बिहार में अपनी छवि गँवा चुके नीतीश किस आधार पर देश में विपक्षी एकता की संभावना तलाश रहे हैं ?
अब नीतीश देश में विपक्षी एकता की गुहार लगाते घूम रहे हैं। तेजस्वी के साथ वह दर-दर भटक रहे हैं। इनके राजनीतिक सपने तो हसीन हैं, लेकिन वास्तविकता से दूर हैं।
बिहार चुनाव : राजग के पास विकास का मुद्दा है, जबकि राजद अपने शासन का नाम भी नहीं ले रहा
भाजपा व जेडीयू दोनों सुशासन को महत्व देने वाले दल हैं, जबकि राजद व कांग्रेस के काम करने का अलग तरीका है। इन दोनों दलों को विकास से कोई मतलब नहीं।
लोकलुभावन चुनावी वादे करने वाले तेजस्वी यादव अतीत को भुला बैठे हैं
नीतीश कुमार के शासनकाल को जंगलराज करार देते हुए राष्ट्रीय जनता दल के नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव चुनावी वादों की बरसात कर रहे हैं।
‘बिहार में का बा’ बनाम ‘बिहार में ई बा’ की पड़ताल
बिहार चुनाव में एक तरफ जहां नीतीश कुमार की विकास पुरुष वाली छवि है, वहीं दूसरी तरफ लालू राज को जनता आज भी भूलने को तैयार नहीं है।
बिहार : लालू के जंगलराज से नीतीश के सुशासन तक
बिहार अपनी बौद्धिक-साहित्यिक-सांस्कृतिक सक्रियता एवं सजगता के लिए जाना जाता रहा है। परंतु लालू का शासन वह दौर था, जब जातीय घृणा की फसल को भरपूर बोया गया।
लालू-राबड़ी शासनकाल के किन-किन गुनाहों के लिए माफी मांगेंगे तेजस्वी यादव!
इन दिनों बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और लालू-राबड़ी यादव के पुत्र तेजस्वी यादव सूबे में घूम घूम कर जनता से माफी मांग रहे हैं। दरअसल तेजस्वी यादव यह माफीनामा लालू-राबड़ी के कुशासन के अपराधबोध से ग्रस्त होकर नहीं मांग रहे हैं।
लालू की सजा पर राजद की जातिवादी राजनीति उसे ही नुकसान पहुंचाएगी !
चारा घोटाले के एक मामले में पहले से ही सजायाफ्ता लालू यादव को अब इसीके एक और मामले में दोषी पाते हुए और साढ़े तीन साल की सजा सुनाई गयी है। लालू की सजा के एलान के बाद से ही उनकी पार्टी राजद द्वारा इसे जातिवादी रंग देने की शर्मनाक कोशिश की जाने लगी है। राजद नेताओं की तरफ से बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र की रिहाई को आधार बनाकर यह कहा गया कि लालू निचली जाति से हैं, इसलिए
लालू के दोषी करार दिए जाने पर राजद की शर्मनाक राजनीति !
भारत की संवैधानिक व्यवस्था के संचालन में न्यायपालिका की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है। न्याय के माध्यम से वह संविधान का संरक्षण करती है। इसलिए उसे विशेष सम्मान दिया जाता है। निचली अदालत के फैसले से असन्तुष्ट होने की दशा में ऊपरी अदालत में अपील की व्यवस्था भी न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है। ऐसे में, न्यायिक निर्णय पर राजनीतिक प्रतिक्रिया से बचना चाहिए। लेकिन अक्सर देखा जाता है कि
भ्रामक ‘तस्वीरों’ के जरिये भीड़ बढ़ाकर भाजपा को भगाने निकले हैं, लालू यादव !
27 अगस्त, 2017 को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की अगुआई में पटना के प्रसिद्ध गाँधी मैदान में “भाजपा भगाओ, देश बचाओ” रैली आयोजित की गई, जिसमें जदयू के बागी नेता शरद यादव, कांग्रेस, तृणमूल, समाजवादी पार्टी, भाकपा, राकांपा समेत कई अन्य दलों के नेता शामिल हुए। रैली का मकसद था नीतीश कुमार और भाजपा पर निशाना साधना। लालू खेमे द्वारा इस रैली को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर और सफल बताया जा रहा
‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की वर्षगाँठ पर भी अपनी नकारात्मक राजनीति से बाज नहीं आया विपक्ष !
भारत छोड़ो आंदोलन की पचहत्तरवीं वर्षगांठ देश के लिए अहम है। इस दिन राष्ट्र-हित के विषयों का चयन होना चाहिए था और उनके प्रति संकल्प का भाव व्यक्त होना चाहिए था जिससे खास तौर पर युवा पीढ़ी उन राष्ट्रीय मूल्यों को समझ सके जिनकी स्थापना हमारे स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानियों ने की थी। लोकसभा और राज्यसभा ने इस संबंध में अलग-अलग संकल्प पारित किए। मगर उसके पहले विपक्षी नेताओं ने