बंगाल में बह रही बड़े राजनीतिक बदलाव की बयार
बंगाल के चुनावों की तैयारी करने से पहले ममता बनर्जी को देश में हुए ताज़ा चुनाव परिणामों पर नज़र डालनी चाहिए ताकि उन्हें वोटर का मनोविज्ञान समझने में आसानी हो।
बंगाल की दुर्दशा पर चुप रहिये, क्योंकि यहाँ ममता बनर्जी का ‘सेकुलर शासन’ है!
ममता बनर्जी सरकार के राज में पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा आम होती जा रही है। आए दिन भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमले हो रहे हैं।
लम्बे समय से मुसलमानों के दिमाग में भरे जा रहे जहर की उपज है दिल्ली की हिंसा
दिल्ली में अचानक भीड़ सड़कों पर निकलती है और पत्थरबाजी करने लगती है। पुलिस परेशान कि क्या किया जाए और लोग पुलिस को घेर कर एक कांस्टेबल को जान से मार देते हैं। पूरी की पूरी भीड़ लाठी और डंडों के साथ सड़क पर निकलती है और पुलिस के सामने फायरिंग तक होती है। तस्वीरें आती हैं कि लाशों को घरों के सामने फेंका जा रहा है। इंटेलिजेंस ब्यूरो के
धर्मनिरपेक्षता की आड़ में मुस्लिमपरस्ती के कांग्रेसी खेल को अब जनता समझ चुकी है!
हाल ही में “इंकलाब” नामक उर्दू अखबार को दिए इंटरव्यू में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस “मुसलमानों” की पार्टी है। भले ही इस इंटरव्यू के बाद खंडन-मंडन का दौर चला हो, लेकिन इस बयान से राहुल गांधी की कांग्रेस का असली चरित्र ही उजागर होता है।
मुस्लिम तुष्टिकरण : मुहर्रम के लिए दुर्गा विसर्जन पर रोक लगाकर ममता ने बड़ी गलती की है !
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी फिर सुर्खियों में हैं। कहना चाहिये कि विवादों में हैं। हमेशा की तरह इस बार भी आधारहीन और बेसिर पैर की बातों को लेकर। दरअसल इसबार मुहर्रम और दुर्गा मूर्ती विसर्जंन की तारीख एक ही दिन पड़ रही है। ममता ने मोहर्रम को प्राथमिकता देते हुए इस बार मुहर्रम के दिन दुर्गा प्रतिमा विसर्जन पर रोक लगा दी है। घोषणा के अनुसार मोहर्रम के कारण इस साल दुर्गा पूजा के बाद होने
ये मुसलमानों का तुष्टिकरण करने वाली नहीं, उनके समग्र विकास के लिए काम करने वाली सरकार है !
भले ही उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी अपने सेवाकाल के आखिरी दिन मुसलमानों में असुरक्षा और घबराहट की भावना की बात कही हो, लेकिन स्वयंभू गोरक्षकों की छिटपुट गतिविधियों को छोड़ दिया जाए तो पूरे देश में अमन-चैन कायम है। 2014 के लोक सभा चुनाव के पहले विरोधी नेताओं ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ जिस प्रकार का नकारात्मक माहौल बनाया था, वह निर्मूल साबित हुआ। सत्ता में आने के बाद से ही मोदी
धर्मांध शासक टीपू सुल्तान की जयंती मनाने की ये कैसी कांग्रेसी मजबूरी ?
एक धर्मांध, विस्तारवादी और बर्बर शासक टीपू सुल्तान की जयंती मनाने को लेकर कांग्रेसी उतावलापन उसके समुदाय विशेष के तुष्टिकरण कारनामों के पुलिंदे में एक नया आयाम जोड़ रहा है। वह भी ऐसे समय में जब स्वयं कर्नाटक हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि टीपू कोई स्वतंत्रता सेनानी नहीं था, वह महज एक शासक था जो अपने हितों के लिए लड़ा। समाज या देश के विकास में उसका कोई योगदान नहीं था। माननीय
फिर बेनकाब हुआ संघ-विरोधियों का चरित्र
याद्दाश्त पर थोड़ा जोर डालें तो विगत वर्ष कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा एक जनसभा में भाजपा पर निशाना साधते हुए यह कहा गया था कि संघ के लोगों ने महात्मा गाँधी की हत्या की और अब उसी संघ से समर्थित भाजपा द्वारा गांधी का गुणगान किया जा रहा है। उनके इस वक्तव्य से आहत होकर भिवंडी के संघ कार्यकर्ता राजेश महादेव कुंटे द्वारा उनके खिलाफ आपराधिक मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया गया, जिसे खारिज करवाने के लिए वे पिछले साल मई में सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे।