नोटबंदी का अतार्किक विरोध कर देश का भरोसा खोता विपक्ष
नोटबंदी के बाद जनता के मन में एक भावना आसानी से देखी जा सकती है कि प्रधानमंत्री के इस फैसले को वह हर तरह की परेशानी के बाद भी काला धन रखने वालों और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ देख रही है। और जनता की इस भावना ने दरअसल देश के विपक्ष के लिए कतार में लगी जनता से ज्यादा परेशानी की जमात खड़ी कर दी है।
नोटबंदी का विरोध करने वालों से सावधान रहने की जरूरत
भारत का आज का काल, एक क्रांति के दौर से गुजर रहा है। भारत के जनमानस को शायद अभी पूरी तरह से एहसास नही है कि वह, उस सौभाग्यशाली पीढ़ी का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, जो भारत के बदलने के हर पल पल को न सिर्फ अपने अंदर समेट रही है, बल्कि उसकी भागीदार भी बन रही है। यह शायद इसलिए है, क्योंकि यह अभी तक एक परस्पर संघर्षहीन क्रांति है, जो भारत में 16 मई 2014 से शुरू हो
नोटबंदी के निर्णय से खुश है जनता, बस विपक्षी दलों को हो रही पीड़ा
एक कहावत है कि प्रहार वहां करो जहां चोट पहुंचे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसा ही करके काले धन के कारोबारियों और काली कमाई से सियासत का मचान तान रखे सियासतदानों की कमर तोड़ दी है। वे समझ नहीं पा रहे हैं कि छलपूर्वक अर्जित की गयी काली कमाई को कैसे और कहाँ ठिकाने लगाएँ। अब उन्हें चारों तरफ का रास्ता बंद नजर आ रहा है। प्रधानमंत्री ने दो टूक कह भी दिया है कि उनका अगला
नोटबंदी का फिजूल विरोध कर खुद को ‘संदिग्ध’ बना रहा विपक्ष
जबसे केंद्र सरकार ने पांच सौ और हजार के नोटों को बंद किया है, देश में एक विमर्श चल पड़ा है कि यह फैसला किसके हक में है ? सबसे पहले एक बात स्पष्ट होनी चाहिए कि इस फैसले से आम जनता को कुछेक दिन की थोड़ी दिक्कत है, जोकि सरकार भी मान रही है, लेकिन काले कारोबारियों, हवाला कारोबारियों, आतंकवाद के पोषकों के लिए यह फैसला त्रासदी लेकर आया है। सभी भ्रष्टाचार के अड्डो पर सन्नाटा
नोटबंदी के निर्णय से इतने हलकान क्यों हैं विपक्षी दल ?
मोदी सरकार द्वारा पांच सौ और हजार के नोट बंद करने के निर्णय को जहां एक तरफ भारी जन-समर्थन प्राप्त होता दिख रहा है। लोग थोड़ी-बहुत परेशानी उठाने के बावजूद भी इस निर्णय के प्रति सहमति जता रहे हैं। वहीँ दूसरी तरफ तमाम विपक्षी दल सरकार के इस निर्णय के बाद हलकान नज़र आ रहे हैं। इन दलों की समस्याओं को उनके वक्तव्यों व सरकार पर लगाए जा रहे उलूल-जुलूल आरोपों से समझा जा
भोपाल मुठभेड़ पर दिग्विजय सिंह के बड़बोले बयानों से सवालों के घेरे में कांग्रेस
एक कहावत है कि सत्य की अनदेखी वही करता है जिसे असत्य से लाभ हो। ऐसे ही एक सत्य की अनदेखी फिर देश के कतिपय सियासतदानों द्वारा की जा रही है जो जांच से पहले ही इस नतीजे पर पहुंच गए हैं कि भोपाल के केंद्रीय जेल से फरार प्रतिबंधित संगठन सिमी (स्टूडेंट इस्लामिक मुवमेंट ऑफ इंडिया) के आठ आतंकियों से पुलिस की हुई मुठभेड़ फर्जी है। हो सकता है कि मुठभेड़ के बाद का परिदृश्य
आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को कमजोर कर रहा विपक्ष
देश में जबसे मोदी सरकार सत्ता में आई है, तबसे वो आतंक के खिलाफ कठोर नीति के साथ काम कर रही है। लेकिन, यह भी एक सच्चाई है कि इस दौरान विपक्ष की तरफ से सरकार को कभी भी आतंकियों के विरुद्ध किसी कार्रवाई में समर्थन नहीं मिला। बल्कि, सेना के जवानों व पुलिसकर्मियों द्वारा जब भी कोई आतंकी मारा जा रहा है, तो इसपर देश का आम जनमानस जहां कार्रवाई का समर्थन कर जवानों का हौसला
‘सर्जिकल स्ट्राइक’ पर सियासत से बाज आएं विपक्षी दल
देश में हो रहें पाक प्रायोजित आतंकी हमलों के विरुद्ध माहौल बनता हैं, और उसके कृत्यों का जवाब उसी की भाषा में सेना के पैरा कमांडो द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक के रूप में दिया जाता हैं। शुरुआती दौर में तो देश की सभी विपक्षी पार्टियां इस मुद्वे पर सहमत रहती हैं, उसके कुछ दिन बाद जिस तरह सेना के बाहुबल पर शक करते हुए सरकार और सेना से सबूत मांग रही हैं, यह साबित करता हैं कि देश में अपनी