जीएसटी का विरोध करने वाले विपक्षी दल नोटबंदी के विरोध जैसी भूल कर रहे हैं !
तीस जून की आधी रात देश में जीएसटी लागू हो गया। संसद के सेन्ट्रल हाल में एक भव्य आयोजन किया गया। हालांकि कांग्रेस एवं वामपंथी दलों समेत कई विपक्षी दलों ने इस कार्यक्रम का बेजा विरोध किया। देश इस आर्थिक सुधार के एतिहासिक क्षण का गवाह बना। ‘एक राष्ट्र एक कर’ के नारे के साथ जीएसटी समूचे देश में लागू हो गया। एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह यह जरूरी है कि विपक्ष भी अपनी रचनात्मक भूमिका अदा
अपने पचास दिनों में हर तरह से लाभकारी रही है नोटबंदी
नोटबंदी के पचास दिन पूरे हो चुके हैं। बीते 8 नवम्बर को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा राष्ट्र के नाम संबोधन में पांच सौ और एक हजार के नोटों को चलन से बाहर करने का निर्णय सुनाया था। निश्चित रूप से यह फैसला देश में छुपे काले धन और नक़ली नोटों के कारोबार पर सर्जिकल स्ट्राइक की तरह था। अतः आम जनता द्वारा इसका खुलकर स्वागत किया गया और नोट बदलवाने के लिए कतारों की मुश्किल से दो-चार होने
पूर्व फौजी की आत्महत्या पर अपनी घटिया राजनीति से बाज आएं विपक्षी!
पिछले दो साल से चल रहा असहिष्णुता का नाटक इस देश में कब समय की गर्त में समा गया, किसी को पता भी नहीं चला, पर चंद एसी स्टूडियो की कुर्सियों पर बैठे प्रवंचक बुद्धिजीवियों की कॉफी के प्यालों में उठा तूफान इस देश का असली मिजाज नहीं दिखाता। यह देश इन बौद्धिकों की लफ्फाजी को बहुत मुद्दत और शिद्दत से पहचान गया है, इसलिए उन पर ध्यान भी नहीं देता।