अगर इतिहास देखा जाए तो यही ज्ञात होता है कि शायद वामपंथी विचारधारा के झंडाबरदारों की कांग्रेस सरकार के साथ एक मौन सहमति थी कि ‘तुम सत्ता की तरफ मत देखना, हम संस्था की तरफ नहीं देखेंगे।’ इन्होंने संस्थाओं में बने रहने के लिए देश के सबसे ईमानदार और हितैषी संगठन को आतंकी तक कहा, जब कि वह संगठन ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की बात करता है। वह धरती को माँ मानता है। उसके प्रमुख उद्घोषों में यह भी है कि तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहें।
वामपंथी विचारधारा के बुद्धिजीवियों और इसके पोषक कांग्रेस आदि राजनीतिक दलों ने अपने संकीर्ण स्वार्थों के कारण हमेशा इस देश के सबसे हितैषी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खिलाफ अनर्गल आरोप गढ़े हैं। कांग्रेस ने तो संघ पर भगवा आतंकी संगठन होने का भी शिगूफा छोड़ा था। उसे कभी फासीवादी संगठन कहा गया तो कभी उस पर धार्मिक आधार पर देश को बांटने का आरोप लगाया गया। कांग्रेस की इस आरोपवादी राजनीति में उसका खुलकर साथ दिया वामपंथियों ने।
अगर इतिहास देखा जाए तो यही ज्ञात होता है कि शायद वामपंथी विचारधारा के झंडाबरदारों की कांग्रेस सरकार के साथ एक मौन सहमति थी कि “तुम सत्ता की तरफ मत देखना, हम संस्था की तरफ नहीं देखेंगे।” इन्होंने संस्थाओं में बने रहने के लिए देश के सबसे ईमानदार और हितैषी संगठन को आतंकी तक कहा, जब कि वह संगठन “सर्वे भवन्तु सुखिनः” की बात करता है। वह धरती को माँ मानता है। उसके प्रमुख उद्घोषों में यह भी है कि “तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहें।”
पूरा देश यह जानता है कि देश में कहीं भी आपदा-विपदा आये तो निःस्वार्थ सेवा के लिए संघ सबसे पहले हाजिर रहता है। लेकिन, संघ की देशभक्ति को देश के तथाकथित सेकुलरों और वाम विचारधारा के पोषकों द्वारा अपने दुष्प्रचार की धुंध में छिपाने का ही यत्न किया जाता रहा है। जबकि तीस्ता शीतलवाड़ जैसे लोगों जो एनजीओ बनाकर पीड़ितों के पैसों से मौज-मस्ती करते हैं, को देश के हितैषी के रूप में प्रचारित करने का काम वामपंथियों और उनके सत्तारूढ़ आकाओं द्वारा किया गया।
दरअसल संघ हमेशा कार्य करने में विश्वास रखता रहा है, न कि उसकी ढोल पीटने में। यह भी एक कारण है कि संघ द्वारा राष्ट्रहित में किए जा रहे अनेक कार्यों से देश बहुत अच्छे से परिचित नहीं हो पाया है। बाकी इनपर दुष्प्रचार की धुंध फैलाने का काम वामपंथी विचारकों द्वारा किया ही गया है। बहरहाल, इसी संदर्भ में अगर हम संघ और उसके द्वारा संचालित राष्ट्र हितैषी प्रकल्पों की बात करें तो गोसेवा, धर्म प्रसार, संस्कृत प्रचार, सत्संग, वेद शिक्षा, मठ-मंदिर सुरक्षा आदि से सम्बंधित अनेक प्रकल्प तो हैं ही; इनके अलावा जिनकी चर्चा कम होती है, परन्तु योगदान बहुत ज्यादा है; ऐसे तीन कार्यों का उल्लेख करना यहाँ आवश्यक है। इन कार्यों को मुझे नजदीक से देखने का अवसर मिला है।
