यह सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ है, इसलिए सर्वप्रथम इसमें संविधान के अनुच्छेदों को खंगाला जा रहा है और पता लगाया जा रहा है कि तीन तलाक व हलाला जैसी कुप्रथाओं को संविधान में कोई अनुरक्षण प्राप्त है या नहीं। जहां तक सरकार का सवाल है, सरकार ने कोर्ट को एक जवाब में बताया था कि तीन तलाक मूल रूप से लैंगिक असमानता व भेदभाव की प्रथा है और भारतीय संविधान में भेदभाव के लिए कोई भी गुंजाइश नहीं है। स्पष्ट है कि तीन तलाक संविधान के खिलाफ है, अतः यह माना जाना चाहिए कि इसका समर्थन करने वाले भी संविधान के खिलाफ ही हैं।
सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने मुस्लिमों में प्रचलित तीन तलाक, निकाह हलाला जैसी कुप्रथाओं पर सुनवाई शुरू कर दी है। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता में बनी इस पीठ में पांच जज शामिल हैं, जो तीन तलाक पीड़ित मुस्लिम महिलाओं की ओर से दायर सात याचिकाओं पर सुनवाई करेंगे। इन पीड़ित महिलाओं ने हलाला व बहुविवाह जैसी इस्लामिक रूढ़ियों को भी कोर्ट में चुनौती दी है। गत 11 मई को जब पीठ ने इस पर सुनवाई आरंभ की तो पूरे देश की निगाहें इस ओर थीं। अदालत ने स्वत: संज्ञान लेकर इस मामले में सुनवाई की पहल की है।
इस सुनवाई में सबसे अहम बात ये है कि न्यायिक पीठ में जो पांच जज हैं, वे सभी अलग-अलग धर्मों के हैं। चीफ जस्टिस जेएस खेहर सिख हैं, जस्टिस कुरियन जोसेफ इसाई हैं। जस्टिस नरीमन पारसी समुदाय से हैं एवं जस्टिस उदय उमेश हिंदू हैं और जस्टिस अब्दुल नज़ीर मुस्लिम हैं। इस प्रकार का प्रयोग देश में पहली बार हो रहा है क्योंकि एक संवेदनशील मसले पर निष्पक्ष राय बनाने का आग्रह है। यह बात और है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस सुनवाई से आपत्ति जताई है और इस मामले को पर्सनल लॉ का हवाला देते हुए इसे सुप्रीम कोर्ट के क्षेत्राधिकार से बाहर बताया है। इधर, सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा कि यह विवाह को समाप्त करने का अत्यंत बुरा तरीका है।
चूंकि यह संवैधानिक पीठ है, इसलिए सर्वप्रथम इसमें संविधान के अनुच्छेदों को खंगाला जा रहा है और पता लगाया जा रहा है कि क्या तीन तलाक व हलाला जैसी कुप्रथाओं को संविधान में कोई अनुरक्षण प्राप्त है या नहीं। जहां तक सरकार का सवाल है, सरकार ने कोर्ट को एक जवाब में बताया था कि तीन तलाक मूल रूप से लैंगिक असमानता और भेदभाव की प्रथा है और भारतीय संविधान में भेदभाव के लिए कोई भी गुंजाइश नहीं है। सरकार के पक्ष के अनुसार स्पष्ट है कि तीन तलाक संविधान के खिलाफ है, अतः इसका समर्थन करने वाले भी संविधान के खिलाफ ही हुए।
गौरतलब है कि मोदी सरकार सत्ता में आने के बाद से ही तीन तलाक के खात्मे को लेकर स्पष्ट रुख प्रस्तुत करती रही है। स्वयं प्रधानमंत्री मोदी अनेक मंचों से इस विषय को उठाते रहे हैं। सरकार की कोशिशों और मुस्लिम महिलाओं के इसके खिलाफ खड़े होने का असर ही है कि अब इस मामले पर सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ द्वारा विशेष सुनवाई की जा रही है। लेकिन, तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों, नेताओं आदि के द्वारा मोदी सरकार के इस रुख को तुष्टिकरण के लिए बताया आ रहा है, जिसका कोई आधार नहीं दिखता। वास्तव में मोदी की सरकार एक सुधारवादी सरकार है, जिसका ध्येय किसी जाति या मज़हब का तुष्टिकरण करना नहीं, केवल सुधार और विकास के पथ पर केन्द्रित रहना है।
