लोक-साहित्य : भारतीय परम्पराओं का जीवंत प्रमाण
देवेंद्र सत्यार्थी के शब्दों में, लोक साहित्य की छाप जिसके मन पर एक बार लग गई फिर कभी मिटाए नहीं मिटती। सच तो यह है कि लोक-मानस की सौंदयप्रियता कहीं स्मृति की करूणा बन गई है, तो कहीं आशा की उमंग या फिर कहीं स्नेह की पवित्र ज्वाला। भाषा कितनी भी अलग हो मानव की आवाज तो वही है।