सच से दूर और राजनीति से प्रेरित है कथित किसान आंदोलन
जनता सब देख रही है और वास्तविक मुद्दों पर आधारित आंदोलन तथा राजनीति प्रेरित आंदोलन का मतलब बखूबी समझती है। इसका हिसाब भी जरूर करेगी।
‘भेदभाव, वैमनस्य और दुर्भावना को खत्म करने के लिए प्रेरित करेगा विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’
भारत का विभाजन और स्वतन्त्रता इतिहास के एक ही अध्याय में है। भीषण त्रासदी और विभाजन की काली रात के बाद स्वतन्त्रता का प्रकाश हुआ था।
लोकतंत्र के लिए घातक है आंदोलन की आड़ में अराजकता
संसदीय प्रक्रियाओं को खुलेआम चुनौती देने, संस्थाओं को ध्वस्त एवं अपहृत करने तथा क़ानून-व्यवस्था को बंधक बनाने की निरंतर बढ़ती प्रवृत्ति देश एवं लोकतंत्र के लिए घातक है।
‘भारतीय कम्युनिस्टों का चरित्र ऐसा है कि वे किसी के सगे नहीं हो सकते सिवाय अपने स्वार्थों के’
वो वामपंथी उदारवादी जो असहमत होने के अधिकार को संविधान द्वारा दिया गया सबसे बड़ा अधिकार मानते हैं, वही दूसरों की असहमति को स्वीकार नहीं कर पाते।
पिंजरा तोड़ अभियान से उपजते सवाल
छोटे-छोटे शहरों से बड़े सपने लेकर देश की राष्ट्रीय राजधानी आने वाले लड़के-लड़कियों को वामपंथी ताक़तें किस क़दर बहलाती-फुसलाती हैं, उसकी कहानी आप इस संगठन के बनने के पीछे की कहानी को जानकर समझ सकते हैं।
नागरिकता संशोधन कानून लागू करने के लिए संवैधानिक रूप से बाध्य हैं राज्य सरकारें
हाल ही में देश के नामी वकील तथा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने कहा कि, संसद से पारित हो चुके नागरिकता संशोधन कानून को लागू करने से कोई राज्य किसी भी तरह से इनकार नहीं कर सकता और यदि कोई राज्य ऐसा करता है तो यह असंवैधानिक होगा।
शाहीन बाग : क्या मुस्लिम महिलाएँ और बच्चे अब विपक्ष का नया हथियार हैं?
सीएए को कानून बने एक माह से ऊपर हो चुका है लेकिन विपक्ष द्वारा इसका विरोध अनवरत जारी है। बल्कि गुजरते समय के साथ विपक्ष का यह विरोध “विरोध” की सीमाओं को लांघ कर हताशा और निराशा से होता हुआ अब विद्रोह का रूप अख्तियार कर चुका है। शाहीन बाग का धरना इसी बात का उदाहरण है। अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए ये दल किस हद तक जा सकते हैं
नागरिकता संशोधन क़ानून के देशव्यापी समर्थन से सेकुलर गिरोह में बढ़ती बेचैनी
जैसे-जैसे नागरिकता संशोधन कानून का देश भर में समर्थन बढ़ रहा है वैसे-वैसे कांग्रेस-वामपंथ समर्थक सेकुलर खेमे में बेचैनी बढ़ती जा रही है। इस बेचैनी की अभिव्यक्ति के लिए मुसलमानों और विश्वविद्यालयों के वामपंथी रूझान वाले छात्रों को ढाल बनाकर देश विरोधी नारे लगवाए जा रहे हैं। अब तो ये कश्मीर से आगे बढ़कर पश्चिम बंगाल, असम और