विपक्ष, खासकर धर्मनिरपेक्ष गुट अक्सर मोदी सरकार पर मुस्लिमों को टारगेट करने का आरोप लगाते रहे हैं, लेकिन ऐसा करते हुए वे शायद इस तथ्य को अनदेखा कर देते हैं कि जब भाजपा सरकार ने तीन तलाक के मसले पर सुधारवादी पहल की तब सबसे अधिक सहयोग मुस्लिम महिलाओं की ओर से ही मिला है। यह एक व्यवहारिक तथ्य है, जिसे झुठलाया नहीं जा सकता है। सेक्युलर वर्ग ने यह सोचने की ज़हमत नहीं उठाई कि जब यह परंपरा पुरानी है, तो इससे पूर्ववर्ती सरकार ने अब तक इसके उन्मूलन की ओर ध्यान क्यों नहीं दिया। कांग्रेस ने तो इसका जिक्र तक नहीं किया। केंद्र में मोदी और यूपी में योगी सक्रिय होने के बाद ही अधिकांश लोगों ने तीन तलाक एवं हलाला जैसी अमानवीय प्रथाओं के बारे में सुना। मुस्लिम महिलाएं व कुछ हद तक जागरूक मुस्लिम पुरुष भी स्वयं बढ़ चढ़कर इन प्रथाओं को समाप्त करने की पहल कर रहे हैं।
दरअसल देश के कांग्रेस आदि तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों ने मुस्लिमों का केवल जब-तब जिस-तिस प्रकार से तुष्टिकरण कर उनको वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया है, उनके ठोस विकास और स्थायी हित की दिशा में कभी ध्यान नहीं दिया। लेकिन, देश का मुस्लिम समुदाय भी अब जाग रहा है। उन्हें पता चल रहा है कि बरसों से जो कांग्रेस एवं अन्य दल मुस्लिमों के तारणहार बने होने का स्वांग रच रहे थे, असल में वे ही पर्दे के पीछे मुस्लिमों को पिछड़ा बनाए हुए थे। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को इस बात का अहसास हो चुका है कि अब उनके पैरों तले ज़मीन खिसक रही है, लिहाजा अब वे तीन तलाक के मुद्दे पर सरकार के हर कदम का विरोध करने को तैयार है।
सच तो ये है कि जबसे मोदी सरकार ने तीन तलाक का मसला उठाया है, तबसे तथाकथित सेकुलरों की दुखती रग जाग गई है। वे स्वयं को असहाय महसूस कर रहे हैं। इन विपक्षी दलों के पास कोई तार्किक कारण नहीं है, जिसके ज़रिये वे तीन तलाक जैसी कुप्रथा को कायम रखने की वकालत कर सकें, जबकि इसके उलट स्वयं मुस्लिम महिलाएं मुखर होकर अपना पुरज़ोर विरोध दर्ज करा रही हैं। वे प्रिंट मीडिया, डिजिटल, इलेक्ट्रानिक मीडिया एवं न्यायपालिका आदि सभी माध्यमों से अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही हैं एवं स्वयं खुलकर सामने आकर तीन तलाक के खात्मे के लिए हरसंभव प्रयास कर रही हैं। ऐसे में, विपक्ष व वामदलों के पास भाजपा सरकार पर मुस्लिम विरोधी होने के लांछन लगाने के सिवाय कोई चारा नहीं बचा है। उनका अंध मोदी विरोध इस मामले में खुलकर सामने आ रहा है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना रबी हसनी नदवी का कहना है कि भाजपा सरकार तीन तलाक के मसले की आड़ में मुस्लिमों को तंग कर रही है। उप्र अल्पसंख्यक आयोग ने भी उनके सुर से सुर मिलाया और केंद्र का विरोध शुरू किया। उनके अनुसार केंद्र सरकार को मजहबी मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। तीन तलाक के इन समर्थकों को यह भी बताना चाहिए कि इनके लिए देश का संविधान पहले है या अपना मज़हब ?
अब जबकि सुप्रीम कोर्ट में स्वयं संविधान पीठ तीन तलाक की सुनवाई करने के लिए बैठ चुकी है और ऐसे में मापदंड मजहबी न होकर संवैधानिक प्रावधानों के अधीन रह जाता है। बोर्ड के इस अड़ियल रवैये पर प्रहार करते हुए फोरम फॉर मुस्लिम स्टडीज एंड एनालिसिस ने कहा है कि बोर्ड को मुस्लिम समाज में व्याप्त कुरीतियों पर अंकुश लगाना चाहिए। फोरम के निदेशक डॉ. जसीम मोहम्मद ने कहा है कि भारतीय मुस्लिमों में तीन बार तलाक कहने की प्रथा जारी है, जो कि इस्लामिक विधान के अनुसार गलत है।
ऐसे में अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि मोदी सरकार के इस महत्वपूर्ण अभियान की परिणति किस रूप में सामने आती है, क्योंकि एक तरफ बोर्ड जैसी दकियानूसी संस्थाए और तथाकथित सेकुलरों की ज़मात हैं जो तीन तलाक को बचाने के लिए संविधान तक के खिलाफ उतरने से बाज नहीं आ रहे, तो दूसरी ओर फोरम जैसी संस्थाएं भी हैं जो कि तीन तलाक के उन्मूलन को केंद्र सरकार के सुधारात्मक कदम के रूप में देखती हैं। निश्चित ही तीन तलाक एक इस्लामिक सामाजिक बुराई है, जिसका खात्मा करने के लिए सभी को एकजुट होना चाहिए।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)