जयंती विशेष : अखंड भारत के पक्षधर वीर सावरकर
वीर सावरकर पहले ऐसे भारतीय विद्यार्थी थे जिन्होंने इंग्लैंड के राजा के प्रति वफादारी की शपथ लेने से मना किया। नतीजा उनके वकालत करने पर रोक लगा दी गयी।
‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर’ को साकार करने में सफल रहे रणदीप हुड्डा
एक और अच्छी बात निर्माता–निर्देशक ने स्थापित की है कि वैचारिक या सैद्धांतिक मतभेद होने के बाद भी बड़े नेता एक–दूसरे का सम्मान करते थे। जो लोग यह स्थापित करने की कोशिश करते हैं कि वीर सावरकर महात्मा गांधी के विरोधी थे, उनको अवश्य ही यह पता होना चाहिए कि दोनों की सोच अवश्य भिन्न
स्वातंत्र्यवीर सावरकर : जिनका हिंदुत्व कोरी भावुकता पर नहीं, तर्कपूर्ण चिंतन पर आधारित था
आधुनिक राजनीतिक विमर्श में विनायक दामोदर सावरकर एक ऐसे नाम हैं, जिनकी उपेक्षा करने का साहस उनके धुर विरोधी भी नहीं जुटा पाते।
महाराणा प्रताप और वीर सावरकर की महानता राजस्थान सरकार के प्रमाणपत्र की मोहताज नहीं है
परन्तु, ऐसे दुष्प्रयासों से प्रताप और सावरकर जैसे धवल चरित्रों पर काज़ल की एक रेख भी न लगने पाएगी। लोकमानस अपने महानायकों के साथ न्याय करना खूब जानता है।
डूसू चुनाव : सावरकर का अपमान करने वालों के मुंह पर तमाचा है एबीवीपी की जीत
दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनाव में इसबार भी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को भव्य विजय प्राप्त हुई है। इस चुनाव में चार पदों में से तीन पदों पर एबीवीपी ने विजय प्राप्त की है। अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और संयुक्त सचिव का पद परिषद के खाते में गया, तो कांग्रेस से जुड़े छात्र संगठन एनएसयूआई को महज एक सचिव पद से ही संतोष करना पड़ा।
अगर सावरकर न रोकते तो संगीत छोड़ ही चुकी थीं लता मंगेशकर!
सुर-साम्राज्ञी भारत रत्न लता मंगेशकर के प्रशसंक, उनका सम्मान करने वाले तो इस देश और दुनिया में करोड़ो होंगे। लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि लता मंगेशकर किन लोगों को पसंद करती हैं, किनका सम्मान करती हैं और किसने उन्हें संगीत क्षेत्र में आने के लिए प्रेरित किया ? यतीन्द्र मिश्र की किताब ‘लता सुर-गाथा’ यह राज खोलती है। हिंदी के कवि, सम्पादक और सिनेमा के अध्येता यतीन्द्र मिश्र ने लता