान नहीं होगा, क्योंकि इतना बड़ा संगठन कभी भी एक व्यक्ति की मेहनत का नतीजा नहीं होता, बल्कि इसके पीछे हजारों-लाखों कार्यकर्ताओं के खून और पसीने का योगदान होता है, जिनके चेहरे कभी अख़बारों में या टेलीविज़न के परदे पर नहीं नज़र आते। भाजपा की