मोदी की हत्या की माओवादी साजिश पर किस मुंह से तंज कर रहे हैं, पी चिदंबरम !
पुणे पुलिस ने सात जून को एक अदालत में खुलासा किया कि प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के लोग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हत्या की साजिश रच रहे हैं, ये प्लानिंग पिछले साल भर से की जा रही है। पुलिस का दावा है कि माओवादी नरेन्द्र मोदी की जन सभाओं और रोड शो को निशाना बना सकते हैं, ठीक उसी तरह जैसे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को निशाना बनाया गया था।
एससीओ सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने दिया ‘सिक्योर’ मंत्र
बीते 10 जून को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ के 18वें सम्मेलन में शिरकत की। जाहिर है कि सबको इस बात का इंतजार था कि इस मंच से भारत कौन से मुद्दे को प्रमुखता से उठाता है। क्योंकि इस मंच पर पाकिस्तान और चीन के राष्ट्र प्रमुख भी मौजूद थे, वहीं दूसरी तरफ रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी इसका हिस्सा थे।
मोदी की तीन देशों की यात्रा में चीन के लिए है सन्देश कि भारत की मोर्चाबंदी भी कमजोर नहीं है !
भारतीय विदेश नीति के लुक ईस्ट अध्याय को एक्ट ईस्ट में बदलने का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को है। पिछले गणतंत्र दिवस पर आसियान देशों को आमंत्रित करना एक्ट ईस्ट का बेजोड़ प्रयास था। राजपथ पर इन देशों के शासकों की एक साथ मौजूदगी अपने में विलक्षण और महत्वपूर्ण थी। इसके पहले मोदी म्यामार और वियतनाम भी गए थे। इस बार एक्ट ईस्ट नीति को मजबूत
विकास का एजेंडा बनाम विरोध की राजनीति में से चुनना भला किसके लिए मुश्किल होगा !
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने 26 मई को केंद्र में अपने चार साल पूरे कर लिए। एक ऐसे नेता ने जिसने विकास के मुद्दे को 2014 के लोकसभा चुनाव में अपना सबसे बड़ा और कारगर नारा बनाया, आज भी हिंदुस्तान के सबसे लोकप्रिय नेता बने हुए हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में उनका नारा था ‘सबका साथ सबका विकास’ जिसने सभी जाति, वर्गों और समुदायों को एक
‘इसे मोदी इफेक्ट ही कहेंगे कि 30 महीने का काम 17 महीने में ही पूरा हो गया’
प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी को बुनियादी ढांचा संबंधी परियोजनाओं की लेट-लेतीफी और उनकी बढ़ती लागत ने चिंता में डाल दिया। इसे देखते हुए उन्होंने सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्यन मंत्रालय से रिपोर्ट तलब की। मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि भूमि अधिग्रहण संबंधी जटिलताओं और पर्यावरण संबंधी मंजूरी में देरी अर्थात जयंती टैक्स के कारण देश की
‘इन एक्सप्रेसवे पर फर्राटे भरते हुए आप मोदी सरकार के आधुनिक भारत से रूबरू हो सकते हैं’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 मई को जो दो दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे व ईस्टर्न पेरिफेरल (पूर्वी परिधीय) एक्सप्रेसवे राष्ट्र को समर्पित किए, उनकी गिनती देश में अब तक निर्मित एक्सप्रेसवे की भांति नहीं की जा सकती है। यह दोनों एक्सप्रेसवे स्मार्ट और हाईटेक सुविधाओं से युक्त हमारी इंजीनियरिंग की मिसाल भी हैं। इन एक्सप्रेसवे पर फर्राटे भरते हुए देश के नागरिक मोदी सरकार के
मोदी के बंगाल और झारखण्ड दौरे ने भाजपा की विकासवादी राजनीति को ही स्पष्ट किया है !
गत शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखण्ड के लिए विकास की कई योजनाओं की आधारशिला रखी और देश-दुनिया को विकासवादी शासन तंत्र का परिचय दिया। झारखंड में उन्होंने 27 हज़ार करोड़ रुपए की परियोजनाओं को ऑनलाइन आरंभ किया, वहीं पश्चिम बंगाल में शांति निकेतन में विश्वभारती विश्वविद्यालय में दीक्षांत समारोह में भी शिरकत की। यहां बांग्लादेश
भारत-रूस संबंधों से सिर्फ इन दोनों देशों को ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को हो सकता है लाभ !
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गत दिनों संपन्न हुई ताजा अनौपचारिक रूस यात्रा को बेहद ही खास माना जा रहा है, क्योंकि दोनों नेताओं की यह मुलाकात निकट भविष्य में भारत-रूस द्विपक्षीय सहयोग की दशा व दिशा तय करेगी। हालांकि मोदी और रूसी राष्ट्रपति पुतिन की मुलाकातों का दौर इस पूरे साल चलने वाला है।
आखिर किस मुँह से मोदी की भाषा पर सवाल उठा रहे हैं, मनमोहन सिंह !
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कभी अपने मौन के लिए प्रसिद्ध हुआ करते थे। अब अक्सर वर्तमान प्रधानमंत्री पर हमला बोलने के लिए मुखर दिखाई देते हैं। इस बार वह अपने मौन या बोलने के लिए चर्चा में नहीं हैं, बल्कि राष्ट्रपति को लिखा गया उनका पत्र चर्चा में है। इसमें नरेंद्र मोदी द्वारा कांग्रेस पर हमला बोलने के प्रति नाराजगी जाहिर की गई है। मनमोहन सिंह ने मोदी की भाषा पर ऐतराज़ जताया है। वहीं कांग्रेस के दिग्गजों
राजनीतिक ही नहीं, सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण रही मोदी की नेपाल यात्रा !
विदेश नीति के क्षेत्र में मित्र देशों का विशेष महत्व होता है। लेकिन, कुछ देश इस श्रेणी से भी ऊपर होते हैं। इन्हें बन्धु देश कहते हैं। इनके बीच साझा सांस्कृतिक विरासत होती है, जिसे कभी अलग नहीं किया जा सकता। भारत और नेपाल के संबन्ध इसी श्रेणी में आते हैं। यह सही है कि इसमें अनेक उतार-चढ़ाव भी हुए हैं। चीन समर्थित माओवाद ने भी इन संबंधों में कड़वाहट घोलने का प्रयास किया। इसके वावजूद रिश्तों की मूल