सात वर्षों में मोदी सरकार ने कृषि के लिए जितना काम किया है, उतना पिछले सत्तर वर्षों में भी नहीं हुआ!

पंजाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काफिले को रोकने की घटना के पीछे कोई साजिश थी या यह किसान आंदोलन का एक हिस्‍सा भर था यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि मोदी सरकार ने पिछले सात वर्षों में खेती-किसानी के कल्‍याण के लिए जितना काम किया उतना काम पिछले सत्‍तर वर्षों में भी नहीं हुआ। आज मोदी सरकार प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना के तहत हर साल 11 करोड़ किसानों के बैंक खाते में डेढ़ लाख करोड़ रुपये भेज रही है।

तीन नए कृषि कानूनों के साथ सबसे बड़ी त्रासदी यह रही कि इन्‍हें कांग्रेस-वामपंथी पोषित मीडिया ने किसान विरोधी सिद्ध कर दिया। दूसरे, इन कानूनों के विरोध में जो आंदोलन हुआ उसे बड़े सुनियोजित तरीके से मोदी सरकार विरोधी मुहिम के रूप में चलाया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि पिछले सात वर्षों में खेती-किसानी के लिए मोदी सरकार द्वारा किए गए दूरगामी उपाय दब से गए। सच्चाई यह है कि 2014 से ही मोदी सरकार बीजसिंचाईउर्वरककीटनाशक के क्षेत्र में सुधार कर रही है ताकि किसान फसल विविधीकरण को अपनाएं।

कृषि विशेषज्ञ भी लंबे समय से मांग कर रहे हैं कि पारिस्‍थतिक दशाओं के अनुरूप फसल चक्र अपनाया जाए। इससे जलवायु परिवर्तन से जुड़े जोखिम अपने आप कम हो जाएंगे। इसी को देखते हुए मोदी सरकार दलहनी, तिलहनी और मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा देने की नीति पर काम कर रही है। सरकार गेहूं, धान की तुलना में इन फसलों के समर्थन मूल्‍य में भरपूर बढ़ोत्‍तरी करने के साथ-साथ इन फसलों की सरकारी खरीद का दायरा बढ़ा रही है।

दलहनी फसलों के अधिक उपज देने वाले बीजों का मुफ्त वितरण के साथ-साथ तिलहनी फसलों के बीजों के मिनी किट्स वितरित किए जा रहे हैं। सरकार बीमारी और कीट प्रबंधन वाले ऐसे फसल चक्र को बढ़ावा दे रही है जिसमें बीमारियों को लेकर कुदरती प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो।

साभार : Webdunia

देश में 55 फीसद इलाकों में अभी भी खेती-किसानी बारिश के भरोसे है। इन इलाकों में रासायनिक उर्वरकों-कीटनाशकों का बहुत कम इस्‍तेमाल किया जाता है। स्‍पष्‍ट है यहां प्राकृतिक खेती की व्यापक संभावनाएं हैं। इसी को देखते हुए सरकार वर्षा जल संरक्षण और पर ड्राप मोर क्रॉप पर जोर दे रही है। छोटे किसानों को संगठित करने के लिए केन्द्र सरकार ने 2023-24 तक देश भर में 10000 कृषि उत्पादक संगठन (एफपीओ) स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। 2021-22 के लिए 2500 एफपीओ बनाने का लक्ष्य रखा गया है।

पूरी दुनिया में कृषि बाजार का स्वरूप बदल रहा है। इसी को देखते हुए मोदी सरकार कृषि बाजार का व्‍यवस्‍थित नेटवर्क बना रही है ताकि किसानों को उनकी उपज की वाजिब कीमत मिल सके। कृषि उपज के कारोबार पर हर स्‍तर पर व्‍याप्‍त बाधाओं को दूर करने के लिए मोदी सरकार सूचना प्रौद्योगिकी आधारित कृषि उत्‍पादों का राष्‍ट्रीय बाजार बना रही है ताकि किसान अपनी उपज कहीं भी बेच सके। इसके लिए 2016 में राष्‍ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) नामक पोर्टल शुरू किया है।

पिछले पांच वर्षों में 21 राज्‍यों की 1000 कृषि उपज मंडियां इससे जुड़ चुकी हैं। सरकार 1000 और मंडियों को ई नाम से जोड़ने का लक्ष्‍य रखा है। कृषि निर्यात को प्रोत्‍साहित करने के लिए सरकार अब तक 13 देशों में स्‍थित भारतीय दूतावासों में कृषि सेल की स्‍थापना कर चुकी है। ये सेल उन देशों में खाद्य वस्‍तुओं की मांग की रियल टाइम जानकारी देंगे जिसके अनुसार कृषि उपज निर्यात होगा।

अब तक की सरकारों ने किसानों को तात्‍कालिक राहत पहुंचाने वाले काम किए जैसे चुनावों को देखकर कर्जमाफी और वोट बैंक को ध्‍यान में रखकर चुनिंदा फसलों के समर्थन मूल्‍य में बढ़ोत्‍तरी। इसका नतीजा यह निकला कि देश में असंतुलित कृषि का विकास हुआ।

उदाहरण के लिए 2009 के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस की लगातार दूसरी जीत में किसानों की 60,000 करोड़ रूपये की कर्जमाफी का बड़ी भूमिका रही। दूसरी ओर मोदी सरकार हर साल 11 करोड़ किसानों के बैंक खाते में डेढ़ लाख करोड़ रूपये भेज रही है।

स्‍पष्‍ट है पिछले सात वर्षों में मोदी सरकार ने खेती-किसानी को फायदे का सौदा बनाने के लिए दूरगामी महत्‍व के उपाय किए हैं ताकि किसान स्‍वावलंबी बनें। दुर्भाग्‍यवश ये उपाय किसान आंदोलन के दुष्‍प्रचार में दब से गए।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)