चित्रकूट का कायाकल्प
चित्रकूट ऐसी जगह है, जिसके बारे में तुलसी बाबा ने लिखा है कि “जा पर विपदा परत है, वह आवत यहि देश।” ऐसे चित्रकूट को वास्तव में ‘चित्रकूट’ बनाने के लिए ‘राष्ट्रऋषि नानाजी देशमुख’ ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की शरणस्थली, महाकवि तुलसी की प्रेरणास्थली चित्रकूट, भारतीय संस्कृति एवं आध्यात्मिक जगत का आदिस्थल है। तीर्थस्थली चित्रकूट का अधिकांश भाग जिला सतना के अंतर्गत आता है।
दीनदयाल शोध संस्थान ने चित्रकूट के आस-पास के 500 गांवों का सामाजिक पुनर्रचना एवं समय के अनुरूप नवरचना के लिए चयन किया। दीनदयाल शोध संस्थान ने सन् 2009 तक सभी 500 गांवों को स्वावलम्बी बनाने का पांच सूत्रीय लक्ष्य रखा था- (1) कोई बेकार न रहे (2) कोई गरीब न रहे (3) कोई बीमार न रहे (4) कोई अशिक्षित न रहे (5) हरा-भरा और विवादमुक्त गांव हो। ग्राम विकास की इस नवरचना का आधार है समाजशिल्पी दम्पत्ति, जो पांच वर्ष तक गांव में रहकर इस पांच सूत्रीय लक्ष्य की प्राप्ति के लिए काम करते हैं।
इनका कार्य करने का तरीका इतना प्रेरणादायी है कि पूरे देश को सीखना चाहिए। ग्रामोदय से राष्ट्रोदय के अभिनव प्रयोग के लिए नानाजी ने 1996 में स्नातक युवा दम्पत्तियों से पांच वर्ष का समय देने का आह्वान किया। पति-पत्नी दोनों कम से कम स्नातक हों, आयु 35 वर्ष से कम हो तथा दो से अधिक बच्चे न हों।
इस आह्वान पर दूर-दूर के प्रदेशों से प्रतिवर्ष ऐसे दम्पत्ति चित्रकूट पहुंचने लगे। चयनित दम्पत्तियों को 15-20 दिन का प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण के दौरान नानाजी का मार्गदर्शन मिलता रहा। नानाजी उनसे कहते थे- “राजा की बेटी सीता उस समय की परिस्थितियों में इस क्षेत्र में 11 वर्ष तक रह सकती है, तो आज इतने प्रकार के संसाधनों के सहारे तुम लोग पांच वर्ष क्यों नहीं रह सकती?” इस तरह के स्फूर्तिदायक वचनों ने वहां की जनता में उत्साह का संचार किया और आज जो चित्रकूट है, वह सबके सामने है। इसी तरह गोंडा भी।
संस्कृत भारती
संस्कृत के उत्थान हेतु संघ का यह प्रकल्प पूरी निष्ठा से प्रयासरत रहा और अब भी है। दिल्ली जैसी जगह में जहां 500 रुपये में कोई 15 दिनों की चाय भी नहीं पिलाता है, वहां पर यदि कोई आपको रहने, खाने, नहाने, चाय- नाश्ते आदि हर चीज की व्यवस्था कर दे तो उसे आप क्या कहेंगे ! वह भी आपकी पढ़ाई के लिए। संस्कृत भारती महीने की हर पहली तारीख से 15 तक और 16 से 30/31 तक संस्कृत सिखाने का काम करती है। यह शाखा न सिर्फ दिल्ली में बल्कि बेंगलोर आदि कई शहरों में चलती है, जहाँ किसी भी जाति, धर्म, समुदाय का व्यक्ति सरल संस्कृत सीख सकता है। इस संस्थान की प्रशंसा 2012 में यूपीएससी की परीक्षा में 8वीं रैंक पाने वाली आई ए एस कुमारी वंदना सिंह चौहान ने भी की थी।
वनवासी कल्याण आश्रम
