श्रमिक हितों के लिए ‘आपदा काल’ में भी मोदी सरकार का कामकाज ‘आदर्श’ रहा है
सिर्फ विपक्ष ही नहीं, मीडिया के एक ख़ास धड़े ने भी पत्रकारिता के बुनियादी सिद्धांतों की कब्र खोदते हुए श्रमिकों के पलायन पर बेहद गैरजिम्मेदाराना रुख दिखाया।
उत्तर प्रदेश लौटकर आए मजदूरों ने उतार दिया कई चैनलों के चेहरे से निष्पक्षता का मुखौटा
माय गव इंडिया के यूट्यूब चैनल पर पलायन कर रहे लगभग आधा दर्जन मजदूरों का अनुभव सुनने को मिला। इस वक्त जब तन्हाई और अवसाद की काली छाया चारों तरफ कोविड 19 के इस दौर में पसरी है, ऐसे समय में यह अनुभव नई ऊर्जा से भर देने वाला है।
हिमाचल प्रदेश चुनाव : मीडिया को कोई बताए कि सिर्फ गुजरात में नहीं, हिमाचल में भी चुनाव है !
इस समय देश के दो महत्वपूर्ण राज्यों हिमाचल प्रदेश और गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन चुनावी चर्चा से हिमाचल लगभग पूरी तरह से गायब है। हिमाचल की धरती पर आप कदम रखेंगे तो वहां वर्तमान कांग्रेस सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार सबसे बड़ा मुद्दा है और सरकार के प्रति जनता में बेहद गुस्सा है, लेकिन इसकी झलक आपको न तो समाचार चैनलों पर देखने को मिलेगी और न ही अंग्रेजी के बड़े अख़बारों में।
गौरी लंकेश मामले में मीडिया ने रिपोर्टिंग नहीं की, सीधे जज बन गयी !
पत्रकार और एक्टिविस्ट गौरी लंकेश की हत्या ने सभी सोचने-समझने वालों के मनो-मस्तिष्क को झकझोर कर रख दिया, एक सभ्य समाज में इस तरह की हत्या स्वीकार्य नहीं है। इस मुद्दे पर विचार करने से पहले यह जान लेना ज़रूरी है कि गौरी लंकेश शुद्ध तरीके से एक लेफ्टिस्ट विचारधारा का समर्थन करने वाली पत्रकार और एक्टिविस्ट थीं। उनके निशाने पर पिछले कई सालों से बीजेपी और संघ परिवार रहा था, इस तथ्य को स्वीकार
प्रेस क्लब में गौरी लंकेश की हत्या पर शोक जताने की नहीं, मोदी विरोध की सभा थी !
हत्या एक जघन्य अपराध है, इसका कड़ा विरोध होना चाहिए; फिर वो चाहे कोई हो, किसी भी विचारधारा का हो, आपसे सहमत हो, ना हो और आपका धुर विरोधी ही क्यूं ना हो। पर, कर्नाटक की राजधानी बंगलुरू में खौफनाक ढंग से हुई गौरी लंकेश की हत्या के बाद जिस अंदाज में राजधानी दिल्ली से लेकर देश भर में एक माहौल बनाने की कोशिश की गई, उससे एक बार फिर असहिष्णुता का मुद्दा बनाकर अवार्ड वापसी
‘सरकार की आलोचना के अन्धोत्साह में राष्ट्र की आलोचना पर उतर पड़ने की प्रवृत्ति ठीक नहीं’
समाचार माध्यमों को न तो किसी विचारधारा के प्रति अंधभक्त होना चाहिए और न ही अंध विरोधी। हालांकि यह भी सर्वमान्य तर्क है कि तटस्थता सिर्फ सिद्धांत ही है। निष्पक्ष रहना संभव नहीं है। हालांकि भारत में पत्रकारिता का एक सुदीर्घ सुनहरा इतिहास रहा है, जिसके अनेक पन्नों पर दर्ज है कि पत्रकारिता पक्षधरिता नहीं है। निष्पक्ष पत्रकारिता संभव है। कलम का जनता के पक्ष में चलना ही उसकी सार्थकता है। बहरहाल, यदि किसी
एनडीटीवी प्रकरण : सरकार के खिलाफ खूब बोलने के बाद कहते हैं कि सरकार बोलने नहीं दे रही !
एनडीटीवी पर केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने आईसीआईसीआई बैंक को कथित तौर पर 48 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाने के आरोप में छापा मारा। छापे एनडीटीवी के सह संस्थापक और सह अध्यक्ष प्रणव रॉय और उनकी पत्नी राधिका राय के ग्रेटर कैलाश स्थित आवास पर मारे गए।
एक ‘दोषी’ चैनल को दण्डित करना मीडिया पर प्रतिबन्ध कैसे हो गया, मिस्टर बुद्धिजीवी ?
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की तरफ से एनडीटीवी को पठानकोट आतंकी हमले के दौरान गैर-जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग के लिए दंडस्वरूप एक दिन के लिए ऑफ़ एयर होने का जबसे नोटिस भेजा गया है, राजनीतिक गलियारे और सोशल मीडिया से लेकर विचारधारा विशेष के बुद्धिजीवी वर्ग तक में वितंडा मचा हुआ है। राहुल गाँधी, ममता बनर्जी, नीतीश कुमार वगैरह तमाम नेताओं समेत एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने इस पर