परिवार और राजनीति के बीच अंतर का आदर्श स्थापित करते प्रधानमंत्री मोदी
गत दिनों भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा आगामी विधानसभा चुनाव के संदर्भ में कहा गया कि भाजपा इन चुनावों में अवश्य जीत हासिल करेगी, लेकिन इसके लिए मेहनत की आवश्यकता है। साथ ही, उन्होंने यह हिदायत भी दी कि पार्टी नेता अपने परिवार के सदस्यों के लिए टिकट न मांगें। इस बयान के गहरे और व्यापक निहितार्थ हैं, जिन्हें समझने की आवश्यकता है। दरअसल आज देश
भ्रम और नेतृत्वहीनता के भँवर में घिरी कांग्रेस
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस इस वक्त उस दौर से गुजर रही है जहां पार्टी नेतृत्व के सम्बन्ध में उसके नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं तक में एक भ्रम और उलझन लक्षित किया जा सकता है । अपनी बीमारी और राहुल गांधी को आगे बढ़ाने की रणनीति के तहत कांग्रेस अध्यक्षा ने खुद को नेपथ्य में रखा था । उनके नेपथ्य में रहने की वजह से पुरानी पीढ़ी के नेता स्वत: परिधि पर चले गए थे और राहुल गांधी के आसपास के
राहुल गाँधी की राजनीतिक अपरिपक्वता की भेंट चढ़ती कांग्रेस
कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी का नाम ऐसे नेताओं के नाम मे सम्मिलित किया जाना चाहिए जो पार्टी के लिए करना तो बहुत कुछ चाहते हैं, लेकिन हर बार कुछ न कुछ ऐसा कर देता है कि उनकी पार्टी को उनके कृत्यों पर न कुछ उगलते बनता और न ही कुछ निगलते बनता है। संसद का इस बार का शीतकालीन सत्र पिछले 15 वर्षों के इतिहास मे सबसे कम कामकाज वाले सत्र मे शामिल हो गया है। इस बार का पूरा
राहुल गाँधी का ये बड़बोलापन कहीं कांग्रेस के लिए ‘भूकंप’ न ले आये !
संसद का पूरा शीतकालीन सत्र नोटबंदी पर अपने फ़िज़ूल के हंगामे की भेंट चढ़ाने वाली कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने सत्र बीतते-बीतते अब एक नया बवाल खड़ा कर दिया है। गत 14 तारीख को एक प्रेसवार्ता में उन्होंने कहा कि उनके पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तिगत भ्रष्टाचार से जुड़ी जानकारी है, जिसे वे सार्वजनिक कर देंगे, इसलिए उन्हें संसद में बोलने नहीं दिया जा रहा। हालांकि उन्होंने ये नहीं बताया कि
खबरदार, यह ईमानदारों की कतार है, बेईमान दूर रहें!
केंद्र सरकार द्वारा पांच सौ और एक हजार के नोट बंद करने के फैसले के बाद से ही मोदी-विरोधी एक राजनीतिक जमात में भूचाल की स्थिति है। इस साहसिक एवं ऐतिहासिक निर्णय के दूरगामी नफा-नुकसान पर बहस करने की बजाय कुछ राजनीतिक जमात के लोग बैंकों की कतारों पर बहस करना चाहते हैं। चूँकि, इस निर्णय को लेकर आम जनता के मन में एकतरफा समर्थन का भाव खुलकर दिख रहा है, लिहाजा
‘वन रैंक वन पेंशन’ पर बोलने से पहले अपनी दादी और पापा की ‘करनी’ को तो जान लें, राहुल गाँधी!
वन रैंक वन पेंशन का मामला एकबार फिर गरमाया हुआ है। दरअसल गत दिनों एक पूर्व सैनिक राम किशन ग्रेवाल ने कथित तौर पर वन रैंक वन पेंशन की अनियमितताओं के कारण आत्महत्या कर ली। बस इसके बाद से ही इस मामले पर सियासी महकमे में सरगर्मी पैदा हो गई है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल तक तमाम नेता मृतक सैनिक के परिजनों से मिलने के नाम पर
राहुल के बोल से सवालों के घेरे में कांग्रेस
कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और देश की सेना से जुड़ा एक निंदनीय बयान दिया है। ऐसे समय में जब देश के लोग ही नहीं बल्कि दुनिया के तमाम लोकतांत्रिक एवं स्थिर देश भारत के समर्थन में हैं, राहुल गांधी ने ऐसी बहस को जन्म देने का काम किया है जिससे न सिर्फ सरकार बल्कि सेना का भी अपमान होता है। पता नहीं किन सन्दर्भों और प्रमाणों के आधार पर राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी
सिर्फ खाटें नहीं लुटी हैं, उनके साथ कांग्रेस की बची-खुची साख भी लुट गई!
यह निर्विवाद तथ्य है कि कांग्रेस इस वक़्त अपने सबसे बुरे राजनीतिक दौर से गुजर रही है। देश से लेकर राज्यों तक हर जगह जनता द्वारा लगातार उसे खारिज होना पड़ा है। इन लगातार मिली विफलताओं से हताश कांग्रेस ने आगामी यूपी चुनाव के मद्देनज़र सफल चुनावी रणनीतिज्ञ माने जाने वाले प्रशांत किशोर की पीआर एजेंसी को यूपी में अपने प्रचार की जिम्मेदार सौंपी है। अब प्रशांत किशोर ने कांग्रेस को
यूपी चुनाव कांग्रेस लड़ रही है या प्रशांत किशोर लड़ रहे हैं ?
राजनीति में हार-जीत स्थायी नहीं होती है। यह एक क्रम है जो कभी इस पाले तो कभी उस पाले के अनुकूल होता है। आजादी के बाद नेहरु से शुरू हुई कांग्रेस इंदिरा गांधी से होते हुए राजीव, सोनिया और राहुल गांधी तक पहुंची है। इस दरम्यान लगभग पांच दशकों तक कांग्रेस सत्ता में रही है, जिसमें लगभग तीन दशक से ज्यादा सत्ता के शीर्ष पर नेहरु का परिवार रहा है। अब केंद्र की सत्ता बेशक कांग्रेस के पास नहीं है,
संघ पर आरोप लगाने से हुई राहुल गाँधी की किरकिरी, सबक लें संघ विरोधी!
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को दोषी ठहराने वाले अपने एक बयान के मामले में जिस तरह अदालत में यू-टर्न लिया और पुनः ट्वीट के जरिए अपने पुराने बयान पर टिके रहने की बात दोहराते हुए डबल यू-टर्न लिया है, यह उनके कमजोर व्यक्तित्व, सुझबुझ की कमी और राजनीतिक नादानी को ही निरुपित करता है। उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी ने 2014 में एक चुनावी जनसभा में गांधी जी की हत्या के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को जिम्मेदार ठहराया था। इससे नाराज संघ के एक