भारत के वनों व पर्वतों में रहने वाले हिन्दुओं को अंग्रेजों ने आदिवासी कहकर शेष हिन्दू समाज से अलग करने का षड्यन्त्र किया। दुर्भाग्य से आजादी के बाद भी यही गलत शब्द प्रयोग जारी है। ये वही वीर लोग हैं, जिन्होंने विदेशी मुगलों तथा अंग्रेजों से टक्कर ली है; पर वन-पर्वतों में रहने के कारण वे विकास की धारा से दूर रहे गये। इनके बीच संघ के स्वयंसेवक ‘वनवासी कल्याण आश्रम’ नामक संस्था बनाकर काम करते हैं। इसकी 29 प्रान्तों में 216 से अधिक इकाइयां हैं।
इनके द्वारा शिक्षा, चिकित्सा, खेलकूद और हस्तशिल्प प्रशिक्षण आदि के काम चलाये जाते हैं। ज्ञातव्य है कि दिल्ली में हुए “कॉमनवेल्थ गेम्स-2010” में ट्रैक फील्ड में पहला पदक और एशियन गेम्स में 10,000 मीटर में सिल्वर पदक, 5,000 मीटर में कांस्य पदक जीतने वाली “कविता राऊत” वनवासी कल्याण आश्रम संस्था से ही निकली हैं। आंकड़ों के अनुसार संघ की यह संस्था फिलहाल देश के लगभग 8 करोड़ वनवासी लोगों के लिए कार्य कर रही है।
ऐसे ही, सेवा भारती जैसी संस्था के रूप में संघ स्वास्थ्य के क्षेत्र में सक्रिय रूप से देश के दूर-दराज के उन क्षेत्रों तक पहुंच के कार्य कर रहा है, जहां सरकारी मिशनरी भी ठीक ढंग से नहीं पहुंची है। भारतीय मजदूर संघ और भारतीय किसान मंच के द्वारा मजदूरों और किसानों के लिए भी संघ सदैव संघर्ष करता रहा है। इनके अलावा संघ के और भी तमाम प्रकल्प हैं, जिनके माध्यम से वो देश के कोने-कोने तक न केवल मौजूद है, बल्कि देशवासियों के लिए अथक रूप से कार्य भी कर रहा है। निस्वार्थ भाव एवं लगन के द्वारा किये गए सामाजिक कार्यों ने उसे सेवा क्षेत्र में अपनी एक अलग व अग्रणी पहचान दिलाई है। पूरी दुनिया को पांच क्षेत्रों (अमरीका, यूरोप, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका तथा एशिया) में बांटकर, जिन देशों में हिन्दू हैं, वहां साप्ताहिक, मासिक या उत्सवों में मिलन के माध्यम से उनके हित की दिशा में काम हो रहा है।
अब समय बदल गया है और धीरे-धीरे पूरा देश संघ के योगदान जानने-समझने लगा है। परत-दर-परत वामपंथी देश हितैषियों की पोल खुल रही है और सेवा की आड़ में शोषण का उनका प्रमुख उद्देश्य जनता के सामने आ रहा है। संघ के विषय में इनके द्वारा जो कुप्रचार किया गया था, उसकी धुंध भी अब छंट चुकी है।
एक महीने पहले दिल्ली में एक जनसभा को संबोधित करते हुए सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा था, “हमारा उद्देश्य बड़ा है। हमे इस पूरे देश का विकास करने के लिये प्रयास करना है। उन लोगों को भी साथ लेकर चलना है जो हमारा बुरा चाहते हैं।” इससे यह सिद्ध है कि संघ की विचारधारा “मैं और मेरा” वादी न होकर, सभी के हित, संवर्धन और संरक्षण के लिए हैं। जैसा कि संस्कृत का ये सुभाषित कहता है:
अयं निजं परोवेति गणनाम् लघुचेतषाम्। उदार चरितानां तु ‘वसुधैव कुटुम्बकम्।।
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में शोधार्थी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)