दीनदयाल उपाध्याय : ‘व्यक्ति और समाज का सुख परस्पर विरोधी नहीं, पूरक होता है’
आज दीनदयाल उपाध्याय की पुण्यतिथि है। शुरुआत में ही यह भी जोड़ना उचित होगा कि दीनदयाल उपाध्याय को याद करने की एकमात्र वजह यह नहीं होनी चाहिए कि उनको मानने वाले लोग अभी सत्ता में हैं बल्कि इसलिए भी उनको याद करना जरूरी है कि समन्वयवाद की जो धारा हमेशा से भारतीय चिंतन के केंद्र में रही है, दीनदयाल भी उसी के पोषक हैं। आज दीनदयाल को याद करने की एक बड़ी वजह यह भी है कि वो कट्टरता के धुर विरोधी थे।